Lok Sabha Election 2024: चुनावी बिगुल बजने के बाद बाजार में नेताओं के मुखौटे, फोटो वाली टोपियां मौजूद, लेकिन खरीदार नदारद"/>

 Lok Sabha Election 2024: चुनावी बिगुल बजने के बाद बाजार में नेताओं के मुखौटे, फोटो वाली टोपियां मौजूद, लेकिन खरीदार नदारद

रायपुर। Lok Sabha Election 2024: राजधानी में चुनावी सामग्री के बाजार में नेताओं के मुखौटे, फोटो वाली टोपियां नजर आ रही है, लेकिन खरीदार ही नहीं हैं। छत्‍तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को बस्तर में मतदान होगा। वहीं रायपुर सीट के लिए सात मई को चुनाव होगा, लेकिन अभी भी चुनावी सामग्री का बाजार ठंडा पड़ा है। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार मार्च में आधा कारोबार हुआ है।

उम्मीद जताई जा रही है कि होली के बाद इसकी रफ्तार बढ़ेगी। जहां भारतीय जनता पार्टी ने सभी सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिए है, वहीं कांग्रेस भी बची हुई पांच सीटों पर जल्द ही प्रत्याशी उतारने वाली है। इसके बाद भी दूर-दूर तक चुनाव सामग्री को लेकर कोई पूछ-परख नहीं है, जबकि बाजार में नेताओं के मुखौटे, फोटो वाली टोपियां, फोटो युक्त बिल्ला, टी-शर्ट, गमछा, झंडे व आकर्षक फ्लेक्स नजर आ रहे हैं। कारोबारियों ने बताया कि प्रत्याशी तो दूर की बात है, उनके समर्थक भी नहीं पहुंच रहे है। होली के बाद ही आर्डर मिलने की उम्मीद है।

चुनावी सामग्री के बाजार में रौनक नहीं

जानकारों की राय है कि इन दिनों प्रचार-प्रसार के लिए पार्टियां इंटरनेट मीडिया का अधिक से अधिक उपयोग कर रही है। यही वजह है कि चुनावी सामग्री के बाजार में रौनक नजर नहीं आती। बहुत से व्यापारी भी दूसरे क्षेत्र में शिफ्ट हो रहे है। बता दें कि राजधानी से ही पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक प्रचार सामग्री अन्य शहरों में भेजी जाती है। यहां चुनाव सामग्री के करीब 35 से ज्यादा व्यापारी है। इसके साथ ही दर्जनों छोटी दुकानें भी है।

पिछली बार मार्च में दो करोड़ का कारोबार

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मार्च में आचार संहिता लग गई थी और घोषणा होते ही चुनाव सामग्री की मांग भी शुरू हो गई थी। मार्च में ही लगभग दो करोड़ का कारोबार हो गया था। लेकिन पिछले चुनाव की तुलना की जाए तो अभी मार्च में कारोबार 50 प्रतिशत कम हो गया है।

पहले चुनाव घोषणा के साथ उठता था बाजार कारोबारियों का कहना है कि पहले के चुनावों में तो चुनाव की घोषणा के काफी पहले से ही चुनाव सामग्री का बाजार जोर पकड़ने लगता था। पार्टियों के झंडे, बैनर, टोपी, बिल्ले आदि की मांग होती थी। चुनाव सामग्री की दुकानों में खरीदी के लिए प्रत्याशियों के समर्थकों की भीड़ भी रहती थी।

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