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Raipur: मुर्गी पंख से प्रोटीन निकाल बनाई नैनोजेल, शुगर और जलने वाले घाव होंगे ठीक, NIT स्‍टूडेंट ने पेश किया प्रोजेक्‍ट

HIGHLIGHTS

  1. एनआइटी और छत्तीसगढ़ विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से दो दिवसीय छत्तीसगढ़ यंग साइंटिस्ट कांग्रेस शुरू

नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। Raipur: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) और छत्तीसगढ़ विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद की ओर से दो दिवसीय 19वें छत्तीसगढ़ यंग साइंटिस्ट कांग्रेस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रदेश और देश के अलग-अलग संस्थानों को शोधार्थी अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। कार्यक्रम की शुरुआत पंडित दीनदयाल उपाध्याय आडिटोरियम से हुई, इसके बाद टेक्निकल सेशन एनआइटी में हुए। यहां पर आम लोगों के जीवन को आसान बनाने वाले उत्पाद, पद्धति से संबंधित शोध पत्र पढ़े गए।

आकांक्षा सिंघई ने मुर्गी के पंख का उपयोग कर नैनो जल बनाया है, जो घाव को ठीक करने में सहायक है। आकांक्षा ने बताया कि मुर्गी के पंख से केरोटिन प्रोटीन निकालकर नैनोजेल बनाई है। जो शुगर मरीज के घाव को जल्दी ठीक करता है, साथ ही जलने में ही ज्यादा सहायक है। इसको लगाने से चमड़ी भी जल्दी आती है। इसे लगाने से घाव में बैक्टेरिया, फंगस को भी रोकता है।

शांकी गर्ग ने कैंसर बीमारी को इमेज के माध्यम से डिडेक्ट करने का माडल बनाया है। माडल को कई कैंसर मरीजों के ऊपर ट्रायल भी कर चुकी है। साथ ही छत्तीसगढ़ में सिकलसेल बीमारी पर ट्रायल करेंगी। दो दिन तक चलने वाले छत्तीसगढ़ यंग साइंटिस्ट कांग्रेस सम्मेलन में अलग-अलग 20 विषयों में 207 शोध पत्रों को प्रस्तुत किया जाएगा।

उद्घाटन सत्र के विशेष अतिथि ट्रिपलआइटी के डायरेक्टर डा. पीके सिन्हा ने कहा कि इस तरह के सम्मेलनों से बहुत सारी समस्याओं के हल निकलते हैं। युवा अपनी सोच के आधार पर नवाचार कर अपना शोध किया है।एनआइटी के निदेशक डा. एनवी रमना राव ने कहा कि देश में विज्ञान के नए आयामों की कामयाबी में यंग साइंटिस्टों का बहुत बड़ा हाथ है। कोविड-19 वैक्सीन, चंद्रयान जैसी उपलब्धियों का भी उदाहरण दिया।

इस मौके पर विशिष्ट अतिथि वीवाय अस्पताल के डायरेक्टर डा. पूर्णेंदु सक्सेना, छत्तीसगढ़ विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के डायरेक्टर जनरल एसएस बजाज, डा. दिलीप सिंह सिसोदिया, डा. राकेश त्रिपाठी, डा. जायस के. राय सहित अन्य लोग मौजूद रहे।

कृषि वेस्ट मैटेरियल से एथेनाल बनाने की तकनीक बनाई

क्रेडा विभाग की प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर डा. प्रियंका पचौरी मिश्रा ने कृषि वेस्ट को कन्वर्ट करके एथेनाल बनाने की तकनीक बताई है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में कृषि वेस्ट बहुत ज्यादा रहता है, उसके आमतौर पर फेंक दिया जाता है। इससे हम फार्मेंटेशन टेक्नोलाजी और माइक्रोआर्गेनिज्म के माध्यम से एथेनाल बना सकते हैं। इससे वेस्ट मैटेरियल का भी यूटिलाइज हो जाएगा।अभी हम कृषि वेस्ट को फेंक देते हैं। इतना ज्यादा वेस्ट मैटेरियल निकलता है कि इसे कहां फेके सोचना पड़ता है। गन्ने के छिलके को भी हम फेंक देते हैं। इससे भी एथेनाल निकाला जा सकता है।

छात्रों का ड्रापआउट जानने बनाया एप्लीकेशन

स्कूलों में बढ़ रही ड्रापआउट की समस्या के निदान के लिए खुशबू अग्रवाल ने जावा में स्टूडेंट्स ड्रापआउट रेशियो (एसडीआर) एप्लीकेशन बनाया है। इसके माध्यम से स्कूलों में ड्रापआउट की समस्या के बारे में पता लगाया जाएगा।

खुशबू ने बताया कि गूगल फार्म के जरिए अबतक 25 हजार स्टूडेंट्स के ऊपर सर्वे कर चुकी हूं।सर्वे में प्राइमरी, अपर प्राइमरी, सेकंडरी लेवल के छात्रों को रखते हैं। इसमें परिवार, प्रशासन, शिक्षक और अन्य का विकल्प देते हैं। इनमें से किस कारण से छात्रों का ड्रापआउट बढ़ रहा है। सही तथ्य आने के बाद प्रशासन को ड्रापआउट रोकने की दिशा में रणनीति बनाने में सहायता मिलेगी।

आयरन स्लैग से गिट्टी का विकल्प कर रहे तैयार

शोधार्थी प्रतीक कुमार गोयल जियो पालीमर टेक्नोलाजी पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) में जो स्टील स्लैग (आयरन से स्टील बनाने की प्रक्रिया में निकला मलबा या झाग) है। इससे गिट्टी के रूप में एक विकल्प तैयार कर रहे हैं। यह क्रांक्रीट बिल्कुल सीमेंट फ्री है।

इससे यह फायदा होगा कि अभी जो स्लैग आयरन और स्टील उद्योग से निकल रहा है उसका जमीन में दबा दिया जाता है जिससे पानी और प्रदूषण होता है। लेकिन स्लैग को कूलिंग करने के बाद गिट्टी का रिप्लेसमेंट तैयार कर ले तो इससे गिट्टी के लिए माइनिंग नहीं करना पड़ेगा। इससे पर्यावरण और ईधन की भी बचत होगी। अभी इस प्रक्रिया में लैब में बहुत हद तक सफल हो चुके हैं।C

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