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Lok Sabha Chunav 2024: लोकतंत्र की आवाज बनता रहा बस्तर का राज दरबार, जानिए इस सीट का इतिहास

HIGHLIGHTS

  1. 17 चुनावों में छह बार कांग्रेस, पांच बार भाजपा ने दर्ज की जीत
  2. बस्‍तर लोकसभा सीट से एक बार जनता पार्टी और छह बार निर्दलीय जीते
  3. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है छत्‍तीसगढ़ का बस्‍तर लोकसभा सीट

विनोद सिंहl Lok sabha chunav 2024: छत्‍तीसगढ़ में चार दशक से बस्तर का क्षेत्र नक्सली गतिविधियों के कारण भी देश-दुनिया में चर्चित रहा है। जिला मुख्यालय जगदलपुर को आदिवासी संस्कृति की राजधानी भी कहा जाता है। आजादी से पूर्व यह बस्तर रियासत की राजधानी थी। यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। प्रथम चुनाव से लेकर 1971 के पांचवें चुनाव तक यहां की राजनीति में राजमहल का जबरदस्त प्रभाव रहा। तब मां दंतेश्वरी के माटी पुजारी, आदिवासियों के भगवान के नाम से चर्चित महाराजा स्वर्गीय प्रवीरचंद भंजदेव के इशारे पर चुनाव में जीत-हार तय होती रही। प्रवीरचंद भंजदेव जब तक जिंदा थे, कांग्रेस की दाल नहीं गली।

1952 के पहले आम चुनाव में प्रवीरचंद भंजदेव ने राजदरबारी मुचाकी कोसा को निर्दलीय चुनाव लड़ाया और वह सांसद निर्वाचित हुए। पहले ही चुनाव में कांग्रेस को समझ आ गया था कि राजमहल को पक्ष में किए बिना आगे का रास्ता बस्तर में काफी कठिन होगा। इसलिए भंजदेव से दूरियां कम करते हुए कांग्रेस ने उन्हें भरोसे में लेकर पार्टी में शामिल कर लिया। यह 1957 की बात है।

इस चुनाव में राजमहल के समर्थन में आने से कांग्रेस के सुरती क्रिस्टैया चुनाव जीतने में सफल हुए, लेकिन प्रवीर और कांग्रेस के बीच जल्दी की अलगाव हो गया। प्रवीरचंद के जिंदा रहते और 1966 में उनके निधन के बाद हुए दो चुनावों में भी कांग्रेस को राजमहल समर्थक निर्दलीय प्रत्याशियों से हार मिली। आपातकाल के बाद जनता पार्टी के दृगपाल शाह 1977 के चुनाव में सांसद बने। पिछले चुनाव में कांग्रेस के दीपक बैज सांसद बने थे।

छठी अनुसूची को लेकर कांग्रेस, भाजपा को मिला गच्चा

आदिवासी बहुल बस्तर में संविधान की छठी अनुसूची को लागू करने की मांग और विरोध को लेकर 1995 का साल राजनीतिक दृष्टि से भी गहमागहमी वाला रहा। भाजपा अपने उस समय के बड़े नेता बलीराम कश्यप के नेतृत्व में छठी अनुसूची को लागू करने के विरोध में थी। दूसरी ओर कांग्रेस दो धड़ों में बंटी थी। महेंद्र कर्मा पार्टी के अपने समर्थकों के साथ भाजपा नेता बलीराम कश्यप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विरोध में खड़े थे, वहीं मानकुराम सोढ़ी, अरविंद नेताम जैसे पुराने कांग्रेसी छठी अनुसूची को लागू करने की पैरवी में लगे थे।

1996 का लोकसभा चुनाव बस्तर में इसी मुद्दे पर लड़ा गया। महेन्द्र कर्मा ने कांग्रेस छोड़ दी और निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े थे। कर्मा मैदान में थे, इसलिए भाजपा ने बलीराम कश्यप को चुनाव नहीं लड़ाते हुए राजाराम तोड़ेम को उतारा जबकि कांग्रेस ने मानकुराम सोढ़ी को लड़ाया। महेंद्र कर्मा छठी अनुसूची के विरोध में समर्थन प्राप्त कर चुनाव जीत गए। कांग्रेस दूसरे व भाजपा तीसरे नंबर पर रही।

कांग्रेस के लिए दीपक बने उजाला

1998 से 2019 तक लगातार 20 साल तक भाजपा के कब्जे में रही बस्तर ससंदीय सीट में 2019 में बाजी पलट गई। इस चुनाव में भाजपा ने प्रदेश के अपने सभी तत्कालीन सांसदों का टिकट काटकर नए प्रत्याशियों को उतारा था।

बस्तर सीट से दिनेश कश्यप की टिकट काटकर उनके स्थान पर चित्रकोट सीट से पूर्व विधायक बैदूराम कश्यप को भाजपा ने लोकसभा चुनाव लड़ाया। कांग्रेस ने भी चित्रकोट सीट से अपने तत्कालीन विधायक दीपक बैज को मैदान में उतार दिया। दीपक कांग्रेस के लिए उजाला बनकर सामने आए। दो दशक बाद बस्तर सीट पर भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत हुई।

मुचाकी का रिकार्ड, जो बन गया इतिहास

पहले चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी मुचाकी कोसा ने एक रिकार्ड बनाया था, जो बीते 67 वर्षों से अटूट बना हुआ है। इस दौरान एक उपचुनाव को मिलाकर हुए 18 चुनावों में इस रिकार्ड तक कोई नहीं पहुंच पाया है। राजमहल समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी मुचाकी कोसा को 1952 के चुनाव में कुल विधिमान्य मतों में से 83.05 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सुरती क्रिस्टैया को मात्र 16.95 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे।

मुचाकी कोसा को 1,77,588 मत और सुरती क्रिस्टैया को 36,257 मत प्राप्त हुए थे। मुचाकी ने 1,41,331 मत और 66.09 फीसद के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। विधिमान्य मतों में एक तरफा रिकार्ड 83.05 मत आज तक कोई प्राप्त नहीं कर पाया। इसके बाद अधिकतम मत पाने का रिकार्ड कांग्रेस के मानकूराम सोड़ी के नाम पर है। उन्होंने 1984 के चुनाव में 54.66 प्रतिशत मत प्राप्त कर जीत दर्ज की थी।

1998 के चुनाव में सोड़ी युग का अंत हुआ

पांच बार के विधायक और तीन बार के सांसद व 28 साल तक बस्तर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मानकुराम सोढ़ी युग का अंत 1998 के चुनाव में हो गया। इस चुनाव में महेन्द्र कर्मा कांग्रेस में लौट आए थे, लेकिन उन्हें कांग्रेस ने बस्तर की बजाय कांकेर सीट से लड़ने भेज दिया। मानकूराम सोड़ी को जगदलपुर सीट से चुनाव लड़ाया गया।

कांग्रेस बस्तर और कांकेर दोनों सीटें हार गई। यह चुनाव बस्तर में भाजपा के युग की शुरुआत थी। बलीराम कश्यप पहली बार जीतकर सांसद बने और जब तक जीवित रहे हार का मुंह नहीं देखा। बलीराम चार बार सांसद रहे और उनके निधन के बाद उनके पुत्र दिनेश कश्यप सांसद निर्वाचित हुए। 1998 के चुनाव में हार के साथ ही सोड़ी युग का अंत हो गया।

8 विधानसभा क्षेत्र हैं बस्तर लोकसभा में

कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर चित्रकोट, कोंटा, बीजापुर व दंतेवाड़ा।

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