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Lok Sabha Election 2024: 1996 में विष्णुदेव साय ने रखी जीत की नींव, भाजपा के लिए बना अभेद गढ़, जानें इस लोकसभा सीट का इतिहास

HIGHLIGHTS

  1. विष्णुदेव साय ने रायगढ़ से प्रारंभ किया जीत का सिलसिला जो आज तक जारी है।
  2. रायगढ़ लोकसभा सीट में ग्रामीण आबादी का प्रतिशत 85.79 है।
  3. कुल आबादी में आदिवासियों का हिस्सा 44 फीसदी, अनुसूचित जाति की आबादी 11.70 फीसदी है।

विश्वनाथ रायl Raigarh Lok Sabha Seat: छत्‍तीसगढ़ की रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र का इतिहास अपने आप में रोचक है। इस संसदीय क्षेत्र ने छत्तीसगढ़ को जहां दो मुख्यमंत्री दिए वहीं राज परिवार के पांच सदस्य सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन प्रवक्ता अजीत जोगी का राष्ट्रीय राजनीति में प्रादूर्भाव रायगढ़ से ही हुआ। वर्ष 1998 में कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित रायगढ़ लोकसभा सीट से जोगी को उम्मीदवार बनाया गया। जोगी ने जीत दर्ज की और सीधे संसद पहुंच गए।

रायगढ़ लोकसभा सीट जोगी के लिए शुभफलदायक रही। रायगढ़ के रास्ते दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1996 में भाजपा ने विष्णुदेव साय को चुनाव मैदान में उतारा। साय ने जीत का सिलसिला प्रारंभ किया जो आज तक जारी है। या यूं कहें कि विष्णुदेव साय ने रायगढ़ लोकसभा में भाजपा के लिए जीत की जो नींव तैयार की और उसे अभेदगढ़ बनाया है उसे कांग्रेस आजतक भेद नहीं पाई।

रायगढ़ संसदीय सीट के नाम एक और कीर्तिमान दर्ज है। राज परिवार के पांच सदस्यों ने यहां से प्रतिनिधित्व किया है। जशपुर राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले विजयभूषण सिंहदेव, सारंगढ़ राजपरिवार से रजनीदेवी, राजा नरेशचंद्र सिंह व पुष्पा देवी सिंह व सरगुजा राजपरिवार से चंडिकेश्वरशरण सिंहदेव यहां से सांसद बने। रायगढ़ लोकसभा सीट में ग्रामीण आबादी का प्रतिशत 85.79 है। कुल आबादी में आदिवासियों का हिस्सा 44 फीसदी है जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 11.70 फीसदी है।

गौरवशाली रहा है रायगढ़ का इतिहास

रायगढ़ की ख्याति इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के कारण है। यहां कभी अंग्रेजों का प्रत्यक्ष शासन नहीं रहा। राजाओं के माध्यम से अंग्रेज यहां राज करते रहे। महाराज मदन सिंह को रायगढ़ का संस्थापक माना जाता है। राजा चक्रधर सिंह स्वतंत्र रायगढ़ के अंतिम राजा हुए। आज़ादी के बाद रायगढ़ पहला राज्य था जो भारतीय संघ में शामिल हुआ।

रायगढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने अब तक छह बार चुनाव जीता है। 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस से यह सीट छीनी थी। फिर 1989 में बीजेपी उम्मीदवार नंद कुमार साय ने कांग्रेस से यह सीट छीन थी। विष्णु देव साय ने 1999 में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को हराया था फिर सांसद बने। अजीत जोगी ने 1998 में रायगढ़ से लोकसभा का चुनाव जीता था। लेकिन, उसके बाद से रायगढ़ में कांग्रेस जीत के लिए तरस गयी है।

आजादी के बाद पहले चुनाव में बने दो सांसद

आजादी के बाद वर्ष 1952 में जब लोकसभा क्षेत्र का गठन किया गया तब सरगुजा और रायगढ़ को एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया था। पहले आम चुनाव में यहां से दो सांसद निर्वाचित हुए। सामान्य वर्ग और अनुसूचित जनजाति वर्ग से सांसद का निर्वाचन हुआ। सामान्य वर्ग से चंडिकेश्वर शरण सिंहदेव व अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाबूनाथ सिंह सांसद निर्वाचित हुए। दो सांसदों की यह सीट पांच साल ही रही। इसके बाद नए सिरे से लोकसभा क्षेत्र का परिसीमन हुआ और रायगढ़ व सरगुजा को अलग-अलग संसदीय क्षेत्र का दर्जा मिला।

लगातार जीत दर्ज करने वाले विष्णु की जगह गोमती

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सभी निर्वाचित सांसदों को ड्राप कर दिया था और नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतारा था। रायगढ़ से चार बार के सांसद विष्णुदेव साय को भी टिकट नहीं मिली। उनकी जगह गोमती साय को भाजपा ने नए चेहरे के रूप में चुनावव मैदान में उतारा। जीत का सिलसिला जारी रहा। गोमती चुनाव जीतीं और दिल्ली पहुंच गई। विष्णुदेव साय को विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कुनकुरी विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा। साय जीते और वर्तमान में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं।

कांग्रेस के लिए प्रतिकूल ही रही परिस्थितियां

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत सभी आठ विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। आठ सीटों पर कांग्रेस के विधायक काबिज थे। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के गोमती साय से मुकाबला के लिए धरमजयगढ़ के विधायक लालजीत सिंह राठिया को चुनाव मैदान में उतारा था। हुआ ये कि विधायक राठिया संसदीय क्षेत्र की अन्य सीटों पर पिछड़ने के साथ ही अपनी सीट धरमजयगढ़ में भी भाजपा उम्मीदवार से पीछे रहे। आठ में से तीन सीटों पर ही कांग्रेस बढ़त बना पाई।

कांग्रेस लगातार बदल रही चेहरा, सफलता दूर

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने धरमजयगढ़ के विधायक लालजीत सिंह राठिया को उम्मीदवार बनाया था। 2004 में कांग्रेस ने पत्थलगांव सीट के वरिष्ठ विधायक रामपुकार सिंह को टिकट दिया था। 2009 के चुनाव में लैलूंगा से विधायक चुने गए हृदयराम राठिया को मैदान में उतारा। 2013 में आरती सिंह के रूप में नया चेहरा सामने किया, लेकिन कोई जीत नहीं दिला पाया। चेहरा बदलने का लाभ भी कांग्रेस को नहीं मिल पा रहा है।

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