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Lok Sabha Election 2024: रोचक रहा रायपुर लोकसभा सीट का इतिहास, पहले था कांग्रेस का गढ़, अब भाजपा का कब्जा

HIGHLIGHTS

  1. भाजपा के रमेश बैस सबसे अधिक सात बार जीते, कौशिक ने लगाई थी कांग्रेस के गढ़ में सेंध
  2. मिनीमाता, विद्याचरण, आचार्य कृपलानी और केयूर भूषण जैसे दिग्गजों से चर्चित रही सीट

रायपुर। Lok Sabha Election 2024: छत्‍तीसगढ़ का रायपुर लोकसभा सीट का इतिहास बेहद अहम है। देश में जब पहली बार चुनाव हुए थे, तब अविभाजित मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ में लोकसभा की सात सीटें रहीं। इनमें सरगुजा-रायगढ़, बिलासपुर, बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर, महासमुंद, दुर्ग, दुर्ग-बस्तर, बस्तर शामिल है। यानी सरगुजा-रायगढ़, बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर और दुर्ग-बस्तर एक सीट हुआ करती रही है। 1952 और 1957 के चुनाव में रायपुर संसदीय क्षेत्र से दो-दो लोकसभा सदस्य चुने गए थे।

यह वही सीट है जिस पर आजादी के समय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे आचार्य कृपलानी ने भी चुनाव लड़ा था, इतना ही नहीं, प्रदेश की पहली महिला लोकसभा सदस्य व समाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ने वाली मिनीमाता अगम दास गुरु भी यहां सदस्य रहीं। इसी तरह समाजवादी नेता पुरुषोत्तम लाल कौशिक ने भी इसी सीट से राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बनाई।
 

यहां से निर्वाचित कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल का आपातकाल के दौरान और बाद में भी राष्ट्रीय राजनीति में दबदबा रहा। वहीं गांधीवादी और किसान मजदूर आंदोलन के प्रणेता केयूर भूषण भी इसी रायपुर संसदीय क्षेत्र से दो बार लोकसभा सदस्य रहे और सबसे अधिक सात बार चुनाव जीतकर वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल का दायित्व संभाल रहे रमेश बैस ने बड़ा रिकार्ड बनाकर अपनी अलग पहचान बनाई।

शुरुआत में यह सीट रही कांग्रेस का गढ़

आजादी के बाद के शुरुआती दशक में जब विभिन्न चुनावों में कांग्रेस के सामने बड़े राजनीतिक दल पानी मांगते थे, उस समय जनता पार्टी (अब भाजपा) के पुरुषोत्तम कौशिक ने 1977 में बड़ी जीत हासिल की थी। 1952 से 1971 तक पांच चुनावों में कांग्रेस लगातार जीत हासिल करती रही और कौशिक ने बड़ा झटका दिया था।

रायपुर लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो 1951 से अब तक 17 बार हुए चुनाव में आठ बार मतदाताओं ने कांग्रेस को चुना। कांग्रेस की लगातार जीत का मिथक पुरुषोत्तम कौशिक ने तोड़ा। इसके बाद फिर यह सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई। 1989 में रमेश बैस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे केयूर भूषण को हराया। 1991 में कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल लोकसभा सदस्य बने।

इसके बाद 1996 में विद्याचरण के बड़े भाई श्यामाचरण शुक्ल को बैस ने हराया। इसके बाद से रायपुर सीट भाजपा का गढ़ बन गया। बैस 1996, 1998, 1999,2004, 2009 और 2014 तक लगातार लोकसभा चुनाव जीते। उनके कार्यकाल में हिंदूवादी संगठनों की जड़ें यहां गहरी होती गईं। अभी भाजपा के सुनील सोनी लोकसभा सदस्य हैं।

ब्रिटिश शासन में रायपुर बना था राजधानी

इतिहासकार डा. रमेंद्रनाथ बताते हैं कि अंग्रेज ने जब फूट डालो और राज करो की नीति के तहत काम कर रहे थे, उसी समय 1817 में मराठा-अंग्रेज तृतीय युद्ध में मराठा पराजित हो गए थे। इसके बाद 1818 में छत्तीसगढ़ में नियुक्ति कर्नल एग्न्यु ने रतनपुर से रायपुर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया था। इसके बाद एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ एक नये राज्य के रूप में मान्यता मिली और पुनः रायपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ।

बतादें कि मराठों ने रायपुर में अपना आधिपत्य किया था उसके पूर्व तक को राजधानी माना जाता था, परंतु 758 ईसवी में जब मराठा शासक बिम्बाजी नागपुर से छत्तीसगढ़ के रतनपुर आए और रतनपुर पुनः सत्ता का केंद्र बन गया था। रायपुर नगर की स्थापना करीब 14वीं ईसवी में की गई थी। इसके पहले यह एक गांव था।

रायपुर में दो बार आए थे गांधी

20 दिसंबर 1920 में महात्मा गांधी रायपुर पहली बार आए थे। बापू यहां कंडेल ग्राम (वर्तमान धमतरी जिले) में किए गए सत्याग्रह के लिए आए थे। दूसरी बार 1933 में रायपुर पहुंचे थे और पं. रविशंकर शुक्ल के निवास बूढ़ापारा में रुके थे।

सात बार के सांसद बैस हैं अभी राज्यपाल

रायपुर लोकसभा क्षेत्र से सात बार सांसद रहे रमेश बैस को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है। इसके पहले बैस झारखंड और त्रिपुरा के राज्यपाल थे। इससे पहले प्रदेश से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा ही किसी राज्य के राज्यपाल बन पाए थे। वोरा को उत्त्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था। ओबीसी वर्ग से आने वाले बैस पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रहे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी लोकसभा का टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारा था।

विद्याचरण को यहीं से पहचान, झेले आपातकाल का गुस्सा भी

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल को रायपुर लोकसभा सीट से ही पहचान मिली। 1971 में हुए चुनाव में मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल के पुत्र विद्याचरण शुक्ल ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जनसंघ के प्रत्याशी बाबूराव पटेल को 84 हजार से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था। वहीं आपातकाल में विद्याचरण शुक्ल भी लोगों के गुस्से से बच नहीं पाए और 1977 में हुए चुनाव में लोकदल के प्रत्याशी के तौर पर खड़े पुरुषोत्तम लाल कौशिक से 85 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित हुए थे।

समाज की कुरीतियों से लड़ीं मिनीमाता

1916 में असम के नगांव जिले में जन्मी मिनाक्षी बड़ी होकर पूरे देश में ”मिनीमाता” के नाम से जानी जाएंगी, ऐसा किसी ने नहीं सोचा होगा। उनकी शिक्षा गर्ल्स स्कूल, नवागांव और रायपुर में हुई थी। जीवन में विपरीत परिस्थितियों से निरंतर मजबूती के साथ लड़ते हुए मिनाक्षी मिनीमाता के रूप में पूरे देश और खास कर छत्तीसगढ़ के लोगों की मसीहा बनीं।

मिनीमाता छत्तीसगढ़ की पहली महिला लोकसभा थीं। समाज में पिछड़ापन और छुआछूत जैसी तमाम कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। मिनीमाता 1952, 1957, 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस पार्टी की टिकट से अलग-अलग सीटों लोकसभा सदस्य चुनी गई थीं। उन्होंने अस्पृश्यता बिल को पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, साथ ही बाल विवाह, दहेज प्रथा, गरीबी और अशिक्षा दूर करने के लिए भी आवाज उठाती रहीं।

कांग्रेस के गढ़ में कौशिक ने लगाई थी सेंध

कांग्रेस का गढ़ बन चुके रायपुर लोकसभा सीट से 1977 में चुनाव जीतकर पुरुषोत्तम लाल कौशिक ने जबरदस्त सेंध लगाई थी। वह तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय मोरारजी भाई देसाई के मंत्रिमंडल में मार्च 1977 से जुलाई 1979 तक केन्द्रीय पर्यटन और नागरिक विमानन मंत्री रहे। स्वर्गीय चौधरी चरणसिंह के मंत्रिमंडल में जुलाई 1979 से जनवरी 1980 तक केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में देश के विकास में सराहनीय योगदान दिया। कौशिक का जन्म 24 सितंबर 1930 को महासमुंद में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1947 में रायपुर के सालेम स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की।

रानी ने चलाई हुकूमत, आचार्य कृपलानी भी हारे

वर्ष 1957 में रानी केशर कुमारी देवी के पहले रायपुर सांसद राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह रहे। उनके बाद रानी केशर देवी 23.59 मत हासिल कर सांसद निर्वाचित हुईं।

1967 में हुए चुनाव में कांग्रेस के लखनलाल गुप्ता ने जीत हासिल की। उन्होंने 1947 में भारत की आजादी के समय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जेबी कृपलानी (आचार्य कृपलानी) को पराजित किया था। कृपलानी कांग्रेस से अलग होकर जन कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर खड़े हुए थे।

लोकसभा सदस्यों का रायपुर सीट पर ये रहा इतिहास

चुनावी वर्ष व लोकसभा सदस्य

1952 : बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस से दो लोकसभा सदस्य भूपेन्द्र नाथ मिश्रा और मिनीमाता अगम दास गुरु चुनी गईं।

1957: कांग्रेस के बीरेंद्र बहादुर सिंह और रानी केशर कुमारी देवी चुनीं गईं।

केशर कुमारी देवी

1962: रायपुर लोकसभा सीट पर रानी केशर कुमारी देवी लोकसभा सदस्य चुनीं गईं।

1967: कांग्रेस पार्टी के लखन लाल गुप्ता लोकसभा सदस्य चुने गए।

1971: कांग्रेस पार्टी से विद्याचरण शुक्ल लोकसभा सदस्य चुने गए।

1977: जनता पार्टी से पुरुषोत्तम कौशिक लोकसभा सदस्य चुने गए।

1980: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) से लोकसभा सदस्य चुने गए।

1984: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण कांग्रेस से दोबारा लोकसभा सदस्य चुने गए।

1989: भाजपा से पहली बार रमेश बैस लोकसभा सदस्य बने।

1991: कांग्रेस से विद्याचरण शुक्ल दूसरी बार लोकसभा सदस्य बने।

1996: भाजपा से दूसरी बार रमेश बैस लोकसभा सदस्य बने।

1998: भाजपा से तीसरी बार रमेश बैस लोकसभा सदस्य बने।

1999: भाजपा से चौथी बार रमेश बैस लोकसभा सदस्य बने।

2004: भाजपा से पांचवी बार रमेश बैस लोकसभा सदस्य बने।

2009: भाजपा से छठवीं बार रमेश बैस लोकसभा सदस्य बने।

2014: भाजपा से सातवीं बार रमेश बैस लोकसभा सदस्य बने।

2019: भाजपा से पहली बार सुनील कुमार सोनी लोकसभा सदस्य बने।

लोकसभा सीट में आने वाली विधानसभा क्षेत्र

रायपुर लोकसभा सीट के तहत नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें बलौदाबाजार, भाटापारा, धरसींवा, रायपुर नगर पश्चिम, रायपुर नगर उत्तर, रायपुर नगर दक्षिण, रायपुर ग्रामीण, अभनपुर और आरंग विधानसभा क्षेत्र शामिल है।

रायपुर लोकसभा सीट का जातिगत समीकरण

लोकसभा क्षेत्र के बलौदाबाजार, भाठापारा, धरसींवा और अन्य सीटों पर कुर्मी मतदाताओं की संख्या अधिक हैं। इसी तरह आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, भाठापारा, धरसींवा में सतनामी मतदाताओं की भी बहुलता है। वहीं अभनपुर, रायपुर ग्रामीण, आरंग, बलौदाबाजार, भाठापारा, धरसींवा और रायपुर पश्चिम में साहू मतदाता की अधिकता है।

भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों के आधार पर इन सीटों के कुर्मी, साहू और सतनामी मतदाता लोकसभा सदस्य चुनने में अहम भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार रायपुर उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में जातिगत समीकरणों ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाते क्योंकि इस विधानसभा क्षेत्र में सभी वर्ग के मतदाता शामिल हैं।

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