‘संजीवनी’ धान इम्युनिटी बढ़ाने के साथ ही कैंसर की रोकथाम में भी है मददगार, IGKV के विज्ञानियों ने बताई ये विशेषता
HIGHLIGHTS
- इंदिरा गांधी कृषि विवि और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने छह वर्षों के शोध के बाद किया है तैयार
- धान की इस किस्म के चावल का उपयोग 10 दिन तक करने के बाद ही दिखते लगता है असर
- चूहों पर किया गया प्रयोग रहा है सफल, औषधीय गुणों का वृहद स्तर पर किया गया है परीक्षण
वाकेश साहू/रायपुर। Sanjeevani Dhan Benefits: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करते हुए धान की नवीन औषधीय किस्म ‘संजीवनी’ विकसित की है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और कैंसर कोशिकाओं की रोकथाम में उपयोगी पाई गई है। संजीवनी का विकास छत्तीसगढ़ की पारंपरिक औषधीय धान की किस्मों से चयन कर किया गया है। इसके औषधीय गुणों के वैज्ञानिक आधार का विस्तृत विश्लेषण कर इस किस्म को तैयार किया गया है। केवल 10 दिन तक इसका उपयोग करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि देखी गई है।
बताया जाता है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुंबई के सहयोग से पिछले छह वर्षों में किए गए शोध के बाद तैयार संजीवनी किस्म में मौजूद उच्च स्तर के फाइटोकेमिकल्स के कारण ही इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और कैंसररोधी औषधीय गुण मिले हैं।
संजीवनी धान में सामान्य धान की अपेक्षा 231 अतिरिक्त फाइटोकेमिकल्स पाए गए हैं, जिनमें से सात मेटोबोलाइट शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के लिए आवश्यक ट्रांस्क्रिप्शन फैक्टर को सक्रिय करते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बीज उपसमिति ने संजीवनी धान की किस्म की अनुशंसा की है। इसके अलावा बौना लुचई, छत्तीसगढ़ तेजस धान, इंद्रावती धान और छत्तीसगढ़ ट्राम्बे मूंगफली नवीन किस्मों को भी अनुशंसित किया गया है।
तीन प्रोटोटाइप उत्पाद तैयार
विज्ञानियों द्वारा इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में संजीवनी चावल से तीन प्रोटोटाइप उत्पाद तैयार किए गए हैं, जिनमें संजीवनी इंस्टेंट, संजीवनी मधु कल्क और संजीवनी राइस बार शामिल हैं।
संजीवनी इंस्टेंट- एक पात्र में दो चम्मच (8-10 ग्राम) ब्राउन चावल लें। इसे 30 मिलीलीटर गुनगुने गर्म पानी में डालकर 10 मिनट के लिए ढंककर छोड़ दें। पानी को छानकर अलग कर लें। चावल में दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह-सुबह (नाश्ते से पहले) खाएं।
संजीवनी मधु कल्क- संजीवनी मधु कल्क को प्रसंस्कृत ब्राउन चावल पाउडर को शहद के साथ मिलाकर बनाया जाता है। इसे दिन में एक चम्मच सुबह-सुबह (नाश्ते से पहले) खाएं।
संजीवनी राइस बार- यह बार संजीवनी ब्राउन राइस, अलसी, कद्दू के बीज, चना, सूरजमुखी के बीज और खजूर से तैयार किया गया है। सर्वोत्तम लाभ के लिए नाश्ते से पहले हर दिन एक बार खाना चाहिए।
इस तरह से किया शोध
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. गिरीश चंदेल के नेतृत्व में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई के सहयोग से किए गए शोध के अनुसार संजीवनी चावल मानव स्तन कैंसर, फेफड़ों के कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर कोशिकाओं के विरुद्ध शक्तिशाली कैंसररोधी गुण प्रदर्शित करता है।
संजीवनी चावल मानव स्तर कैंसर कोशिका और मानव कोलोरेक्टल कैंसर कोशिका का शक्तिशाली अवरोधक है। इस परिणाम की पुष्टि के लिए स्तन कैंसर कोशिका के साथ चूहों पर अध्ययन किया गया, जिसमें संजीवनी ब्राउन राइस के सेवन से चूहों में स्तन कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि अवरुद्ध हो गई।
केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान लखनऊ व टाटा मेमोरियल मुंबई द्वारा किए गए स्वतंत्र अध्ययनों में संजीवनी चावल में प्रारंभिक तौर पर मानव स्तन कैंसर कोशिका के विरुद्ध कैंसर अवरोधी गुण देखे गए हैं। अनुसंधान कार्य इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानी डा. दीपक शर्मा और भाभा एटामिक अनुसंधान केंद्र के विज्ञानी डा. दीपक शर्मा के मागर्दशन में संचालित किया जा रहा है।
यह हैं विशेषताएं
संजीवनी चावल के सेवन से शरीर में पाए जाने वाले मैक्रोफेजेस नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं की वृद्धि होती है, जिसका कार्य शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया और मृत कोशिकाओं को दूर करना है। शोध के अनुसार संजीवनी ब्राउन राइस द्वारा उच्च बैक्टीरियल फागोसाइटोसिस और मैक्रोफेज द्वारा मृत कोशिकाओं की निकासी व टी कोशिका प्रसार में वृद्धि होती है।
संजीवनी चावल एंटी-वायरल एवं कैंसर रोग से बचाव में उपयोगी पाया गया है। संजीवनी के सेवन से प्रतिरोधक क्षमता का विकास ट्रैंस्क्रिप्शन फैक्टर एनआरएफ-दो के सक्रियण के माध्यम से होता है। ट्रैंस्क्रिप्शन फैक्टर एनआरएफ-दो कई जींस की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है। संजीवनी राइस में सात ज्ञात जैविक अणु (मेटाबोलाइट्स) पाए गए जो कि ट्राइसोल, डीएल-कार्निटाइन, कौमारिन, एराकिडोनिक एसिड, कौमरिक एसिड, एडेनोसिन तथा वैनिलिन हैं।
यह मेटाबोलाइट्स एनआरएफ-दो सक्रियकर्ता का कार्य करते हुए ट्रैंस्क्रिप्शन फैक्टर एनआरएफ-दो को सक्रिय करते हैं। इससे शरीर में एंटीआक्सीडेंट का उत्पादन होता है, जिससे विभिन्न प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली क्रिया में वृद्धि होती है, जिसमें सूजन में कमी, बेहतर स्टेम से पुनर्जनन और शरीर में विषाक्त पदार्थों का निकासन शामिल हैं।