‘वंदे भारत’ में बैठकर पढ़ाई कर रहे नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चे, सुर्खियों में आया ये स्कूल
HIGHLIGHTS
- कांकेर के तरांदुल स्थित पोटाकेबिन स्कूल भवन की दीवाराें पर चित्रकारी कर दिया ट्रेन का रूप l
- यहां के ज्यादातर बच्चों ने नहीं देखी है ट्रेन, अब रोमांच के साथ करते हैं पढ़ाई, सुर्खियों में आया यह स्कूलl
वाकेश साहू/रायपुर। Raipur News: नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के तरांदुल का पोटाकेबिन आवासीय विद्यालय इन दिनों अपने नवाचार के कारण सुर्खियां बटोर रहा है। दरअसल इस विद्यालय भवन की बाहरी दीवारों पर चित्रकारी करके इसे वंदे भारत ट्रेन की शक्ल दी गई है।
कक्षाओं की बाहरी दीवारों पर कराई गई है ट्रेन की चित्रकारी
स्कूल के व्याख्याता प्रदीप सेन बताया कि पढ़ाई के दौरान पाठ्यक्रम में ट्रेन वाला चैप्टर आने के बाद से बच्चे हमेशा ट्रेन के बारे में पूछा करते थे। ऐसे में विचार आया कि क्यों ना विद्यालय भवन को ही ट्रेन का रूप दे दिया जाए। जिला शिक्षा अधिकारी और प्राचार्य के मार्गदर्शन में राजनांदगांव के चित्रकार की मदद से कक्षाओं की बाहरी दीवारों पर दो प्रकार की ट्रेन की चित्रकारी कराई गई, जिनमें एक वंदे भारत ट्रेन और दूसरा भारतीय रेल है।
विद्यालय भवन के सामने के हिस्से को भी रेलवे प्लेटफार्म का रूप देने का प्रयास किया गया है। इससे बच्चे उत्साहित हैं। उन्होंने बताया कि 88 बच्चों की दर्ज संख्या वाले इस विद्यालय के 80 प्रतिशत बच्चों ने अब तक जिला मुख्यालय और बहुत से बच्चों ने तो ब्लाक मुख्यालय तक नहीं देखा है।
क्या होता है पोटाकेबिन
व्याख्याता प्रदीप कुमार सेन ने बताया कि नक्सलियों ने जिन स्कूल भवनों को ध्वस्त कर दिया था, उनमें से ज्यादातर भवन नक्सल दहशत के चलते बनाए नहीं जा सके। 2011 में ऐसे स्थानों पर आवासीय विद्यालय शुरू किए गए ताकि नक्सल प्रभावित आदिवासी बच्चे यहां रहकर पूरी सुरक्षा के साथ पढ़ाई कर सकें। इन्हें ही पोटाकेबिन नाम दिया गया।
सेल्फी जोन बना
ट्रेन की चित्रकारी के चलते तरांदुल का पोटाकेबिन इन दिनों सेल्फी जोन बन गया है। यहां गुजरने के लोग भवन के पास खड़े होकर सेल्फी जरूर लेते हैं। इतना ही नहीं, आसपास के गांवों में मेहमान बनकर आने वाले लोग भी यहां आकर सेल्फी लेते हैं। आसपास के गांवों के ग्रामीण भी यहां बच्चों को लेकर पहुंचते हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी कांकेर भुवन जैन ने कहा, तरांदुल पोटाकेबिन आवासीय विद्यालय को ट्रेन का रूप देने के बाद से यह चर्चा में बना हुआ है। बच्चे बड़े उत्साह के साथ स्कूल पहुंचते हैं और यह अनुभूति करते हुए पढ़ाई करते हैं जैसे वे किसी ट्रेन के भीतर बैठे हों।