सशस्त्र सेना झंडा दिवस विशेष: अनुपम खेर की फिल्म रोककर दी थी विक्रम के बलिदान की खबर, जानिए कुछ अनकही बातें"/> सशस्त्र सेना झंडा दिवस विशेष: अनुपम खेर की फिल्म रोककर दी थी विक्रम के बलिदान की खबर, जानिए कुछ अनकही बातें"/>

सशस्त्र सेना झंडा दिवस विशेष: अनुपम खेर की फिल्म रोककर दी थी विक्रम के बलिदान की खबर, जानिए कुछ अनकही बातें

रायपुर/गिरीश वर्मा। Armed Forces Flag Day Special: देश की सीमा की सुरक्षा तीन सेनाएं कर रही हैं। जमीन मार्ग पर थल सेना दीवार बनकर खड़ी है, आसमान में वायु सेना निगरानी करती है और समुद्री सीमा को सुरक्षित रखने के लिए नौसेना तत्पर है। भारतीय सेना की बहादुरी, त्याग और समर्पण के सम्मान और वीर बलिदानियों की स्मृति में प्रति वर्ष सात दिसंबर को सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है। यह खास दिन थल सेना, नौसेना और वायुसेना के जवानों के कल्याण के लिए मनाते हैं और देश की सेना को सम्मानित करते हैं।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर शहर के वीर बलिदानियों की अनकही बातें प्रस्तुत करने जा रहे हैं, जिन्हें उनके परिवार वालों ने बताई। लेंफ्टिनेंट पंकज विक्रम की बड़ी बहन मीरा डोंगरे ने बताया कि दूरदर्शन में चल रही अभिनेता अनुपम खेर की फिल्म सारांश को बीच में रोककर सुनाई गई भाई के बलिदान होने की खबर से पूरा देश स्तब्ध हो गया था।
 

शहर के वीर सपूत बलिदानी लेंफ्टिनेंट पंकज विक्रम की बड़ी बहन मीरा डोंगरे ने बताया कि शादी के बाद मैं चंडीगढ़ में रह रही थी। पति मुझे बहाने से रायपुर लेकर आए। एयरपोर्ट पर भीड़ देखा तो अजीब लगा। फिर देखा मेरे माता-पिता और अन्य स्वजन भी मौजूद थे। देखा तो मेरा छोटा भाई पंकज विक्रम तिरंगे से लिपटा हुआ था। यह देखकर मैं सहम उठी। भाई की अंतिम यात्रा में पूरा शहर शोक में डूबा हुआ था। दुकान का शटर बंद कर अंतिम यात्रा में शामिल हुए थे।

मीरा डोंगरे ने बलिदानी लेंफ्टिनेंट पंकज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 1986-87 में लेफ्टिनेंट कर्नल पंकज विक्रम को शांति सेना के साथ श्रीलंका भेजा गया था। वहां भयानक विस्फोट हुआ। घायल होते हुए भी पंकज ने कुछ घायल साथियों को अस्पताल पहुंचाया। 14 अगस्त, 1987 को भयानक विस्फोट की चपेट में आने से वे बलिदान हो गए। तब पंकज की उम्र 23 वर्ष थी। कानपुर में जन्म के बाद पंकज की शालेय शिक्षा होलीक्रास स्कूल पेंशनबाड़ा में हुई थी। शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग की थी।

कहा था- अगली बार आऊंगा तो शादी कर लूंगा

देश की सीमाओं की रक्षा और नक्सलियों से लोहा लेते हुए सेना के जवान आवश्यकता पड़ने पर हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देते हैं। छत्तीसगढ़ महतारी के बलिदानी पुत्र चिरंजीव बघेल की भाभी कृष्णा बघेल ने बताया कि बलिदानी चिरंजीव बघेल का जन्म चार अप्रैल 1973 को जिले के पथरी गांव में हुआ था। वालीबाल में उनकी विशेष रुचि थी।

बचपन से वे सेना में जाकर देश सेवा करना चाहते थे। सेना में चयन होने के बाद बलिदानी होने के पूर्व वे माता-पिता की जिद पर यह कहकर गए थे कि अब वापस आऊंगा तो अपने सिर पर सेहरा बंधवा लूंगा पर अभी मुझे अपने देश की सेवा के लिए जाना है। चिंरजीव की तमन्ना उनके दिल में ही रह गई और बर्फीले तूफान में फंसकर छत्तीसगढ़ का यह युवा सैनिक अपनी आहुति देश के नाम कर गया।

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