CG Assembly Election 2023: सीट बढ़ाने के लिए पार्टियों ने लिया बागियों का सहारा, दर्जनभर नेताओं ने मुकाबले को बनाया त्रिकोणीय
रायपुर (राज्य ब्यूरो)। विधानसभा चुनाव में इस बार दलबदलू नेताओं की भी काफी दखल रही। भाजपा, कांग्रेस और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे (जकांछ) ने लगभग दर्जनभर ऐसे नेताओं को मैदान में उतारा था, जो अन्य दोनों पार्टियों में से किसी एक से अलग हो गए थे। यानी बागियों को शरण देने के बाद इन पार्टियों ने उन्हें पूरी तवज्जो दी। ऐसा इन पार्टियों ने इस उम्मीद के साथ किया कि उनकी जीत का आंकड़ा बढ़ जाएगा। अब यह तो तीन दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा कि इस रणनीति का किस पार्टी को कितना फायदा या नुकसान हुआ।
वैसे देखा जाए तो प्रदेश की कुल 90 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही असली मुकाबला है। कुछ सीटों पर जकांछ, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), आम आदमी पार्टी (आप) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोगपा) की भूमिका मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की ही रही। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने क्षेत्रीय जाति समीकरणों और जनता के समर्थन को ध्यान में रखते हुए ही एक दर्जन से अधिक दलबदलुओं को मैदान में उतारा।
सभी पार्टियों में दलबदलुओं की दखल
कांग्रेस ने जांजगीर-चांपा निर्वाचन क्षेत्र से व्यास कश्यप को मैदान में उतारा, जिन्होंने 2018 का विधानसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा था और उससे पहले वह सक्रिय रूप से भाजपा का हिस्सा थे। इसी तरह गुरु खुशवंत सिंह को आरंग निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा ने उतारा, जो मौजूदा कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस नेता शिव डहरिया के खिलाफ चुनाव लड़े। वह पहले कांग्रेस में थे। अनुभवी कांग्रेस नेता धरमजीत सिंह लोरमी सीट से 2018 के चुनाव में जकांछ के विधायक चुने गए थे। वह हाल ही में भाजपा में शामिल हुए और पार्टी ने उन्हें तखतपुर से टिकट दिया। जकांछ ने मस्तूरी सीट से भाजपा की बागी चांदनी भारद्वाज को मैदान में उतारा।
दलबदलू किसी पार्टी से ही जीतते रहे
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में जिन नेताओं और विधायकों ने पार्टियां बदली हैं, वे लंबे समय से राजनीति में नहीं हैं। अगर किसी अन्य पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है तो वे जीतने में सफल रहे हैं लेकिन अगर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा है तो उनका राजनीतिक भविष्य भी खतरे में है क्योंकि राज्य की जनता दलबदलू नेताओं पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करती। हालांकि, इस चुनाव में सभी पार्टियों ने दलबदलुओं को प्रत्याशी बनाया है।
दलबदल करने वालों का रिकार्ड ठीक नहीं
प्रदेश में दलबदल करने वाले नेताओं का रिकार्ड कभी अच्छा नहीं रहा। एक-दो मामलों को छोड़ दें तो दलबदल करने वाले नेताओं को न नए दल में कार्यकर्ताओं का समर्थन हासिल होता है, न जनता सर माथे पर बिठाती है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद सबसे बड़ा दलबदल पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल में हुआ था। जोगी ने विपक्ष भाजपा के 12 विधायकों को तोड़ लिया था। हालांकि तब जो दलबदल कर सत्तापक्ष के साथ गए थे, उनमें से अधिकांश चुनाव हार गए और अब राजनीतिक हाशिए पर हैं।