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छत्‍तीसगढ़ में हो NMDC का मुख्यालय, सीएम बघेल ने पीएम मोदी को लिखी चिठ्ठी, हर साल हो रहा 2000 करोड़ राजस्व का नुकसान

HIGHLIGHTS

  1. लौह अयस्कों के लिए भी स्थानीय उद्योग प्राथमिकता में नहीं
  2. छत्‍तीसगढ़ को राजस्व के साथ हो रहा रोजगार का नुकसान
  3. 1972 से हैदराबाद में हो रहा संयंत्र का प्रमुख कार्य

अजय रघुवंशी/रायपुर। Chhattisgarh News: राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) की स्थापना के 65 वर्ष बाद भी मुख्यालय तेलंगाना से छत्तीसगढ़ स्थानांतरित नहीं किया जा सका है। इसका नुकसान राजस्व के साथ ही रोजगार के रूप में छत्तीसगढ़ को उठाना पड़ रहा है। खनिज संपदाओं की खोज के बाद केंद्र सरकार ने 1958 में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) की नींव रखी और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एनएमडीसी का संयंत्र स्थापित किया गया। बस्तर के बैलाडीला, बचेली, किरंदुल, नगरनार आदि स्थानों पर एनएमडीसी का सबसे बड़ा संयंत्र हैं, लेकिन इसका मुख्यालय अभी भी तेलंगाना में स्थित है। हैदराबाद में बैठे अधिकारियों के दिशा-निर्देशों से एनएमडीसी का संचालन होता है।

इस मामले पूरे मामले पर अब राज्य सरकार ने केंद्र पर दबाव बनाया है कि एनएमडीसी का मुख्यालय छत्तीसगढ़ में स्थानांतिरत होना चाहिए। उद्योगपतियों का कहना है कि 1958 में एनएमडीसी की स्थापना के बाद बस्तर से नजदीक होने की वजह से हैदराबाद में हवाई, होटल आदि सुविधाओं की वजह से अस्थायी मुख्यालय बनाया गया था, लेकिन जैसे-जैसे उत्पादन शुरू हुआ अस्थायी मुख्यालय स्थायी रूप से हैदराबाद में ही शिफ्ट कर दिया गया। तब अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ में मुख्यालय के लिए दबाव नहीं बन पाया था, लेकिन अब राज्य सरकार ने इस मामले पर साफ कर दिया है कि खदान छत्तीसगढ़ में हैं तो मुख्यालय भी प्रदेश में ही होना चाहिए। इस विषय पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिठ्ठी लिखी है।

एनएमडीसी का मुख्यालय पर अब राजनीति मुद्दा

एनएमडीसी का हेड क्वार्टर अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। यह छत्तीसगढ़ में हो इसके लिए राजनीति तेज हो चुकी है। राज्य की कांग्रेस सरकार ने इस पर लड़ाई छेड़ दी है। विधानसभा चुनाव में भी इसका इस्तेमाल किया जाएगा। भाजपा सरकार के कार्यकाल में इस मुद्दे को लेकर बड़ा आंदोलन नहीं किया गया। हालांकि बस्तर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि पहले भी मुख्यालय प्रदेश में स्थापित करने की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं।

लौह अयस्कों के लिए छत्तीसगढ़ प्राथमिकता में नहीं

बस्तर क्षेत्र में खदान होने के बाद भी लौह अयस्कों के लिए छत्तीसगढ़ के उद्योग अभी भी एनएमडीसी की प्राथमिकता सूची में नहीं है। एनएमडीसी से हर वर्ष स्पंज आयरन उद्योगों को पांच से छह मिलियन टन आयरन ओर की मांग रहती है, लेकिन यह वर्तमान में तीन मिलियन टन से आगे नहीं बढ़ पा रहा है।

उद्योगपतियों का कहना है कि एनएमडीसी से पर्याप्त लौह अयस्क नहीं मिलने की वजह से मजबूरी में दक्षिण आफ्रीका और आस्ट्रेलिया से आयरन ओर मंगाना पड़ता है। स्थानीय उद्योगों को हर साल कम से कम 12 मिलियन टन आयरन ओर की जरूरत होती है। एनएमडीसी का सालाना उत्पादन 40 मिलियन टन से अधिक है। एनएमडीसी से छत्तीसगढ़ के अलावा तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब,झारखंड आदि राज्यों के साथ विदेश में भी लौह अयस्क निर्यात किया जाता है।

हर साल 2000 करोड़ राजस्व का नुकसान

उद्योगपतियों के मुताबिक हर वर्ष लगभग 8000 करोड़ के लाभ में आयकर के रूप में 2000 करोड़ रुपये का टैक्स वर्तमान में तेलंगाना के हिस्से में जा रहा है। मुख्यालय छत्तीसगढ़ स्थानांतरित होने से इसका लाभ छत्तीसगढ़ को मिलेगा।

25000 करोड़ लागत से स्टील प्लांट

बस्तर जिले के नगरनार में 25000 करोड़ रुपये की लागत से एनएमडीसी स्टील प्लांट तैयार किया गया है। इस प्लांट में उत्पादन क्षमता तीन मिलियन टन सालाना है। प्लांट का निर्माण आठ वर्ष पहले शुरू किया गया था। स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि स्टील प्लांट में प्रदेश के लोगों को रोजगार मिलना चाहिए।। एनएमडीसी स्टील लिमिटेड कंपनी 2 जनवरी 2015 को अस्तित्व में आईं, लेकिन इसका मुख्यालय भी तेलंगाना में बनाया गया।

छत्तीसगढ़ स्पंज आयरन मैन्युफेक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल नचरानी ने कहा, एनएमडीसी का मुख्यालय रायपुर में होना चाहिए। एनएमडीसी अपने 90 प्रतिशत व्यवसाय का संचालन छत्तीसगढ़ से करता है। अब राजधानी में विमान, होटल जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मुख्यालय प्रदेश में स्थानांतरित होने से उद्योगपतियों को राहत मिलेगी। लौह अयस्क में भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

छत्तीसगढ़ रोलिंग मिल एसोसिएशन महासचिव बांके बिहारी अग्रवाल ने कहा, मुख्यालय छत्तीसगढ़ में स्थानांतरित होने से छत्तीसगढ़ के उद्योगों के उद्योगों के लिए बेहतर होगा। प्राइजिंग पालिसी से लेकर लौह अयस्क की उपलब्धता लाजिस्टिक आदि मुद्दो पर सीधे बात हो सकेगी। अभी हमे तेलंगाना पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

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