धान खरीदेगी सरकार! मिशन-2023 में “दाम’ नहीं पूरी फसल पर “दांव’, अभी 15 क्विंटल ही बिक्री की सीमा

छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस “धान’ के हंसिये से वोटों की फसल काटने की तैयारी में है। इस बार दांव धान की कीमत पर नहीं, धान खरीदी की सीमा पर लगने जा रहा है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो अगले खरीफ सीजन में सरकार प्रति एकड़ 20 क्विंटल की दर से धान की खरीदी करेगी। अभी तक सरकार किसानों से प्रति एकड़ अधिकतम 15 क्विंटल धान की फसल ही खरीदती आ रही है।

राज्य सरकार और कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख रणनीतिकार ने बताया है, धान खरीदी की सीमा को 20 क्विंटल प्रति एकड़ करने की रणनीति पर गंभीरता से काम हो रहा है। पूरा कैल्कुलेशन तैयार है। नये खरीफ सीजन के साथ इसकी घोषणा हो जाएगी। अभी तक 23 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ औसत उत्पादन वाले किसान खरीदी पर कैपिंग की वजह से प्रति एकड़ केवल 15 क्विंटल धान ही समर्थन मूल्य पर बेच पाते थे। इसका दायरा बढ़ाकर 20 क्विंटल होने से धान उत्पादक किसानों का फायदा कई गुना बढ़ जाएगा। किसान कई वर्षों से धान खरीदी पर लगी यह कैपिंग हटाने की मांग करते आ रहे हैं। धान खरीदी के सीजन में ही 2023 के विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में उसका फायदा निश्चित रूप से कांग्रेस को मिलने वाला है।

प्रदेश के कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री रविंद्र चौबे ने एक बातचीत में यह कहा कि चुनावी सीजन में सरकार नई योजनाएं लेकर आ रही है। उसकी घोषणा सही मौका देखकर किया जाएगा। हालांकि उन्होंने यह इशारा जरूर किया कि इस बार भी पार्टी की घोषणाओं और सरकार की योजनाओं के केंद्र में गांव, किसान, आदिवासी, मजदूर और छोटे व्यापारी ही रहने वाले हैं। छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है। इसलिए धान उत्पादक किसान सरकार की प्राथमिकता में भी है। चौबे का कहना है, सरकार अभी राजीव गांधी किसान न्याय योजना के प्रति एकड़ 9000 रुपयों की इनपुट सब्सिडी को मिलाकर धान की जितनी कीमत दे रही है वह पूरे देश में सर्वाधिक है। अगले साल केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में 100 रुपए का भी इजाफा किया तो छत्तीसगढ़ के किसान के हाथ में एक क्विंटल का 2740 रुपया मिल जाएगा।

ऐसा हुआ तो केंद्र के साथ टकराव भी बढ़ेगा

धान के साथ कांग्रेस की रणनीति के साथ केंद्र सरकार के साथ टकराव बढ़ने की संभावना भी बढ़ी हुई है। दरअसल 2014 तक धान की सरकारी खरीदी पर कोई सीमाबंदी नहीं थी। 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद अनाज की सरकारी खरीदी को लेकर राज्यों पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए। इसमें गेहूं-धान के उत्पादन पर बोनस पर प्रतिबंध के साथ खरीदी की प्रति एकड़ सीमा भी प्रमुख था। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार ने 2014 के खरीफ सीजन में प्रति एकड़ 10 क्विंटल धान खरीदी की घाेषणा की। उसके बाद पूरे प्रदेश में आंदोलन छिड़ गया।

किसान सड़क पर आ गए। खरीदी केंद्रों पर प्रदर्शन होने लगे। भाजपा नेता घेरे जाने लगे। आनन-फानन में भाजपा की आपात बैठक के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पार्टी मुख्यालय से धान खरीदी की सीमा बढ़ाकर 15 क्विंटल प्रति एकड़ करने की घोषणा करनी पड़ी। तबसे यही चल रहा है। अब अगर राज्य सरकार यह सीमा बढ़ाती है तो केंद्र चावल लेने से फिर इन्कार कर सकता है। सरकार के रणनीतिकारों का कहना है, प्रति एकड़ पांच क्विंटल अतिरिक्त धान सरकार अपने संसाधनों से खरीदकर संभावित टकराव टाल देगी।

पिछले चुनाव में कर्जमाफी और 2500 रुपए दाम ने दिलाई थी सत्ता

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के केंद्र में किसान थे। पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कृषि ऋण को माफ करने की घोषणा की थी। वहीं धान की कीमत प्रति क्विंटल 2500 रुपए करने की घोषणा भी बड़ी थी। किसानों ने इसपर भरोसा किया। इस वादे का असर ऐसा था कि 2018 में एक दिसम्बर से धान की सरकारी खरीदी शुरू हुई तो प्रदेश में मतदान हो चुका था। किसान फसल काटने के बाद भी उसे खरीदी केंद्र नहीं ला रहे थे कि अगर पहले बेच दिया तो संभव है कि सरकार पहले हो चुकी खरीदी पर 2500 रुपया दाम न दे। कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल को किसानों से सार्वजनिक आग्रह करना पड़ा कि धान बेचिए उनकी सरकार पहले बिक चुके धान पर भी 2500 रुपया देगी।

धान का रकबा बढ़ाने का चुनावी गणित क्या है

  1. कांग्रेस के रणनीतिकारों के मुताबिक यह सीधा गणित है। प्रदेश में करीब 40 लाख परिवार खेती-किसानी से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। 25 लाख से अधिक किसानों ने तो 2022 में धान बेचने के लिए पंजीयन करा रखा है। अगर प्रति परिवार दो लोगों को ही वयस्क मतदाता के रूप में चिन्हित किया जाए तो धान से लाभान्वित हो रहे मतदाताओं की संख्या 50 लाख से अधिक हो रही है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 60 लाख से अधिक लोगों ने वोट दिया था। यह कुल पड़े वोटों का 43% बैठता है। इसकी तुलना में भाजपा को 46 लाख से कुछ अधिक वोट मिले थे। अब अगर कांग्रेस अपने सबसे ताकतवर किसान वोटों को थामे रखने में कामयाब हो गई तो सत्ता में वापसी मुश्किल नहीं है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button