बच्चों को मिट्‌टी में खेलने दें, बढ़ती है इम्यूनिटी, वे बेहतर इंसान बनते हैं

‘मिट्टी में मत खेलो, कपड़े गंदे हो जाएंगे’- अगर आप भी अपने बच्चों को मिट्‌टी में खेलने से रोकते हैं तो फिर आज से ही ऐसा करना बंद कर दीजिए। मिट्‌टी और बालू में ऐसे माइक्रोऑर्गेनिज्म (सूक्ष्म जीव) होते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बेहतर होते हैं। उनकी इम्यून शक्ति बढ़ाते हैं। मिट्‌टी में खेलने से बच्चों को एलर्जी और दमा की समस्या होने की आशंका बहुत कम हो जाती है। यहां तक कि मिट्‌टी में खेलने से डिप्रेशन और एंग्जाइटी भी नहीं होती।

बालू से खेलना बच्चों के लिए सैंड ट्रे थेरेपी
रिसर्चर्स एलेसिया फ्रैंको और डेविड रैबसन कहते हैं कि शोध से पता चला कि प्राकृतिक वातावरण में आजादी से घूमना बच्चों को बीमारियों के खिलाफ ज्यादा मजबूत बनाता है। इटली की पलेर्मो यूनिवर्सिटी के लेक्चरर कहते हैं- मिट्टी, कीचड़ और बालू बच्चों की ज्ञानेंद्रियों का विकास करती हैं। ये एक तरह की थेरेपी है, जो न केवल बीमारियों का इलाज करती है बल्कि बीमार पड़ने से रोकती भी है।

जो बच्चे अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते, उन्हें सैंड ट्रे थेरेपी दी जाती है। इसमें बच्चे बालू से खेलते हैं। अब तक यह माना जाता था कि मिट्टी में खेलना हाईजीनिक नहीं है। एक दूसरे शोध में यह बात सामने आई है कि जो बच्चे ब्लू और ग्रीन स्पेस में ज्यादा समय गुजारते हैं, वे बड़े होकर बेहतर इंसान बनते हैं। ब्लू स्पेस मतलब समुद्र, नदी, झील के आसपास और ग्रीन स्पेस मतलब जंगल, पार्क, बाग-बगीचे जैसी हरियाली वाली जगह।

जो बच्चे समुद्र, नदी, जंगल, पार्क में ज्यादा समय गुजारते हैं, वे बड़े होकर बेहतर इंसान बनते हैं।

जो बच्चे समुद्र, नदी, जंगल, पार्क में ज्यादा समय गुजारते हैं, वे बड़े होकर बेहतर इंसान बनते हैं।

प्राकृतिक जगहें दिमाग को रिचार्ज करती हैं
फ्रैंको और रैबसन कहते हैं, प्राकृतिक जगहें दिमाग को इस स्तर तक उत्तेजित कर देती हैं कि वह एक तरह से रिचार्ज हो जाता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे कि पहाड़ों या समंदर की यात्राएं शरीर और दिमाग दोनों को तरोताजा कर देती हैं। हम ज्यादा ऊर्जावान महसूस करने लगते हैं।

इससे पहले हुए एक अध्ययन में बताया गया था कि किसी शहरी जमीन जैसे फर्श, सड़क आदि पर 20 मिनट चलने की बजाय पार्क में नंगे पैर 20 मिनट चलने से ध्यान केंद्रित करने की शक्ति बढ़ती है। यहां तक कि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) से पीड़ित मरीजों की एकाग्रता बढ़ती है।

प्रकृति में बचपन गुजरा है तो जवानी बेहतर होगी
ब्लू हेल्थ इंटरनेशनल सर्वे ने यूरोप के 14 देशों और चार अन्य देश हॉन्गकॉन्ग, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कैलिफोर्निया के 15 हजार लोगों पर सर्वे किया। जिन लोगों ने 16 साल की उम्र तक समुद्र या हरियाली के बीच ज्यादा समय गुजारा था, वे प्रकृति के प्रति ज्यादा लगाव रखते हैं। जवानी में भी ऐसी जगहों पर जाना चाहते हैं। ऐसे लोग मानसिक तौर पर ज्यादा मजबूत होते हैं।

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