SC का फैसला- चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े फोटो-वीडियो डाउनलोड करना और उन्हें अपने पास रखना अपराध
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को कानून में बदलाव का सुझाव दिया।
HIGHLIGHTS
- चाइल्ड पोर्न के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर हुई सुनवाई
- चाइल्ड पोर्न देखने वालों पर पॉक्सो एक्ट लगाने की मांग की गई थी
- 11 जनवरी को HC ने आरोपी पर पॉक्सो लगाने से इनकार कर दिया था
एजेंसी, नई दिल्ली (SC on Child Porn)। भारत में चाइल्ड पोर्न देखना अपराध है या नहीं, इस सवाल से जुड़ी याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सर्वोच्च अदालत ने साफ किया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्री डाउनलोड करना और उसे अपने पास रखना अपराध है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया है।
मद्रास हाई कोर्ट ने इस आधार पर आरोपी के खिलाफ केस रद कर दिया था कि उसने चाइल्ड पोर्न से जुड़े फोटो-वीडियो सिर्फ अपने पास रखे, उन्हें किसी को फॉरवर्ड नहीं किया।
कोई अदालत नहीं करेगी ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े फोटो-वीडियो का स्टोर करना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत अपराध है।
साथ ही सर्वोच्च अदालत ने संसद को POCSO अधिनियम में संशोधन के लिए कानून लाने का सुझाव दिया, जिसमें ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को ‘चाइल्ड यौन शोषण और अपमानजनक सामग्री’ से बदल दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि संशोधन लागू होने तक केंद्र सरकार इस आशय का अध्यादेश ला सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि वे ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल न करें।
क्या था मामला, जिस पर हुई सुनवाई
यह मामला मद्रास हाई कोर्ट होते हुए देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा था। मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि यदि कोई व्यक्ति अकेले में चाइल्ड पोर्न देखता है, तो इसे अपराध करार नहीं दिया जा सकता है।
चाइल्ड पोर्न पर क्या कहा था मद्रास हाई कोर्ट ने
- मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि निजी स्तर पर महज चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने और उसे डाउनलोड करने से मामला पॉक्सो एक्ट और सूचना तकनीकी कानून के दायरे में नहीं आता है।
- मद्रास हाई कोर्ट का यह मामला इसी साल 11 जनवरी का है। तब हाई कोर्ट ने अपने फैसले में 28 वर्षीय आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत केस चलाने की मांग को खारिज कर दिया था।
- हाई कोर्ट की दलील थी कि सिर्फ अपने मोबाइल पर पोर्नोग्राफी फोटो और वीडियो देखने से मामला पॉक्सो एक्ट और सूचना तकनीकी कानून का नहीं होता है। आरोपित ने अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़े पोर्नोग्राफी की विषय सामग्री डाउनलोड की थी।
- हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि ऐसे आरोपियों को दंडित करने के बजाय समाज को इतना परिपक्व होना चाहिए कि वह उन्हें शिक्षित कर सकें। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया था।
अब तक क्या रहा सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले का संज्ञान लिया और कहा कि फैसला मौजूदा कानून के विपरीत है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस पर विचार किया था कि यह मामला विचार योग्य है या नहीं। विचार योग्य पाए जाने के बाद 23 सितंबर की तारीख तय की गई थी।