छत्तीसगढ़ में पहले दो प्रकार के गिद्ध पाए जाते थे, अब तीन, गिद्धों की संख्या में गिरावट की ये है बड़ी वजह
गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट का कारण डाइक्लोफेनाक जैसी दवाइयां हैं, जो पशु चिकित्सा में दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं। जब पशुओं के शव इन दवाइयों से दूषित होते हैं और गिद्ध इन्हें खाते हैं, तो वे विषाक्तता का शिकार हो जाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
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- नंदनवन जंगल सफारी में गिद्ध संरक्षण पर विशेष कार्यक्रम
रायपुर। इंद्रावती टाइगर रिजर्व (बीजापुर) के विशेष अतिथि सूरज कुमार ने बताया कि पहले राज्य में केवल दो प्रकार के गिद्ध पाए जाते थे, लेकिन अब यहां तीन प्रकार के गिद्ध देखे जा रहे हैं: भारतीय गिद्ध, एगिपशियन गिद्ध और सफेद पीठ वाला गिद्ध।
सूरज कुमार ने बताया कि गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट का कारण डाइक्लोफेनाक जैसी दवाइयां हैं, जो पशु चिकित्सा में दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं। जब पशुओं के शव इन दवाइयों से दूषित होते हैं और गिद्ध इन्हें खाते हैं, तो वे विषाक्तता का शिकार हो जाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
इसके अतिरिक्त, केटोप्रोफेन और ऐसक्लोफेनाक जैसी दवाओं के भी गिद्धों पर हानिकारक प्रभाव देखे गए हैं। गिद्धों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए इन दवाइयों के उपयोग को नियंत्रित करने और वैकल्पिक दवाओं का इस्तेमाल आवश्यक है। सूरज कुमार ने जंगल सफारी में गिद्धों के संरक्षण के लिए आयोजित कार्यशाला में यह बात कही।
गिद्धों की घटती संख्या पर चिंता
नंदनवन जंगल सफारी के निदेशक धम्मशील गणवीर ने कहा, “गिद्ध हमारी पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे प्राकृतिक ‘क्लीनर’ होते हैं, जो पशुओं के शवों को खाकर बीमारियों के प्रसार को रोकते हैं। उनकी घटती संख्या गंभीर चिंता का विषय है और हमें उनके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।”
गणवीर ने बताया कि गिद्ध न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में मदद करते हैं, बल्कि शवों के निपटारे में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके अभाव में शव सड़ते हैं, जिससे पर्यावरणीय समस्याएं और बीमारियों का खतरा बढ़ता है। इसलिए, गिद्धों का संरक्षण पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य सुरक्षा दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।