जिले में दल से अलग हुए 11 हाथियों ने जमाया डेरा

छत्तीसगढ़ के सबसे अधिक हाथी प्रभावित क्षेत्र में शामिल जशपुर जिले में इस समय अलग-अलग स्थानों पर दल से अलग हुए 11 हाथियों ने डेरा जमाया हुआ है। इन हाथियों को ट्रेक करने और इनकी हलचल की सूचना प्रभावित क्षेत्र के रहवासियों को देकर उन्हें सुरक्षित करने के लिए वन विभाग ने पूरे अमले को मैदान में उतार दिया है।

जशपुरनगर: छत्तीसगढ़ के सबसे अधिक हाथी प्रभावित क्षेत्र में शामिल जशपुर जिले में इस समय अलग-अलग स्थानों पर दल से अलग हुए 11 हाथियों ने डेरा जमाया हुआ है। इन हाथियों को ट्रेक करने और इनकी हलचल की सूचना प्रभावित क्षेत्र के रहवासियों को देकर उन्हें सुरक्षित करने के लिए वन विभाग ने पूरे अमले को मैदान में उतार दिया है।

वनमंडलाधिकारी जितेन्द्र उपाध्याय ने नईदुनिया को बताया कि उन्होनें बताया कि फिलहाल विभाग के सभी अधिकारी और कर्मचारियों को पूरा ध्यान पौधारोपण और हाथियों से होने वाली जनहानि को रोकने में लगाने के लिए निर्देशित किया गया है। डीएफओ का कहना है कि दल से अलग होकर भटकने वाले हाथी को ट्रेक करना सबसे बड़ी चुनौती होती है। अकेला हाथी दल में रहने वाले हाथियों की अपेक्षा अधिक आक्रामक होता है। इसके साथ ही वह किस दिशा में जाएगा और एक दिन में कितनी दूरी तय करेगा यह भी तय नहीं रहता है। इसलिए विभाग के एसडीओ और रेंजर की निगरानी में बीट गार्ड और हाथी मित्रदल के सदस्य हाथियों को ट्रेक करने में जुटे हुए हैं।

जशपुर जिले का तपकरा, दुलदुला, कुनकुरी, पत्थलगांव, बगीचा और जशपुर ब्लाक हाथी प्रभावित क्षेत्र में शामिल है। वन विभाग के अनुसार इन पांच ब्लाक के 250 ग्राम पंचायत इसके दायरे में आते हैं। इनमें तपकरा, कुनकुरी और दुलदुला सबसे अधिक हाथी प्रभावित क्षेत्र है। तपकरा और दुलदुला ब्लाक झारखंड और ओडिशा राज्य की अंर्तराज्यीय सीमा से घिरे हुए हैं। इन दोनों राज्यों से हाथियों की घुसपैठ होती है। इन ब्लाकों के घने जंगल और प्रचुर मात्रा में पानी की उपलब्धता अतिकायों को खूब भाता है। इसलिए साल के लगभग 12 महीने हाथियों की हलचल बनी रहती है।
जंगल किनारे स्थित घर व बस्तियों पर फोकस
डीएफओ जितेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि हाथियों के हमले का सबसे अधिक खतरा जंगल के किनारे स्थित कच्चे मकान और बस्तियों पर सबसे अधिक रहता है। इसलिए विभाग फिलहाल ऐसे बस्तियों के रहवासियों को सुरक्षित करने पर ध्यान दे रहा है। उन्होनें बताया कि हाथी विचरण वाले क्षेत्र के जंगल किनारे स्थित घर व बस्तियों के रहवासियों को लिखित सूचना देने के साथ ही हाथियों से सुरक्षित रहने के उपाय बताने के साथ ही रात के समय पक्के मकान में सोने की अपील कर रहें हैं। ग्रामीणों को घर में कटहल, महुआ और अधिक मात्रा में धान ना रखने और धान रखे हुए कमरे में रात के समय ना सोने की अपील भी वनकर्मी कर रहें हैं। इसके साथ ही एनीमल ट्रेकर डिवाइस और ड्रोन जैसे अत्याधुनिक संसाधनों का प्रयोग किया जा रहा है। ड्रोन से हाथियों का लोकेशन ट्रेस करके एनीमन ट्रेकर डिवाइस के माध्यम से प्रभावित बीट के लोगों को टैक्सट और वाइस मैसेज भेज कर एलर्ट किया जा रहा है।
 
हाथियों का लोकेशन ट्रेस करने के लिए आधुनिक संसाधनों के साथ सूचना तंत्र का प्रयोग भी किया जा रहा है। वनविभाग के अधिकारी और कर्मचारी इन दिनों मिशन मोड में काम कर रहें हैं। वन क्षेत्र के किनारे स्थित घर व बस्तियों के रहवासियों को पक्के मकान में रात गुजारने का अनुरोध किया जा रहा है।
जितेन्द्र उपाध्याय,डीएफओ,जशपुर।

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