CG News: छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाकों की बदलाव की कहानियां, जब डर खत्म हुआ तब भूख लगी…
दो वर्ष पहले सुरक्षा बल का कैंप गांव में लगा तो गांव की स्थिति बदली है। बीजापुर से सिलगेर तक पक्की सड़क बना दी गई है और सुकमा को भी जोड़ा जा रहा है। गांव में राशन दुकान, आयुष केंद्र, आंगनबाड़ी, स्कूल खोला गया है। अब कोरसा स्कूल में शिक्षादूत है। कोरसा ने बताया कि उसने सुकमा के एक आश्रम में बारहवीं तक पढ़ाई की है।
HIGHLIGHTS
- दो वर्ष पहले कैंप लगा तो बदली गांव की स्थिति
- बीजापुर से सिलगेर तक पक्की सड़क बना दी गई है
- गांव में राशन दुकान, आयुष केंद्र, आंगनबाड़ी, स्कूल खोला गया
जगदलपुर।
पत्रकार होने के नाते लोकसभा चुनाव के पहले इस क्षेत्र में ग्रामीणों का मन टटोलने की जिज्ञासावश मैं अब इस गांव में था। सुरक्षा बल के कैंप के पास नये बनाए गए आयुष केंद्र में हम खड़े थे। यहां से केवल दो सौ मीटर दूर गांव है, पर मेरे सीधे से प्रश्न के प्रति उत्तर में वह आदिवासी युवक और शिक्षादूत कोरसा जयराम अब भी सोच में डूबा हुआ था। लगभग पांच मिनट की चुप्पी के बाद उसने धीमे स्वर में कहा- ‘मैं तुम्हें गांव लेकर गया तो नक्सली मुझसे पूछताछ करेंगे, अगर तुम फोर्स के आदमी हुए तो मेरी हत्या भी कर सकते हैं।’
उसका डर उसकी आंखों में स्पष्ट था। मैंने कहा- ‘अब गांव में सुरक्षा बल का कैंप है, तो खतरे की बात तो नहीं होगी?’ मेरी बात में छिपे प्रश्न को भांपते उसने बताया कि होली के दिन बासागुड़ा थाना से दो सौ मीटर दूर नक्सलियों ने दो लोगों को मार डाला है। इससे गांव वाले डरे हुए हैं। उसकी बात में सच्चाई थी। हम जहां खड़े थे, वह दो वर्ष पहले तक नक्सलियों का ही आधार कैंप हुआ करता था। अब भी नक्सलियों की उपस्थिति गांव के आसपास बनी हुई है।
कोरसा की बातों में जो भय था, यहीं डर मैंने सुबह बीजापुर से निकलकर 70 किमी की यात्रा कर यहां पहुंचते हुए कई बार महसूस किया था। इस बीच मैं यह भूल ही गया कि सुबह नौ बजे सर्किट हाउस में नाश्ते के बाद अब दोपहर के चार बज रहे हैं, पर पेट की अंतड़ियों में भूख की कुलबुलाहट की जगह डर की गुदगुदाहट है। डर ने मानव इंद्रियों, तंत्रिकाओं को हरा दिया था, इसका आभास मुझे यहां आकर हुआ। वहां से निकलने के कुछ देर बाद तेज भूख के कारण पेट में उठते मरोड़ ने मुझे बता दिया कि सुरक्षित होने के अभास के बाद मस्तिष्क ने भूख की तंत्रिकाओं को दोबारा से सक्रिय कर दिया है।
बारूद बिछे रास्ते, जवानों के रक्त से सने जंगल
सुबह बीजापुर से निकलने के बाद पूरे रास्ते में दर्जन भर से अधिक सुरक्षा कैंप को पार कर यहां तक पहुंचे थे। रास्ते में उसूर के विकासखंड मुख्यालय आवापल्ली को पार करने के बाद सड़क के दोनों ओर पर्णपाती वन के जंगल यहां सुकुन नहीं देते हैं। बसंत ऋतु में पेड़ों के पत्ते झड़ने के बाद जंगल के दृश्यमान हो जाने का लाभ उठाकर नक्सली सुरक्षा बल के जवानों को निशाना बनाते हैं।
जंगल के बीच से जाता रास्ता बिल्कुल सुनसान था, बीच-बीच में पेड़ों की टहनियों की रगड़ से उत्पन्न ध्वनि इस वीराने में सन्नाटे को भेद रही थी। बस्तर में बारूद बिछे रास्ते और जंगल बलिदानी जवानों के रक्त से सने हुए हैं। यह दृश्य मुझे हालीवुड के एवेंजर एंड गेम फिल्म की याद दिला रहा था, जिसमें ‘थानोस’ के चुटकी बजाने के बाद पूरी दुनिया का अंत हो जाता है। रास्ते में सारकेगुड़ा, तिम्मापुर, चिन्नागेलूर, तर्रेम जैसे गांव पड़े जो बड़े नक्सली हमले के जीवंत साक्ष्य थे।
कब-कौन सा क्षण आखिरी होगा….
बीजापुर जिले में 12 मार्च को क्रास फायरिंग में बोड़गा गांव में एक महिला राजे ओयाम की मौत हो गई थी। वर्ष की शुरुआत में मुतवेंडी में क्रास फायरिंग में छह माह की दुधमुंही बच्ची की गोली लगने से मारी गई और उसकी मां मासे घायल हो गई थी। नक्सलियों के द्वारा बिछाए गए बारूद के फटने से महुआ बीनते, पानी भरते, दुकान से राशन लेकर घर जाते या बाजार जाते हुए भी ग्रामीणों के मारे जाने की घटनाएं हो चुकी है। इस वर्ष भी आठ से अधिक ग्रामीण प्रेशर आइईडी विस्फोट में मारे गए हैं। बारूदी सुरंगों से भरी सड़क पर चलते हुए, यहां कब-कौन सा क्षण आखिरी होगा, यहां बताया नहीं जा सकता।
दो वर्ष पहले कैंप लगा तो बदली गांव की स्थिति
बातों ही बातों में कोरसा ने बताया कि उसने सुकमा के एक आश्रम में बारहवीं तक पढ़ाई की है। इसके बाद भी गांव में रहते हुए उसे नक्सलियों के लिए काम करना पड़ता था। बंदूक के डर से गांव के सभी लोग नक्सलियों की बात मानने विवश थे। वह नक्सलियों के लिए ग्रामीणों से राशन संग्रहण करने का काम करता था। नक्सली उसे मिलिशिया कमांडर बनाएंगे बोल रहे थे। इस बीच दो वर्ष पहले सुरक्षा बल का कैंप गांव में लगा तो गांव की स्थिति बदली है।
बीजापुर से सिलगेर तक पक्की सड़क बना दी गई है और सुकमा को भी जोड़ा जा रहा है। गांव में राशन दुकान, आयुष केंद्र, आंगनबाड़ी, स्कूल खोला गया है। अब कोरसा स्कूल में शिक्षादूत है। गांव के बच्चों को पढ़ाने के बदले उसे दस हजार रुपये मानदेय मिलता है। 35 बच्चे पढ़ने आते हैं। बस्तर में इसी तरह 21 नये कैंप पिछले पांच माह में सीधे नक्सलियों के आधार क्षेत्र में खोले गए हैं। सरकार ने ‘नियद नेल्ला नार’ योजना से ऐसे गांव तक विकास योजनाएं पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।