Korba News: चार साल में 1.78 हजार टन बढ़ी रासायनिक खाद की खपत
खरीफ वर्ष के लिए 17,100 टन भंडारण की तैयारी0 जैविक व गोबर खाद की परंपरा में कमी0 उपज लागत में 20 प्रतिशत वृद्धि से किसान परेशान
HIGHLIGHTS
- कीमत में हो रही लगाता इजाफा
- लक्ष्य के विरूद्ध अब तक भंडारण टन में
- गौ व भैंस वंशीय मवेशियों की संख्या में वृद्धि की दिशा में कारगर काम नहीं किया गया।
धान की कीमत में भले ही सरकार ने भले ही वृद्धि की है लेकिन रासायनिक खाद की उपयोगिता और निर्भरता ने किसानों की लागत 20 प्रतिशत बढ़ा दी है। मानसून आगमन की आस को लेकर किसानों ने खरीफ फसल की तैयारी शुरू कर दी है। पहले की तरह खेतों में अब गोबर खाद डालने की परंपरा अब लगभग लुप्त होने लगी है। मवेशियों की संख्या में लगातार हो रही कमी ने खेतों को गोबर खाद से दूर कर दिया है।
पारंपरिक खाद की बजाए अब रसायनिक खाद की उपयोगिता पर किसानों की निर्भरता बढ़ी है। विडंबना यह भी किसानों की ओर जिस तादात में खाद की मांग बढ़ रही है वह समय रहते पूरा नहीं होता। खाद भंडारण के लिए जिले में रैकपाईंट की समस्या है। जिले के लिए आज भी खाद की आपूर्ति जांजगीर व बिलासपुर के रेलवे रैकपाईंट से होती है। भंडारण में आत्म निर्भर नहीं होने की वजह से जब आवश्यकता रहती है, तब किसानों को खाद नहीं मिलता। उन्हे निजी विक्रेताओं से खरीदी करनी पड़ती है।
मानसून आधारित खेती की जाती है। वर्षा नहीं होने की स्थिति में किसानों को उपज से वंचित होना पड़ता है। नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना बंद कांग्रेस सरकार की महत्वपूर्ण नरवा गरवा घुरूवा बाड़ी योजना से कृषि में बेहतरी की संभावना जताई जा रही थी। योजना शुरू होकर बंद भी हो चुकी है, सूखा व जैविक खाद बनाने वाले महिलाओं को पिछला भुगतान पाने के लिए अब जनपदों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। भले ही योजना को मूर्त रूप देने के लिए कांग्रेस की भूपेश सरकार ने गोबर खाद की उपयोगिता को बढ़ावा देने का काम तो किया लेकिन सड़कों पर बेसहारा घूम रहे मवेशियों गोठान में लाने के लिए सफलता नहीं मिली।
गौ व भैंस वंशीय मवेशियों की संख्या में वृद्धि की दिशा में कारगर काम नहीं किया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा से गोठान बनाने का निर्देश दिया गया है किंतु राशि आवंटन के अभाव में योजना मूर्त रूप नहीं ले पाया है। मिट्टी परीक्षण के लिए 10002 किसानों ने दिया नमूना किसानों को मिट्टी परीक्षण के बारे में जानकारी नहीं है। परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर रासायनिक खाद डालने का नियम है।
अधिकांश किसान अनुमान के आधार पर खाद का उपयोग करते हैं। रासायनिक खाद की बढ़ती उपयोगिता से मिट्टी की उर्वरा क्षमता प्रभावित होने लगा है। क्षेत्र में ज्यादातर धान की फसल ली जाती है। नियमानुसार बेहतर उत्पादन के लिए उपज में परिवर्तन आवश्यक है। लगातार एक ही तरह की उपज लगाने से किसानों को सही लाभ नहीं मिल रहा है। मिट्टी परीक्षण के लिए 10002 किसानों ने नमूना दिया है। जिसमें आठ हजार 438 का को विश्लेषण का दावा कृषि विभाग की ओर से किया जा रहा है।
कीमत में हो रही लगाता इजाफा
खाद की कीमत में जिस तादात में बढ़ोतरी हो रही है उसके अपेक्षा में फसल के दाम किसानों को नहीं मिल रहा है। पोटाश, यूरिया व डीएपी में पिछले चार सालो में प्रति क्विंटल में चार से 500 रूपये का इजाफा हुआ है। किसानों को इस समस्या से दूर करने के लिए कृषि विभाग की ओर से जैविक खेती की योजना संचालित है। योजना का सही प्रचार प्रसार नहीं होने की वजह इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्त ज्यादातर अधिकारी शहर अथवा अपने गृह ग्राम में रहते हैं। ऐसे में योजना की जानकारी के लिए किसानों में भटकाव देखी जा रही है।
लक्ष्य के विरूद्ध अब तक भंडारण टन में
उर्वरक- लक्ष्य- भंडारण यूरिया- 8,800- 8,596 डीएपी- 2,800- 2,879 सुपर फास्फेट- 3100- 2,690 एमओपी- 500- 234 एनपीके- 1900- 1100 खरीफ फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में रासायनिक खाद का भंडारण सभी सहकारी समितियों में किया जा चुका है। धान का रकबा बढ़ने से खाद की मांग भी बढ़ गई है। किसानों को अग्रिम उठाव के लिए प्रेरित किया जा रहा है। खाद की कमी नहीं होने दी जाएगी। डीपीएस कंवर, सहायक संचालक, कृषि