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Lord Shiva: शिव की शक्ति का प्रतीक माना जाता है त्रिशूल, ऐसे हुई थी उत्पत्ति

HIGHLIGHTS

  1. शिव जी को भगवान विष्णु से त्रिशूल उपहार के रूप में मिला था।
  2. ब्रह्मांड की शुरुआत में भगवान शिव ब्रह्मनाद से प्रकट हुए थे।
  3. तीन गुणों से मिलकर शिव शूल का निर्माण हुआ, जिससे त्रिशूल बना।

धर्म डेस्क, इंदौर। Lord Shiva Trishul: भगवान शिव की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इतना ही नहीं, विशेष लाभ भी प्राप्त होते हैं। विधि-विधान और सच्चे मन से शिव जी पूजा की जाए, तो समस्याओं से मुक्ति मिलती है। कई बार मन में सवाल आता है कि भगवान शिव के साथ त्रिशूल क्यों रखा जाता है और त्रिशूल की उत्पत्ति कैसे हुई थी, आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं।

ऐसे हुई थी त्रिशूल की उत्पत्ति

कहा जाता है कि त्रिशूल भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक होता है। बुरी शक्तियों के विनाशक के रूप में त्रिशूल हमेशा शिव जी से जुड़ा रहता है। समुद्र मंथन के दौरान शिव जी को भगवान विष्णु से त्रिशूल उपहार के रूप में मिला था। वहीं, कुछ पौराणिक कथा में यह भी कहा गया है कि शिव जी को देवी दुर्गा से त्रिशूल प्राप्त हुआ था। उन्होंने इसका इस्तेमाल राक्षस महिषासुर के खिलाफ लड़ाई में किया था। शिव पुराण में कहा गया है कि संपूर्ण ब्रह्मांड की शुरुआत में भगवान शिव ब्रह्मनाद से प्रकट हुए थे। उनके साथ तीन गुण भी प्रकट हुए, रज, तम और सत गुण, इन तीन गुणों से मिलकर शिव शूल का निर्माण हुआ, जिससे त्रिशूल बना।

त्रिशूल पर बांधा जाता है लाल रंग का कपड़ा

प्रचलित कथाओं के अनुसार, एक बार मंगल ग्रह ने भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिससे भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने भगवान शिव से हमेशा उनके साथ रहने का वरदान मांगा, उन्होंने ग्रहों के चक्र से दूर रहने के लिए कहा। भगवान शिव ने कहा कि वे ग्रहों के चक्र से दूर हैं, ऐसे में किसी भी ग्रह को अपने साथ नहीं रख सकते। मना करने के बाद, मंगल ने शिव जी के पास रहने की इच्छा व्यक्त की और कहा कि वे अपने किसी प्रतीक के साथ मेरे किसी प्रतीक को जोड़ लें।

भगवान शंकर औघड़दानी कहे जाते हैं, इसीलिए उन्होंने अपने त्रिशूल पर हमेशा के लिए लाल रंग का कपड़ा बांध लिया था। तभी से यह सनातन धर्म की एक महत्वपूर्ण प्रथा बन गई, जिसका पालन आज भी किया जाता है।

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