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पीएम जनऔषधि केंद्रों का हाल: छत्‍तीसगढ़ में 179 में से 67 केंद्र ही संचालित, स्वास्थ्य विभाग ने की उपेक्षा

HIGHLIGHTS

  1. छत्‍तीसगढ़ में सस्ती दवा दुकानों को इलाज की दरकार
  2. पीएम जनऔषधि योजना का नहीं मिल रहा समुचित लाभ
  3. छत्‍तीसगढ़ में केवल 67 ही संचालित, 23 दुकानें बंद

अभिषेक राय/रायपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना का प्रदेश में बुरा हाल है। सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना का समुचित लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि प्रदेश में 179 दुकानें हैं, लेकिन इनमें से केवल 67 ही संचालित हैं। 23 दुकानें बंद हो चुकी हैं, जबकि 89 निष्क्रिय हैं। जिन जिलों में दुकानें संचालित हैं, उनमें भी 1,300 की जगह मात्र 200 से 300 तरह की ही दवाएं उपलब्ध है।

90 प्रतिशत सस्ती दवा मिलने की उम्मीद में कैंसर, आंख, ब्रेन व अन्य बीमारियों से जूझ रहे मरीज दुकानों से लौटने को विवश हैं। वर्ष-2015 में प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना की शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य लोगों पर दवा के खर्च को कम करना तथा बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की थी। ये दोनों ही उद्देश्य पूरे नहीं हो पा रहे हैं।

परियोजना से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में 249 प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र स्वीकृत हैं। इन दुकानों को प्रदेश के सभी जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में संचालित किया जाना है। प्रदेश में 26 जिला अस्पताल, 157 सामुदायिक और 768 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। प्रदेश में वर्ष-2016 में 120 दुकानें खोलकर योजना की शुरुआत की गई थी। दुकानों की संख्या बढ़कर 179 हुई, लेकिन शासन-प्रशासन की अनदेखी की वजह से एक-दो साल बाद ही बंद होना शुरू हो गई।

हमर अस्पताल खोलकर दुकानों को किया बाहर

राजधानी के राजा तालाब, भनपुरी, गुढ़ियारी और भाटागांव शहरी स्वास्थ्य केंद्र का उन्नयन हमर अस्पताल के रूप में किया गया है। शहरी स्वास्थ्य केंद्र होने के दौरान इन केंद्रों पर जनऔषधि केंद्र संचालित हो रहे थे, लेकिन हमर अस्पताल होते ही बंद कर दिया गया। स्वास्थ्य विभाग की ओर से इन केंद्रों में दुकानें संचालित करने के लिए जगह ही नहीं दी गई। इन स्वास्थ्य केंद्रों में रोजाना 100 से ज्यादा मरीज इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं। रायपुर जिल में 16 में से केवल चार दुकानें संचालित हैं।

जेनेरिक पर लोगों का विश्‍वास नहीं, डाक्टरों की भी अनदेखी

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत दुकान का संचालन कर रहे एक संचालक ने बताया कि जेनेरिक दवाओं पर अभी भी लोगों का विश्वास नहीं है। स्वास्थ्य केंद्रों के डाक्टर भी मरीजों को विश्वास नहीं दिलाते। जबकि दवाएं 50 से 90 प्रतिशत छूट पर मिलती हैं।

जेनेरिक दवा वह है, जो बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जाती है। जेनेरिक दवा के फार्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है, लेकिन उसके सक्रिय घटक पर पेटेंट नहीं होता। जैनरिक दवाइयां गुणवत्ता में किसी भी प्रकार से ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होतीं। ये उतनी ही असरकारक हैं, जितनी की ब्रांडेड दवाइयां।

प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना के राज्य समन्वयक अनिश वोडितेलवार ने कहा, प्रधानमंत्री जनऔषधि की खरीदी केंद्रीय स्तर पर होती है। कई दवाएं स्टाक में न रहने और आपूर्ति में देरी से समस्याएं आती हैं। सीएमएचओ और बीएमओ को कई बार पत्र देकर जगह की मांग की गई है। कई दुकानें पुराने भवन में ही संचालित हो रही हैं।

बंद और निष्क्रिय होने और दवा नहीं मिलने की मुख्य वजह

– दुकानों पर फार्मासिस्टों की नहीं हुई नियुक्ति l

– दुकानों के लिए स्वास्थ्य केंद्रों में नहीं मिला स्थानl

– प्रशासनिक सहयोग का अभाव, सीएमएचओ-बीएमओ ने नहीं लिया संज्ञानl

– राज्य शासन की ओर से धन्वंतरी योजना की गई शुरूl

– दुकानों में दवाओं की समय पर नहीं होती आपूर्ति l

– बहुत से डाक्टर भी पर्ची पर नहीं लिखते जेनेरिक दवाएं।

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