CG Election 2023: छत्‍तीसगढ़ के बस्‍तर संभाग से अब तक 23 ऐसे नेता बने विधायक-सांसद, जिन्होंने बतौर शिक्षक शुरू किया करियर

HIGHLIGHTS

  1. बस्तर संभाग में शासकीय सेवा से त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ने का इतिहास पुराना
  2. आजादी के बाद से अब तक ऐसे 23 नेता विधायक-सांसद बन चुके हैं जो पहले थे शिक्षक
  3. जगदलपुर को छोड़कर संभाग की सभी 11 विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित

CG Vidhan Sabha Chunav 2023: छत्‍तीसगढ़ के उत्तर बस्तर निवासी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी नीलकंठ टीकाम ने पिछले दिनों नौकरी के त्यागपत्र दे दिया और अब राजनीतिक में किस्मत आजमाने की तैयारी में जुटे हैं। कुछ और भी अधिकारियों के नाम हैं जो नौकरी छोड़कर विधायक बनने का सपना पालकर राजनीति में सक्रिय हैं। इनमें डाक्टर, इंजीनियर भी शामिल हैं।

बस्तर संभाग में शासकीय सेवा से त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ने का इतिहास काफी पुराना है। आजादी के बाद पहले ही आम चुनाव में इसकी शुरुआत हो गई थी। पिछले सात दशक का रिकार्ड देखें तो इस मामले में सबसे अधिक सफलता गुरुओं को मिली है। आजादी के बाद से अब तक ऐसे 23 नेता विधायक-सांसद बन चुके हैं जो पहले गुरुजी थे।

जगदलपुर को छोड़कर संभाग की अन्य सभी 11 विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। जगदलपुर सीट भी 2008 में अनारक्षित हुई है। इसके पहले एक बार और 1977 में अनारक्षित हुई थी। इन अवसरों को छोड़कर दें तो यह सीट भी लंबे समय तक आरक्षित रही है।

बस्तर की राजनीति में धूमकेतु बनकर लंबे समय तक अपना जलवा बिखरने वाले कांग्रेस के मानकूराम सोढ़ी और अरविंद नेताम तथा भाजपा के बलीराम कश्यप का नाम सबसे उपर है। इनमें मानकूराम सोढ़ी और बलीराम कश्यप लगभग 50 साल राजनीति में सार्वजनिक जीवन जीने के बाद दिवंगत हो चुके हैं।

राजनीति की इस तिकड़ी के एक नेता अरविंद नेताम हैं जो 81 साल की उम्र में कांग्रेस से त्यागपत्र देकर सामाजिक जन जागरण अभियान में सक्रिय हैं। गुरुजी की नौकरी छोड़कर विधायक बनने वाले बस्तर के अन्य नेताओें में झितरूराम बघेल, अंंतूराम कश्यप, भूरसूराम नाग, रत्तीराम सोरी, लच्छूराम कश्यप, संपत भंडारी, राजाराम तोड़ेम, महादेव राणा, लखन जयसिंह, बद्रीनाथ बघेल, केके ध्रुव, गंगाराम राणा, गंगा पोटाई आदि शामिल हैं। वर्तमान विधायकों में नारायणपुर विधायक चंदन कश्यप, भानुप्रतापपुर विधायक सावित्री मंडावी भी गुरुजी रह चुकी हैं।

पहला चुनाव निर्दलीय जीते थे सोढ़ी

कोंडागांव निवासी मानकूराम सोढ़ी सरकारी स्कूल में शिक्षक थे। उन्होंने 1962 में गुरुजी की नौकरी छोड़कर पहला चुनाव केशकाल सीट से निर्दलीय लड़ा और जीते। दूसरा चुनाव कोंडागांव सीट से निर्दलीय लड़कर जीते। 1972 में कांग्रेस में शामिल हो गए। मानकूराम सोढ़ी पांच बार विधायक और तीन बार सांसद रहे। अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस की अर्जुन सिंह की सरकार में वह एक बार मंत्री भी थे।

पांच बार सांसद रह चुके हैं नेताम

कांकेर जिला के नरहरपुर विकासखंड निवासी अरविंद नेताम 1972 से 1996 के बीच पांच बार सांसद रहे। केंद्र में इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हाराव के मंत्रिमंडल में दो बार राज्यमंत्री रहे। राजनीति में कदम रखने से पहले नेताम ने यहां जगदलपुर में राष्ट्रीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी थी। अरविंद नेताम एक समय अविभाजित मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाते थे।

बलीराम के बल का सबने माना लोहा

गुरुजी से शिक्षक बने नेताओं की चर्चा में भाजपा नेता दिवंगत बलीराम कश्यप का नाम आज भी बहुत सम्मान से लिया जाता है। बस्तर जिले के ग्राम फरसागुड़ा निवासी बलीराम कश्यप 1956 में गुरुजी बने थे। बाद में उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ा। पहला चुनाव हार गए लेकिन आगे चलकर वे पांच बार विधायक, चार बार सांसद बने। दो बार मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार में मंत्री थे।

चुनाव लड़ने के नाम से भागते थे गुरुजी

पूर्व विधायक अंतूराम कश्यप गुरुजी की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए और दो बार भानपुरी सीट से विधायक बने। उनका कहना था कि आदिवासी आबादी बहुल बस्तर में पहले साक्षरता दर काफी कम थी। आर्थिक रूप से समर्थ परिवार के कुछ लोग पढ़-लिखकर सरकार नौकरी में आ जाते थे। आदिवासी समाज में सबसे सम्मान की नौकरी गुरुजी की मानी जाती थी।

राजनीतिक दल ऐसे गुरुओं पर नजर रखते थे और नौकरी छोड़कर राजनीति में लाने का प्रयास करते थे। अंतूराम ने बताया कि 1962 के 1980 के बीच का कालखंड ऐसा था जब कांग्रेस ने सबसे ज्यादा गुरुओं को नौकरी छुड़वाकर विधायक बनाया। चुनाव लड़ने की बात आने पर गुरुजी घर से भाग जाते थे। अंतूराम ने बताया पांच बार जगदलपुर सीट से विधायक रहे झितरूराम बघेल पहली बार 1972 में चुनाव लड़ने के नाम से घर से भाग गए थे उन्हें खोजने के लिए कांग्रेस ने अपने कई नेताओं को लगा दिया था।

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