यहां बनाते हैं पूर्वजों की आत्मा का घर, छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ की अनोखी मान्यता
क्या कहीं पूर्वजों की आत्माओं का भी घर बनाया जाता है? जी हां, यह परंपरा आपको छत्तीसगढ़ में मिलेगी। यहां अबूझमाड़ के हर गांव में आपको मिलेगा आत्माओं का घर। यहां पर हांडियों के अंदर पूर्वजों की आत्माओं को रखा गया है। बस्तर संभाग में कई ऐसी जगहें हैं, जहां आदिवासी समाज की आस्था और विश्वास जुड़ा है। आदिवासियों की ऐसी ही एक जगह है, जिसे आना कुड़मा कहा जाता है। गोंडी शब्द में आना यानी आत्मा और कुड़मा यानी घर…। इसे हिन्दी में आत्मा का घर भी कहा जा सकता है।
महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित
बस्तर के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र इस परंपरा का बहुत ही कट्टरता से पालन करते हैं। ऐसे स्थान पर महिलाओं और युवतियों का प्रवेश पूर्ण रूप से प्रतिबंधित होता है। शादी की रस्म अदायगी से पहले यहां जाना बेहद जरूरी होता है। हल्दी या तेल की रस्म हो या फिर शादी कार्ड का वितरण करना हो, यहां न्यौता (निमंत्रण) दिए बिना किसी भी कार्य की शुरुआत नहीं की जाती। इस स्थल को आदिवासी समाज अपने पितृ देव को स्थापित कर पूजता है। हर एक गांव में आना कुड़मा यानी आत्माओं का घर कई दशकों से बनाया गया है। यहां हांडियों में पूर्वजों की आत्माओं का वास है। ऐसे कई घर बस्तर के नारायणपुर व अबूझमाड़ इलाके में आपको देखने को मिल जाएंगे।
दादा-परदादा के जीव को साक्षात रखते हैं
छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष देवलाल दुग्गा ने बताया कि आदिवासी समाज के लोग इस पवित्र स्थल को लेकर बहुत ही सावधानी बरतते हैं। नई फसल को यहां चढ़ाने से पहले आदिवासी समाज के लोग उपयोग नहीं करते हैं। मान्यता है कि यहां परदादा, दादा माता-पिता के जीव को साक्षात रखते हैं। 12 महीनों पूजा करते हैं। त्योहार में विशेष पूजा होती है। आदिवासी समाज में कु़ड़ा, आना कुड़मा को लेकर गहरी आस्था है। वहीं ग्रामीणों का मान्यता है कि भूलवश या जानबूझकर कोई आना कुड़मा में चढ़ावा दिए बगैर नई फसल का उपयोग कर लेता है तो गांव में संकट आ जाता है। इसके निपटारे के लिए ग्रामीण गायता के पास जाते हैं, वहां गलती स्वीकार करने के बाद पूजा पाठ किया जाता है।
बुरी आत्माओं से रक्षा करते हैं पितृ देव
छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष देवलाल दुग्गा ने बताया कि आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा बेहद खास है। किसी भी गांव के किनारे एक मंदिरनुमा छोटा सा घर चारों तरफ दिख जाएंगे। एक छोटा सा कमरा होता है, जिसमें बहुत सी मृदभांड रखी रहती हैं। इन मृदभांडों में ही आदिवासी समाज के पितरों का वास होता है। ऐसी आदिवासी समाज में घरों में एक कमरा पूर्वजों का रहता है। अबूझमाड़ के आदिवासी गांव में एक गोत्र के लोगों की बाहुल्यता होता है। किसी की मृत्यु पश्चात गोत्र के लोगों द्वारा उनकी आत्माओं को इस आना कुरमा में स्थापित किया जाता है।
पितृ देवता होते हैं आदिवासियों के रक्षक
पूर्व विधायक देवलाल दुग्गा ने बताया कि आदिवासी समाज का मानना है की यह उनके पितृ देव उनके रक्षक देव है। उनका एक साथ एक जगह पर होने पर उनकी शक्ति असीमित हो जाती है और वह बुरी आत्माओं का नाश करने में सहायता करते हैं। यही कारण है कि आदिवासी समाज अपने पितृ देवों को भी एक अलग मंदिर में स्थापित करता है, जिसे आना कुड़मा कहा जाता है। आदिवासी पितर नहीं मनाते, लेकिन पूर्वजों को अपनी रीति-रीवाज से पूजते हैं। तीज-त्योहार या आदिवासियों के खास मौके पर विशेष पूजा यहां की जाती है। उन्होंने कहा कि आत्मा में ही परमात्मा का वास होता है।