पूरे तन में राम नाम का गोदना,रोम-रोम में सुशोभित प्रभु श्रीराम
जांजगीर-चांपा। सारंगढ़ जिला के बालपुर में जनवरी में लगेगा’बड़े भजन मेला” रामनामी समाज का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन तीन दिवसीय बड़े भजन मेला होना है। यह आयोजन एक साल महानदी के उस पार और एक साल इस पार होता है।
मेले के दौरान ही रामनाम का गोदना भी गुदवाते हैं। जय स्तंभ पर ध्वजा चढ़ाएंगे। यह आयोजन खर्च रहित और आडंबर से दूर है। मेले के भंडारे में श्रद्धालु प्रसाद प्राप्त करते हैं। खास बात यह कि बड़े पैमाने पर भंडारा होने पर भी इसमें मक्खी कहीं नजर नहीं आती। यह मेले की पवित्रता और स्वच्छता का भी प्रतीक है। तन पर सहेजते आए श्रीराम का नाम, छत्तीसगढ़ में रामनामी समाज की आबादी अब नाममात्र छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा, रायगढ़, बलौदाबाजार भाठापारा, महासमुंद और रायपुर जिले के लगभग सौ गांवों में बसेरा ।
प्रभु श्रीराम के प्रति अगाध आस्था
न मंदिर, न मूर्ति, न ग्रंथ। बस राम नाम ही इनके लिए पर्याप्त है। प्रभु के नाम को इन्होंने रोम-रोम में सुशोभित किया है। हालांकि छत्तीसगढ़ में रामनामियों की आबादी अब नाममात्र को रह गई है। पूरे तन में राम नाम का गोदना, एक- दूसरे से मिले तो अभिवादन में राम-राम। जो वस्त्र धारण करते, उन पर भी लिखते राम का नाम। इन्हें मंदिर जाने और मूर्ति पूजने की आवश्यक्ता ही नहीं। यह पहचान है छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के लोगों की। करीब 133 साल पहले छुआछूत व आडंबर से त्रस्त होकर अविभाजित बिलासपुर जिले के छोटे से गांव से इस पंथ की शुरूआत हुई। बीती जनगणनाओं को टटोलें तो जो आबादी 12 हजार तक पहुंच गई थी, वह आज सौ के आंकड़े तक आ पहुंची है। जानकार बताते हैैं कि वर्ष 1890 के आसपास मालखरौदा क्षेत्र के चारपारा निवासी परशुराम भारद्वाज नामक युवक ने रामनामी पंथ की शुरूआत की थी। इस समाज के लोग प्रभु श्रीराम के प्रति अगाध आस्था रखते हैं। लेकिन न तो वे मंदिर जाते हैं, न ही मूर्ति पूजा करते हैं।
वे तो प्रभु के निराकार रूप की भक्ति को ही जीवन का आधार मानते हैं। इसीलिए तन पर राम नाम का गोदना धारण करते हैं। बड़े-बुजुर्गों की मानें तो कहते है हरि व्यापक सर्वत्र समाना ये संदेश देते हैं कि राम तो रोम-रोम और कण-कण में बसते हैैं। जब आपस में मिलते हैं तो अभिवादन भी राम-राम कहकर ही कहते हैं। मूलत: जांजगीर-चांपा, रायगढ़, बलौदाबाजार, भाठापारा, महासमुंद और रायपुर जिले के लगभग सौ गांवों में आज भी इनका बसेरा है, लेकिन गिनती के ही परिवार बचे हैैं। दरअसल, राम नाम का गोदना तन पर, यहां तक कि चेहरे पर भी धारण करने की इनकी इस परंपरा का धीरे-धीरे लोप होता गया।
इस पंथ के प्रमुख प्रतीकों में जैतखांभ या जय स्तंभ, मोर पंख से बना मुकुट, शरीर पर राम-राम का गोदना, राम नाम लिखा कपड़ा और पैरों में घुंघरू धारण करना प्रमुख है। समाज के अध्यक्ष रामप्यारे का कहना है कि मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव और हमारे समाज के लोगों को निम्न समझे जाने के कारण पूजा आदि से वंचित रखने के फलस्वरूप रामनामी समाज की स्थापना की गई थी। समाज के लोग मांसमदिरा का सेवन नहीं करते। परंपराओं के संरक्षण का प्रयास समाज के लोगों द्वारा किया जा रहा है।