रायपुर पहुंचे फारूक अब्दुल्ला ने कहा- इस दोस्ती की चर्चा दिल्ली तक

शिव और शफ़ी की दोस्ती की कहानियों की चर्चा अब दिल्ली से लेकर कश्मीर तक है। इस कहानी से प्रभावित होकर ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला रायपुर पहुंचे। यहां आने के बाद उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बात की। वो जिस सोच के साथ यहां आए हैं, वो उन्हीं के शब्दों में…

“ मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसे भी कभी रायपुर आऊंगा, लेकिन मेरे ज़ेहन ने मेरे दिल में कभी इतनी दस्तक नहीं दी, जितनी इस बार, कि तुम्हें रायपुर जाना ही है। दरअसल, शिव और शफ़ी सिर्फ दो नाम नहीं हैं। ये इस मुल्क का असली चेहरा है। दरअसल, यही मुल्क है। ये दोस्ती ही तरक्की का रास्ता है। आज जो माहौल है, उसमें हज़ारों शिव और शफ़ी की ज़रूरत है। इस मोहब्बत ने मुझे इतना हैरान किया, दिल को इतना छुआ कि मैंने ठान लिया था, संसद सत्र छोड़कर भी मैं रायपुर जाऊंगा। आपके अखबार का मैं शुक्रिया अदा करता हूं, जो कड़वाहट नहीं भर रहा, बल्कि मीठी सी दोस्ती से लोगों के दिलों को छूने और जोड़ने का काम कर रहा है।

सच्चाई है, कि आज हालात बहुत अलग हैं। कश्मीर में लोग मर रहे हैं, वो चाहे हिन्दू हों या मुसलमान हों। इससे किसी को क्या मिलेगा। सरहद के उस पार के लोगों को भी सोचना होगा। ये दोस्ती खोजनी होगी। कहीं न कहीं, वहां कोई शफ़ी होगा, कहीं न कहीं यहां कोई शिव होगा। कल जब मैंने अपने बेटे उमर को बताया कि मैं रायपुर जा रहा हूं, तो वो भी चौंक गया। पूछा- “आप रायपुर क्यों जा रहे हो?” मैंने कहा-“मोहब्बत का पैगाम देने का एक मौका मिला है। मैं इसे गंवाना नहीं चाहता। अगर मैं चूक गया तो एक बड़ा मौका मेरे हाथ से निकल जाएगा कि मैंने अपना फर्ज़ नहीं निभाया। मैंने बेटे को इन दोनों की कहानी बताई, तो उसने कहा, आपको जाना ही चाहिए।”

पेशे से डॉक्टर रहा हूं। नब्ज़ पकड़ना जानता हूं। मैंने कुछ बीमारियों की नब्ज़ पकड़ी है और मुझे लगता है कि मैंने यहां आकर उन्हें ठीक करने की कोशिश की है। मोहब्बत का ये पैग़ाम सरहदों और मुल्कों के पार जाना चाहिए, तभी हम खुशहाल हो सकेंगे। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद को मैं उतना नहीं समझता, लेकिन मौंते तो यहां भी हो रही हैं न.., कश्मीर में भी हो रही हैं। वहां आतंक बाहर से आ रहा है, यहां अंदर से..शायद इतना ही फर्क है। लेकिन दोनों तरफ मसलों का हल बातचीत और दोस्ती से ही निकल सकता है। तीसरा कोई रास्ता नहीं।

ये देश सबका देश है। धर्म अलग है, ज़ुबान अलग है, वेशभूषा अलग है, लेकिन इसके लिए जान देने और लेने का जज़्बा सबके दिलों में एक है। आप ये मत देखिए कि रायपुर में फारूक अब्दुल्ला आया है, आप ये देखिए कि रायपुर में मोहब्बत के केसर की ख़ुशबू लेकर खुद कश्मीर आया है और ये कहने आया कि दोस्ती से बड़ा कुछ हो ही नहीं सकता। हमारे ज़माने में जो हुआ, सो हुआ, अगले ज़माने में दोस्ती की ये कहानियां ही ढूंढनी होगी, तभी हम आने वाली पीढ़ियों से गर्व से कह सकेंगे- हम एक थे, एक हैं और एक रहेंगे।

सवाल: कश्मीर क्या था, क्या है, क्या होगा और क्या होना चाहिए…
मेरे पिताजी शेख साहब के ज़माने से मैं कश्मीर को विवादों में देखता आया हूं। कश्मीर विवाद बनकर रह गया। आज भी कश्मीर सियासत के लिए सिर्फ एक प्रश्न है। कश्मीर में शिव और शफ़ी जैसी दास्तानें होनी चाहिए, लेकिन आज के माहौल को देखते हुए लगता है कि जब तक बातचीत नहीं की जाएगी, एक दूसरे पर बंदूकें तनी रहेंगी।

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