हाईकोर्ट ने फॉर्मेसी काउंसलिंग कराने का आदेश दिया:कहा-31 दिसंबर तक काउंसलिंग कराएं
फॉर्मेसी कॉलेजों में प्रवेश के एक मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की डिविजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने तकनीकी शिक्षा विभाग को मौजूदा नियमों के आधार पर 31 दिसम्बर से पहले डी. फॉर्मा और बी. फॉर्मा के लिए काउंसलिंग पूरा कराने का आदेश दिया है। तकनीकी शिक्षा विभाग ने सात सितम्बर को काउंसिलंग के लिए अधिसूचना निकाला था। उच्च न्यायालय के एक फैसले से आरक्षण कानून रद्द होने के बाद यह काउंसलिंग टाल दी गई थी।
काउंसिलंग में हो रही देरी से प्रभावित विद्यार्थियों ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। उनका कहना था, सर्वोच्च न्यायालय ने मेडिकल और फार्मेसी कॉलेजों में प्रवेश के लिए 31 दिसंबर तक की डेडलाइन तय की है। इस तिथि से पहले यदि काउंसलिंग शुरू नहीं हो पाई तो सत्र को शून्य घोषित करना पड़ेगा। यानी इसके बाद कॉलेजों में प्रवेश बंद हो जाएंगे और फिर इसे अगले सत्र में ही शुरू किया जा सकेगा। विभाग ने काउंसलिंग प्रक्रिया रोक दी है। ऐसे में उनका साल खराब हो जाएगा। सभी पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और एन.के. चंद्रवंशी की डिविजन बेंच ने 19 दिसम्बर को यह फैसला सुना दिया। इसमें कहा गया, 31 दिसंबर से पहले हर हाल में बी.-फार्मेसी और डी.-फार्मेसी की काउंसलिंग प्रक्रिया पूरी की जाए। शासन स्तर पर यदि आरक्षण के नियमों में कोई पेंच फंसा है तो वर्तमान में जो आरक्षण सिस्टम लागू है उसी हिसाब से काउंसलिंग की जाए।
अभी स्थिति क्या है यह स्पष्ट नहीं, मेडिकल फॉर्मुला पर भी विचार
याचिकाकर्ताओं के वकील क्षितिज शर्मा का कहना है, उच्च न्यायालय ने काउंसलिंग कराने को कहा है। इस मामले में आरक्षण के पुराने आदेश पर टिप्पणी करना ठीक नहीं होगा। वहीं महाधिवक्ता का कार्यालय इस मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं कर रहा है। तकनीकी शिक्षा विभाग का कहना है, आदेश मिलने के बाद उसका परीक्षण कराया जाएगा। उसके बाद फैसला होगा। कहा जा रहा है, विभाग मेडिकल कॉउंसलिंग फॉर्मुले पर भी विचार कर रहा है। एमबीबीएस और एमडी-एमएस में प्रवेश के लिए चिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने 2012 से पहले प्रचलित आरक्षण रोस्टर इस्तेमाल कर लिया था। इसके तहत अनुसूचित जाति को 16%, अनुसूचित जनजाति को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% के अनुपात में आरक्षण दिया गया।
एक्सपर्ट कह रहे हैं, बिना आरक्षण के दाखिला करना पड़ेगा
संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ बी.के. मनीष का कहना है, आरक्षण के संदर्भ में मौजूदा विधि से तात्पर्य उस तारीख से होगा जबकि प्रवेश (या नियुक्ति) वास्तव में दी जाती है, इसलिए फ़िलहाल कोई आरक्षण नहीं हो सकता। वैसे भी गुरु घासीदास अकादमी में 19 सितंबर की डिविजन बेंच के फैसले को इस प्रकरण की परिस्थितियों-तथ्यों में अप्रासंगिक ठहराए बगैर वर्तमान बेंच उस फ़ैसले से टकराने वाला कोई निर्देश दे ही नहीं सकती थी। कई संविधान पीठें स्पष्ट कर चुकी हैं कि शिक्षा अथवा नौकरी में आरक्षण किसी हितार्थी का अधिकार नहीं बल्कि राज्य का विवेकाधिकार है जो कि संवैधानिक सीमाओं से नियंत्रित है। ऐसे में जब तक राज्य सरकार कोई विधि सम्मत नई व्यवस्था नहीं करता तब तक छत्तीसगढ़ में एससी-एसटी-ओबीसी का आरक्षण शून्य रहेगा। किसी भी पिछले रोस्टर का प्रयोग किया जाना 1984 के इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत संघ फ़ैसले की रोशनी में अवैध होगा।