कटौती होने से पाकिस्तान को कच्चे तेल के लिए ज्यादा भुगतान करना होगा और उससे उस पर बोझ बढ़ेगा
इस्लामाबाद. कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के फैसले को लेकर बीते कुछ दिनों से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच तनाव पैदा हो गया है। अमेरिका ने सऊदी अरब से अपने रिश्तों की समीक्षा करने की बात कही है। दोनों देशों के बीच यह विवाद तब बढ़ा था, जब सऊदी अरब और रूस के नेतृत्व वाले तेल उत्पादक देशों के संगठन ने क्रूड के प्रोडक्शन में 2 मिलियन बैरल प्रति दिन की कटौती का फैसला लिया गया। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट को रोकने के मकसद यह फैसला लिया गया है, जिससे वैश्विक मंदी की आशंका भी बढ़ी है।
इस बीच पाकिस्तान ने सऊदी अरब का ही समर्थन किया है, जबकि उसके लिए सप्लाई में कटौती से मुश्किल बढ़ने वाली है। कटौती होने से पाकिस्तान को कच्चे तेल के लिए ज्यादा भुगतान करना होगा और उससे उस पर चल रहा कर्ज का बोझ और बढ़ जाएगा। इसके बाद भी पाकिस्तान ने सऊदी अरब का समर्थन किया है। शहबाज शरीफ सरकार ने कहा, ‘ओपेक प्लस देशों के निर्णय के संदर्भ में सऊदी किंगडम के खिलाफ जो कहा गया है, उसमें हम उनके साथ हैं। हम सऊदी अरब के नेतृत्व के प्रति अपना समर्थन जाहिर करते हैं।’ पाकिस्तान की ओर से बयान में कहा गया कि हम सऊदी अऱब की चिंताओं को समझते हैं। वैश्विक आर्थिक स्थिरता और मार्केट में हलचल को रोकने के लिए यह जरूरी कदम है।
पाक ने अमेरिका और सऊदी को दी बातचीत की सलाह
यही नहीं पाकिस्तान ने अमेरिका और सऊदी अरब को सलाह दी है कि ऐसे मामलों में रचनात्क ढंग से व्यवहार करते हुए बातचीत करनी चाहिए। दरअसल पाकिस्तान के मामलों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि इमरान खान के चलते शहबाज सरकार ने यह फैसला लिया है। इमरान खान आरोप लगाते रहे हैं कि शहबाज शरीफ सरकार अमेरिका के इशारे पर काम कर रही है। अपनी सरकार गिरने को लेकर भी इमरान खान ने अमेरिका से साजिश रचे जाने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि मेरी सरकार को हटाने का फैसला अमेरिका से लिया गया था।
कर्ज का बोझ पाकिस्तान पर और बढ़ेगा, फिर भी सऊदी के साथ
ऐसे में शहबाज शरीफ ने अमेरिका की बजाय सऊदी अरब का ही समर्थन करने का फैसला लिया है। सऊदी अरब को पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में मुस्लिग जगत के रहनुमा के तौर पर पेश किया जाता रहा है। ऐसे में शहबाज शरीफ ने आंतरिक राजनीति में बढ़त के लिए सऊदी कार्ड चला है। हालांकि कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के चलते दाम बढ़ने की आशंका है और इससे पाकिस्तान पर भी कर्ज का बोझ बढ़ सकता है।