कृष्ण जन्माष्टमी के दिन प्रदर्शनी देखने उमड़ी भीड़़

प्रदर्शनी में दिख रहा भूमकाल विद्रोह के जननायक गुण्डाधुर का योगदान

रायपुर,

जनसम्पर्क विभाग द्वारा लगाई गई है आजादी के दीवानों पर केन्द्रित प्रदर्शनीआजादी की 75वीं वर्षगांठ पर जनसंपर्क विभाग द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी में शहीद वीर नारायण सिंह, भूमकाल विद्रोह के जननायक गुण्डाधूर, छत्तीसगढ़ के मंगल पाण्डेय कहे जाने वाले हनुमान सिंह सहित अनेक आजादी के दिवानों के योगदान को प्रदर्शित किया गया है। स्थानीय टाउन हॉल में चल रही इस प्रदर्शनी में रोजाना स्कूली बच्चे और आमजन उत्साहपूर्वक छत्तीसगढ़ में देश की आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के बारे में जानकारी ले रहे हैं। प्रदर्शनी में प्रतिदिन क्वीज प्रतियोगिता भी आयोजित की जा रही है।

आजादी के दीवानों पर केन्द्रित प्रदर्शनीप्रदर्शनी के पांचवे दिन आम नागरिकों, युवाओं के साथ ही पी. जी. उमाठे शा. उ. मा. कन्या शाला शान्ति नगर, रायपुर के छात्राएं प्रदर्शनी का अवलोकन किया और इस प्रदर्शनी की सराहना की। स्कूली बच्चों ने बताया कि उन्हें छायाचित्र प्रदर्शनी के माध्यम से छत्तीसगढ़ में देश के आजादी के लिए चलाए गए आंदोलन के संबंध में रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली। विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के मंगल पांडेय कहे जाने वाले हनुमान सिंह की संघर्ष गाथा के बारे में पढ़ कर बच्चे उत्साहित हुए।
भूमकाल विद्रोह के नायक गुण्डाधुर

गुण्डाधूर का जन्म बस्तर के नेतानार नामक गाँव में हुआ था। वे धुरवा जनजाति के थे।गुण्डाधूर का जन्म बस्तर के नेतानार नामक गाँव में हुआ था। वे धुरवा जनजाति के थे। अंग्रेज सरकार ने वहाँ बैजनाथ पण्डा नाम के एक व्यक्ति को दीवान के पद पर नियुक्त किया था। दीवान बैजनाथ पण्डा आदिवासियों का शोषण करता और उन पर अत्याचार करता था। बस्तर के लोग त्रस्त थे। बस्तर के अधिकांश लोगों की आजीविका वन और वनोपज पर आधारित थी। दीवान बैजनाथ पंडा की नीतियों से वनवासी अपनी आवश्यकता की छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए भी तरसने लगे। सन् 1910 ई. में जब बस्तर का संघर्ष हुआ, तब गुण्डाधूर की उम्र लगभग 35 वर्ष थी। वे सन् 1910 ई. के आदिवासी विद्रोह के सूत्रधार थे। मई सन् 1910 ई. तक यह विद्रोह अंग्रेजों द्वारा क्रूरतापूर्वक कुचल दिया गया। सोनू माँझी के विश्वासघात करने पर उनके कई साथी मारे तथा पकड़े बाद में उन्हें फाँसी दे दी गई गुण्डाधूर किसी तरह से बच निकले। अंग्रेजों ने बस्तर का चप्पा-चप्पा छान मारा, लेकिन अंत तक गुण्डाधूर का पता नहीं लगा सके।

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