छत्तीसगढ़ में गोबर के बाद अब 4 रुपये लीटर में गोमूत्र खरीदेगी भूपेश सरकार

रायपुर. छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार गोबर के बाद अब गोमूत्र खरीदने जा रही है। हरेली तिहार के मौके पर गुरुवार से गो-मूत्र की खरीदी शुरू होगी। पायलट प्रोजेक्ट के तहत हर जिले के 2 गोठानों में गौ-मूत्र की खरीदी करेगी। कृषि विकास कल्याण और जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा गो-मूत्र खरीदने 4 रुपये प्रति लीटर कीमत तय की गई है। खरीदे गए गो-मूत्र से जीवामृत और कीट नियंत्रक उत्पाद तैयार किए जाएंगे। सीएम भूपेश बघेल दुर्ग जिले से इसकी शुरुआत करेंगे। पाटन विकासखंड के करसा गांव में हरेली तिहार पर कृषि सम्मेलन कार्यक्रम रखा गया है, जहां सीएम शामिल होंगे। रायपुर जिले में गोमूत्र की खरीदी अभनपुर विकासखंड के नवागांव (ल) और आरंग विकासखंड के ग्राम बड़गांव के गोठान से शुरू की जाएगी।

गोधन न्याय मिशन के प्रबंध संचालक डॉ. अय्याज तम्बोली ने सभी कलेक्टरों को गोठानों में गो-मूत्र की खरीदी को लेकर निर्देश जारी किए हैं। गो-मूत्र की खरीदी गोठान प्रबंधन समिति स्वयं के बैंक खातों में जमा गोधन न्याय योजना से प्राप्त राशि और चक्रीय निधि ब्याज की राशि से करेंगी। सभी कलेक्टरों को अपने-अपने जिले के 2 गोठानों, स्व-सहायता समूह का चयन करने कहा गया था, जहां से योजना की शुरुआत की जाएगी।गो-मूत्र परीक्षण संबंधी किट एवं जीवामृत, कीट नियंत्रक उत्पाद के भंडारण की व्यवस्था की गई है। हरेली तिहार के अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गोठानों से जुड़े प्रदेश के 7442 कम्पोस्ट उत्पादक महिला स्व-सहायता समूहों तथा सहकारी समितियों को 17 करोड़ रुपये बोनस वितरण करेंगे।

दो साल पहले शुरू हुई थी गोबर खरीदी 
बता दें कि 2 साल पहले 20 जुलाई 2020 को प्रदेश में हरेली पर्व के दिन से ही गोधन न्याय योजना के तहत गोठानों में 2 रुपये प्रति किलो की दर से गोबर खरीदी की शुरुआत हुई थी। गोबर से गोठानों में अब तक 20 लाख क्विंटल से अधिक वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, सुपर प्लस कम्पोस्ट महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा तैयार किए जा चुके हैं, जिससे प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा मिला है। गो-मूत्र की खरीदी राज्य में जैविक खेती के प्रयासों को और आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगी। पशुपालकों को गो-मूत्र बेचने से अतिरिक्त आय होगी यानी आर्थिक लाभ वाले व्यापार से जुड़ जाएंगे।

2 साल में 150 करोड़ रुपये की गोबर खरीदी
महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से जीवामृत, गो-मूत्र की कीट नियंत्रक उत्पाद तैयार किए जाने से समूहों को रोजगार और आय का एक और जरिया मिलेगा। जीवामृत और गो-मूत्र का उपयोग किसान रासायनिक कीटनाशक के बदले कर सकेंगे, जिससे कृषि में कास्ट लागत कम होगी। उत्पादन में विषाक्तता में कमी आएगी। इस योजना के तहत पशुपालक ग्रामीणों से लगभग 2 सालों में 150 करोड़ से अधिक की गोबर की खरीदी की गई है। गोबर से वर्मी खाद का निर्माण एवं बिक्री से महिला स्व-सहायता समूहों और गोठान समितियों को 143 करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान किया जा चुका है।

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