लौट के उद्धव घर को आए… फिर बालासाहेब ठाकरे के फॉर्मूले पर ही काम के दिए संकेत
नई दिल्ली. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बुधवार को लंबी जद्दोजहद के बाद महाराष्ट्र के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। यही नहीं उन्होंने इमोशनल कार्ड खेलते हुए विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ दी। इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए उद्धव ठाकरे ने एक तरह से भविष्य के लिए भी अपने इरादे जाहिर कर दिए। उन्होंने कहा कि मुझे तो उस राह पर जाना ही नहीं था, लेकिन मैं चला गया। उन्होंने इस दौरान एकनाथ शिंदे पर तंज कसते हुए कहा कि उन्हें सत्ता के पेड़े मुबारक हों, मुझे तो आप लोगों का प्यार ही चाहिए। उद्धव ने कहा कि मैं नंबर गेम में नहीं जाता। हो सकता है कि उन लोगों के पास बहुमत हो, लेकिन वह कैसे जुटाया गया है, यह भी देखना चाहिए।
उद्धव ठाकरे ने इस दौरान मेरे पास मां है के अंदाज में कहा- मेरे पास शिवसेना है। साफ है कि आने वाले दिनों में वह एक बार फिर से अपने पिता बालासाहेब ठाकरे की राह पर ही निकलने वाले हैं। दरअसल 2019 में महाविकास अघाड़ी के सीएम के तौर पर उद्धव ठाकरे ने जब शपथ ली थी तो वह मातोश्री की परंपरा से अलग था। उससे पहले बालासाहेब ठाकरे करीब 5 दशकों तक महाराष्ट्र की सियासत के सिरमौर रहे, लेकिन कभी सीएम, केंद्रीय मंत्री या फिर सदन का सदस्य बनने से वह दूर ही रहे। वह सरकारों को आशीर्वाद देने की भूमिका ही रहे और किसी भी सरकार की नाकामी अथवा सफलता की आंच उन तक नहीं पहुंची।
शायद यही वजह थी कि ठाकरे परिवार हमेशा शिवसैनिकों के लिए श्रद्धा का केंद्र रहा और कभी निजी आलोचना नहीं हुई। शिवसेना की राजनीति को समझने वाले मानते हैं कि उद्धव ठाकरे ने खुद सीएम का पद स्वीकार के और बेटे आदित्य ठाकरे को कैबिनेट का हिस्सा बनाकर उस नैतिक आभा को कमजोर कर दिया, जो बालासाहेब के दौर में थी। ऐसे में वही होना था, जिसका डर था। सरकार के तमाम फैसलों के लिए सीधे उद्धव ही निशाने पर आ गए और लगातार ऐसे होने से छवि भी धूमिल हुई। अंत में एकनाथ शिंदे गुट ने ऐसी बगावत कर दी कि सत्ता के साथ पार्टी भी जाती दिखी।
ऐसे में उद्धव ठाकरे का यह संदेश कि मुझे उस रास्ते पर जाना ही नहीं था और मेरे पास शिवसेना है, उनके बदले रवैये का संकेत है। माना जा रहा है कि उद्धव ठाकरे के एक बार फिर से पार्टी काडर को ही मजबूती देने का काम करेंगे और पिता की सीख पर चलते हुए सत्ता से दूर रहकर सियासत करेंगे।