मानव जीवन का अस्तित्व सौर ऊर्जा से है : डॉ. सोलंकी
‘‘अक्षय ऊर्जा एवं जलवायु परिवर्तन’’ पर तकनीकी वार्ता आयोजित
रायपुर, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, रायपुर में छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी एवं ऊर्जा विभाग छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग से ‘‘अक्षय ऊर्जा एवं जलवायु परिवर्तन’’ विषय पर तकनीकी वार्ता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदल उपस्थित थे। तकनीकी वार्ता में मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई के प्राध्यापक एवं स्वराजा फाउंडेशन के संस्थापक (डॉ.) चेतन सिंह सोलंकी ने विद्यर्थियों को संबोधित किया। मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने तथ्यों के आधार पर कार्ब डाई ऑक्साईड से होने वाली हानि की ओर प्रकाश डालते हुए कहा कि आजकल दर्पण आधारित तकनीक से तापक्रम में कमी की जा रही है, किन्तु वनों का कटाव बढ़ने, जनसंख्या की वृद्धि दर बढ़ने और उत्पादन की वृद्धि दर कम होने से सामन्यजस्य स्थापित नहीं हो पा रहा है, इसलिए अब सौर ऊर्जा की ओर मुड़कर इसका लाभ लेना चाहिए।
11 वर्षों के लिए ‘‘ऊर्जा स्वराज यात्रा’’ पर निकले भारत के सोलर मैन डॉ. चेतन सोलंकी ने ‘‘अक्षय ऊर्जा एवं जलवायु परिवर्तन’’ विषय पर आयोजित तकनीकी वार्ता समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आजकल मानव तकनीक से सुसजित हो गया है, जिसके कारण मानवों द्वारा अपनी दैनिक क्रियाओं में ऊर्जा संरक्षण पर कम ध्यान दिया जा रहा है। जीवन में सबसे महत्वपूर्ण वायु है, किन्तु वायु की उपलब्धता समस्या बनी हुई है। विश्व में हमारी गलतियों के कारण वन का कटाव बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि 33 प्रतिशत भूमि अपनी ऊर्वरा शक्ति खो चुकी है, जबकि दो तिहाई से अधिक जनसंख्या को जल की उपलब्धता समस्याजनक है। वायु मण्डल में 400 से 600 किलो प्रति माह कार्बन डाई ऑक्साईड की मात्रा बढ़ जाती है, जिसका परिणाम हमें लगभग 10 पीढ़ी तक भुगतना पड़ सकता है। उन्होंने आगे कहा कि 181 देशों की बैठक में निर्णय लिया गया था कि हमारे प्रयासों से कार्बन डाई ऑक्साईड की मात्रा आधी हो जाएगी। सत्य तो यह है कि मानव जीवन का अस्तित्व सौर ऊर्जा से है। प्रायः देखा गया है कि व्यक्ति पैसे बचाने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं, किन्तु पर्यावरण बचाने के लिए नहीं। उन्होंने टिकाऊपन के तीन मूलभूत नियम बताए – उपभोग की सीमित्ता, उत्पादन का स्थानीय स्तर एवं ऊर्जा का सृजन। उन्होंने ऊर्जा स्वाराज को एक व्यापक जनाअनदोलन बनाने और ऊर्जा स्वराज यात्रा (2020 से 2030) के बारे में स्तार से जानकारी दी।
इस अवसर पर संचालक अनुसंधान डॉ. विवेक त्रिपाठी, निदेशक विस्तार, डॉ. पी.के. चन्द्राकर, अधिष्ठाता त्रय डॉ. एम.पी. ठाकुर, डॉ. विनय पाण्डेय एवं डॉ. एम.पी. त्रिपाठी, क्रेडा के मुख्य अभियंता इं. संजीव जैन सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, वैज्ञानिक तथा बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. ए.के. दवे ने किया।