फूटा बेटे का Air India पर गुस्‍सा, बोला- मां-पिता संग जानवरों सा हुआ बर्ताव….बयां की दिल दहलाने वाली दास्‍तां

यह कोई साधारण यात्रा नहीं थी. यह सम्मान और गरिमा की लड़ाई थी, एक बूढ़े पिता और असहाय मां की पीड़ा थी, जिनके लिए सफर की हर उड़ान अब एक युद्ध जैसी हो गई थी. दिल्ली से लंदन की बिजनेस क्लास यात्रा नाम से ही लगता है कि सुख-सुविधाओं से भरपूर होगी, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी. मेरे 83 वर्षीय पिता, जो स्ट्रोक के बाद अपनी याददाश्त की लड़ाई लड़ रहे थे, और मेरी 77 वर्षीय मां, जिनकी रीढ़ की हड्डी अब उनके शरीर का बोझ संभालने में असमर्थ थी, व्हीलचेयर सहायता के साथ सफर कर रहे थे.

मैंने यह सहायता पहले से ही बुक करवा रखी थी, जैसे हर बार करता हूं. लेकिन इस बार, यह उड़ान केवल गंतव्य तक पहुंचने का साधन नहीं, बल्कि एक अमानवीय परीक्षा बन गई. जब विमान लंदन पहुंचा… केबिन क्रू का व्यवहार किसी कठोर जेलर से कम नहीं था. सहायता का नामोनिशान नहीं था. मेरे बीमार माता-पिता को जबरदस्ती उनकी सीटों से उठने के लिए कहा गया. कोई विकल्प नहीं दिया गया, कोई सहानुभूति नहीं दिखाई गई.

‘आपको खुद चलकर बाहर जाना होगा!’ यह शब्द नहीं थे, यह आदेश था. यह एक निर्दयता थी, जिसने मेरी मां के शरीर के हर जोड़ों में दर्द भर दिया, मेरे पिता की धुंधली आंखों में एक असहाय भय उकेर दिया. मैंने विरोध किया. मैंने गिड़गिड़ाया. मैंने क्रू को समझाने की कोशिश की कि मां के लिए चलना असंभव है, कि पिता को लंबे समय तक खड़ा नहीं रखा जा सकता. लेकिन उनके चेहरों पर नर्मी का एक कतरा भी नहीं था.
“व्हीलचेयर नहीं है!” बस इतना कहकर वे मुड़ गए, जैसे उनके लिए यह कोई बड़ी बात ही नहीं थी. मुझे क्या करना था? क्या मैं अपनी मां को गिरते हुए देखता? क्या मैं अपने पिता को ठंड में कांपते हुए सहता? मेरे पास कोई विकल्प नहीं था, सिवाय इस दर्दनाक दृश्य को देखने के.

मैंने और विरोध किया, तो जैसे-तैसे मेरी मां को लंगड़ाते हुए वापस सीट पर बैठने की अनुमति दी गई, लेकिन सहायता? वह तब भी नहीं दी गई. पिता के लिए यह भी नहीं किया गया. उन्हें जबरदस्ती विमान से उतारा गया. और जब मैंने क्रू की ओर देखा, तो वहां केवल बेरुखी थी – कुछ होस्टेस तो इस दर्दनाक दृश्य पर हंस भी रही थीं! यह हंसी नहीं थी, यह मेरी आत्मा पर प्रहार था.

यह अपमान केवल यहीं नहीं रुका. 8 घंटे की उड़ान में सिर्फ एक ओर के टॉयलेट चालू थे, बाकी सभी बंद. लंबी कतारें, बदबू से भरे गंदे टॉयलेट, जिन्हें देख लगता था कि उनकी सफाई तो शायद हफ़्तों से नहीं हुई थी. मल smeared था, मूत्र चारों ओर फैला हुआ था. क्या यह बिजनेस क्लास थी? या कोई जहाज में सजा भुगतने की कोठरी? क्या यह वही एयर इंडिया थी, जिसका कभी गर्व से नाम लिया जाता था? क्या यह वही सेवा थी, जो हमारे देश की पहचान बननी चाहिए थी?

मैंने शिकायत की है. लेकिन इस बार सिर्फ माफी नहीं चाहिए. अब यह केवल एक गलतफहमी की बात नहीं है. यह एक घोर अन्याय है, और इसका जवाब चाहिए. हमारे माता-पिता को किसी ने अपमानित करने का अधिकार नहीं दिया. अब यह लड़ाई केवल मेरी नहीं, उन हर बुजुर्ग माता-पिता की है, जिनके सम्मान को किसी एयरलाइन की बेरुखी के हवाले कर दिया गया. यहां आपको बता दें कि यह दास्‍तां एक बेटे ने elon must (@bearjokesfam) नाम से बने एक्‍स हैंडल से शेयर की है.

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