केंद्र ने नहीं मानी सुप्रीम कोर्ट की बात, साफ-साफ कहा- आपराधिक मामले में बेल पर राहत नहीं, किसपर आएगी आफत

आपराधिक कानून में किए गए बदलावों के बाद हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्र सरकार को यह सुझाव दिया गया था कि अपराधी को जमानत दिए जाने को लेकर अलग कानून बनाया जाना चाहिए. इस मामले पर केंद्र सरकारी की तरफ से अपना जवाब कोर्ट में दिया गया. उन्‍होंने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया है. केंद्र सरकार के हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है. कहा गया कि नए आपराधिक कानूनों में प्री-ट्रायल डिटेंशन और संबंधित मुद्दों के बारे में चिंताओं का पर्याप्त समाधान है. इस निर्णय के बाद दिल्‍ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल व अन्‍य राजनीतिक दल के नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. केजरीवाल को दिल्‍ली शराब घोटाले में छह महीने जेल में काटने पड़े थे.

सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि लंबी कानूनी प्रक्रिया के दौरान अपराधी को प्री ट्रायल के दौरान ही काफी वक्‍त जेल में गुजारना पड़ा है. इसपर कानून के दुरुपयोग की भी संभावना जताई गई. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 को संसद द्वारा पास किए जाने के बाद इसे पिछले साल जुलाई में पूरे देश में लागू कर दिया गया था. केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा कि बीएनएसएस का अध्याय XXXV (या 35) व्यापक रूप से जमानत, जमानत बांड और संबंधित प्रक्रियाओं के लिए रूपरेखा तैयार करता है. लिहाजा इसे लेकर अलग कानून की जरूरत नहीं है. चूंकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 के अध्याय XXXV में जमानत और बांड से संबंधित प्रावधान पर्याप्त माने जाते हैं, इसलिए ‘जमानत’ पर अलग से कानून लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है. इस अध्याय में जमानत, बेल बांड और बांड जैसे शब्दों की परिभाषा दी गई है. साथ ही महिलाओं, नाबालिगों और अशक्त लोगों जैसे कमजोर समूहों के लिए वैधानिक सुरक्षा उपायों सहित जमानत देने की प्रक्रियाओं को भी विस्तार में बताया गया है.

बेल के लिए समर्पित कानून पर जोर
केंद्र सरकार का कहना है कि मौजूदा आपराधिक कानूनों के ढांचे के भीतर सुधारों को संहिताबद्ध करने की दिशा में एक व्यापक बदलाव को दर्शाता है. बजाय इसके कि अलग से कानून बनाया जाए. कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2022 से न्यायिक निर्णयों में एकरूपता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक समर्पित जमानत कानून की आवश्यकता पर जोर दिया है. सरकार का मानना ​​है कि बीएनएसएस के तहत प्रावधान इस उद्देश्य को पर्याप्त रूप से पूरा करते हैं.

बेल पर एक अलग कानून के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जोर ऐसे समय में दिया है जब कई गिरफ्तारियां और बेल आवेदन में लंबी देरी ने ऐसे मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण की निष्पक्षता और प्रभावकारिता पर संदेह पैदा किया. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ऐसे कई हाई-प्रोफाइल लोगों को जमातन दी जो लंबी कानूनी प्रक्रियाओं के चलते लंबे वक्‍त काफी वक्‍त से जेल में बंद थे. इनमें कुछ मामले ऐसे भी थे जहां अधिकतम सजा का प्रावधान सात साल से भी कम है. ऐसा ही एक मामला मोहम्मद जुबैर को जमानत से जुड़ा है. जिन्हें उनके पुराने ट्वीट के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. इसी तर्ज पर अरविंद केजरीवाल ईडी से जुड़े एक मामले में लंबे वक्‍त तक जेल में रहे.

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