सूरत से महाराष्ट्र तक फैला है पन्ना के हीरे का कालाबाजार, सरकार को हो रहा राजस्व का नुकसान

हीरे को लेकर सरकार की कमजोर नीति और समय पर शासकीय नीलामी नहीं करवाने की वजह से राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है। कालाबाजारी की चलते पन्ना से निकलने वाले हीरे बाहर के व्यापारी खरीदकर ले जाते हैं। प्रशासन भी उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाता है। इसकी वजह से पन्ना के लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है।

HIGHLIGHTS

  1. समय पर नीलामी हो, तो हीरे की कालाबाजारी पर लग सकता है अंकुश।
  2. बेशकीमती हीरे की चमक पन्ना की जगह कालाबाजार को कर रही रोशन।
  3. व्यापारियों बताते हैं कालाबाजारी में काम करता है पूरा व्यापारिक नेटवर्क।
 पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में हीरे का इतिहास सदियों पुराना है। महाराजा छत्रसाल की इस धरती पर कहते है कि ‘छत्ता तेरे राज में धक धक धरती होय, जित जित घोड़ा पग धरे तित तित हीरा होय।’ जिले के अंदर बृजपुर से लेकर पन्ना के अधिकांश हिस्सों में हीरे का प्रचुर भंडार मौजूद है।
पन्ना में हीरा दो प्रकार से निकाला जाता है। पहला आम व्यक्तियों के द्वारा खनिज विभाग से पट्टा लेकर और दूसरा मशीनों के माध्यम से बिना मंजूरी के। ऐसे कई प्रकरण है, जिनमें हीरे का अवैध उत्खन्न कई बार सामने आया है और उसमें कई बार कार्यवाही भी हुई है। मगर, अभी तक इसक पर अंकुश नहीं लग सका है।

कालाबाजारी का बड़ा बाजार

इसी के चलते हीरे की कालाबाजारी भी यहां का एक बड़ा अप्रत्यक्ष बाजार है। वहीं, दूसरी ओर जिला प्रशासन की शासकीय नीलामी मनमर्जी से होने के कारण बाजार में हीरे की कालाबाजारी बड़े पैमाने पर बढ़ी है। इससे सरकार को राजस्व की क्षति पहुंचती ही है, साथ ही हीरे का सही दाम और पहचान विलुप्त हो जाती है।
ऐसे कई बड़े-बड़े बेशकीमती हीरे कालाबाजारी की भेंट चढ़ गए। सरकार की हीरे को लेकर कमजोर नीति और समय पर शासकीय नीलामी न करवाना इसकी एक प्रमुख वजह है। चूंकि हीरे का खेल किस्मत का खेल है। सालों साल पूंजी लगाने के बाद जब हीरा धारक को हीरा मिलता है, तो उसको यह उम्मीद होती है कि मुझे हीरे का दाम जल्द से जल्द और अच्छा मिले।

समय पर नहीं होता ही प्रशासनिक नीलामी

मगर, हीरे के इस व्यापार में सरकार की कोई नीति और नीयत साफ न होने के कारण इस बेशकीमती हीरे की चमक पन्ना को न रोशन करके हीरे के कालाबाजार को रोशन कर रही है। सीधे तौर पर इस बात के भी संकेत मिलते है कि मनमर्जी से होने वाली हीरा नीलामी क्या कहीं अधिकारियों और कालाबाजारियों की कोई सांठ-गांठ का खेल तो नहीं है।
दरअसल, अगर समय-समय पर प्रशासनिक नीलामी होती रहे, तो हीरे के कालाबाजार के खेल में बहुत हद तक लगाम लगाई जा सकती है। व्यापारियों की मानें तो हीरे के काले बाजार को लेकर एक पूरा व्यापारिक नेटवर्क काम करता है।

बाहर के व्यापारी कम दाम में ले जाते हैं हीरा

इसमें समय-समय पर बाहर के व्यापारी बेशकीमती हीरे कम दामों में यहां से लेकर चले जाते हैं, जिनकी जानकारी भी प्रशासन के पास होने के बावजूद भी कोई कार्यवाही नहीं हो पाती। हालांकि, वर्तमान दौर में हीरे का बाजार अपने सबसे मंदी के दौर से गुजर रहा है।
मगर, सवाल यह है कि आखिर इतने बड़े देश में हीरे की मांग होने के बावजूद भी पन्ना का हीरा व्यापार क्यों कमजोर पड़ता जा रहा है। इसमें शासन की नियमावली और दिशा-निर्देश न होने के कारण स्थितियां बिगड़ती जा रही हैं।

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