संस्कारशाला: एक निश्चित सीमा में बच्चों को दें जिम्मेदारी उठाने का मौका
गुरुकुल, शिक्षा से संपूर्णता की कहानी बच्चों में संस्कार पैदा कर रही है। संस्कारशाला के माध्यम से प्रतिवर्ष बच्चों और पालकों को इसके माध्यम से जगाया जाता है। इस सप्ताह एक नई कहानी के साथ समाज को स्वतंत्रता की सही परिभाषा को समझाने का प्रयास किया गया है।
HIGHLIGHTS
- संस्कारशाला में किशोर मन की बात।
- तीन प्रमुख स्कूलों में विद्यार्थियों ने सुनी कहानी।
- विद्यार्थियों ने बड़े शांति भाव से कहानी सुनी।
बिलासपुर। संस्कारशाला में इस सप्ताह किशोर मन की बात, स्वतंत्रता के मायने शीर्षक से कहानी प्रकाशित हुआ है। जिसे बच्चे खूब पसंद कर रहे हैं। न्यायधानी के तीन प्रमुख स्कूलों में इस कहानी को विद्यार्थियों के समक्ष डी.कुमार द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि एक निश्चित सीमा में बच्चों को जिम्मेदारी उठाने का मौका दें। तभी वे स्वतंत्रता का सही अर्थ समझ पाएंगे।
लेखिका अमृता सिंह द्वारा लिखित स्वतंत्रता के मायने शीर्षक से प्रकाशित यह कहानी अंधेरे में उजियारा फैलाने जैसा है। डी.कुमार ने शहर के दक्षशिला हायर सेकेंडरी स्कूल, शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला शंकर नगर और रेलवे कालोनी स्थित आंध्र समाज हायर सेकेंडरी स्कूल के बच्चों को कहानी सुनाया।
उन्होंने बताया कि कहानी में मुख्य पात्र एकम का संघर्ष था, जो अपनी मां के अत्यधिक सुरक्षा और नियंत्रित व्यवहार से परेशान था। उसकी मां ने अपनी नौकरी छोड़कर उसे पालने का जिम्मा लिया। लेकिन उसके फैसलों पर पूरा नियंत्रण भी रखा। एकम खुद को क़ैद महसूस करने लगा। अपनी आज़ादी के लिए तड़पने लगा। कहानी में एक दिन उसकी मां ने उससे सवाल किया, तुम्हें दोस्ती और पार्टी में जाना अच्छा लगता है? इस सवाल ने एकम को सोचने पर मजबूर कर दिया कि स्वतंत्रता का सही मायने क्या होता है।
बच्चों के मन में उभरा सवाल
कहानी को सुनने के बाद बच्चों में यह सवाल उभरा कि स्वतंत्रता का सही उपयोग कैसे किया जाए। क्या स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ़ पार्टी और मौज-मस्ती है, या इसमें जिम्मेदारी और समझ भी शामिल होती है? बच्चों ने महसूस किया कि माता-पिता की सोच और बच्चों की अपेक्षाओं के बीच संतुलन होना चाहिए। अगर माता-पिता बच्चों को थोड़ी स्वतंत्रता देते हैं, तो बच्चे उस स्वतंत्रता का जिम्मेदारी के साथ सही उपयोग करना सीख सकते हैं।
समाज को दिया यह संदेश
डी.कुमार ने कहा कि कहानी का यह पहलू न सिर्फ बच्चों के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ा संदेश देता है। हमें यह समझना होगा कि बच्चों की स्वतंत्रता और सुरक्षा के बीच एक संतुलन होना जरूरी है। माता-पिता को बच्चों को अपनी भावनाओं और जिम्मेदारियों को समझने का अवसर देना चाहिए, वहीं बच्चों को भी यह समझना चाहिए कि स्वतंत्रता का सही अर्थ सिर्फ़ मौज-मस्ती नहीं है बल्कि जिम्मेदारी से उसे निभाना भी शामिल है। बच्चों ने बड़े शांति भाव से कहानी सुनी।
कहानी पर बच्चों की प्रतिक्रिया
माता-पिता का ध्यान रखना जरूरी: अनुष्काकक्षा नवमीं की छात्रा अनुष्का शर्मा ने कहा कि मुझे लगता था कि मेरे माता-पिता मेरी हर गतिविधि पर नजर रखते हैं। लेकिन कहानी ने मुझे समझाया कि माता-पिता का ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण होता है। मैं अब उनकी सलाह को और गंभीरता से लूंगी।
स्वतंत्रता का मतलब घूमना नहीं: रोहनकक्षा 11वीं के छात्र रोहन विश्वकर्मा ने कहा कि मुझे लगता है कि स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ बाहर घूमना नहीं है। इसमें जिम्मेदारी का भी महत्व है। अगर मैं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करता हूं तो मुझे वह आजादी भी मिल सकती है जिसकी मुझे जरूरत है।
आजादी के लिए धैर्य रखना चाहिए: साक्षी कक्षा 10वीं की छात्रा साक्षी सिन्हा ने कहा कि इस कहानी ने मुझे समझाया कि माता-पिता का नियंत्रण गलत नहीं है। वे हमारे भले के लिए ही ऐसा करते हैं। हमें अपनी आजादी के लिए धैर्य रखना चाहिए और अपनी पढ़ाई और जिम्मेदारियों पर ध्यान देना चाहिए।
इच्छाओं को नियंत्रित करना जरूरी: यशकक्षा 12वीं के छात्र यश डडसेना ने कहा कि मैंने इस कहानी से सीखा कि हमें अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने की जरूरत है। यदि हम अपने काम में सफल होते हैं, तो माता-पिता खुद हमें और स्वतंत्रता देंगे। गुरुकुल की कहानी मुझे बहुत पसंद आती है।
मैंने समझा जिम्मेदारी का महत्व: रविकक्षा नवमीं के छात्र रवि वर्मा ने कहा कि मुझे समझ में आया कि हमारी आजादी का दुरुपयोग न करके, हमें उसे समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए। कहानी ने मुझे स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के महत्व को गहराई से समझाया। मैंने अखबार में पहले ही कहानी पढ़ लिया था।