राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव में बिखरी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की छटा

क्रांतिवीर गुण्डाधूर पर नाटय मंचन, करमा, सैला, मड़ई एवं ककसाड़ नृत्यों की हुई प्रस्तुति

रायपुर,

राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव राजधानी रायपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव राज्य स्तरीय जनजाति नृत्य, महोत्सव एवं राज्य स्तरीय जनजाति कला और चित्रकला प्रतियोगिता के प्रथम दिवस की संध्याकाल को विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

क्रांतिवीर गुण्डाधूर पर नाटय का मनमोहन मंचन
क्रांतिवीर गुण्डाधूर पर नाटय का मनमोहन मंचन
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत नतानिया फिल्म प्रोडक्शन हाऊस, जगदलपुर की प्रस्तुति ’नाटक’ क्रांतिवीर गुण्डाधूर पर आधारित जीवंत नाट्य का मंचन किया गया। इस नाट्य की शोध परिकल्पना व लेखक एम.ए. रहीम, निर्देशक जी.एस.मनमोहन, रूप सज्जा एवं प्रकाश परिकल्पना-विश्वजीत भट्टाचार्य, नृत्य निर्देशन-राकेश यादव, आशुतोष प्रसाद एवं वेशभूषा जी. संध्या, ज्योति बाला आदि द्वारा की गई। उल्लेखनीय है कि वीर गुण्डाधूर बस्तर जिले के जननायक हैं, जिन्होंने 1910 में बस्तर में भूमकाल विद्रोह का नेतृत्व किया था। उन्हीं के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बस्तर के आदिवासियों ने विद्रोह किया था।

सरगुजा जिला का करमा नृत्य
सरगुजा जिला का करमा नृत्य
सरगुजा जिला से करमा नृत्य दल द्वारा अपनी मनमोहक प्रस्तुति दी गई। करमा उत्सव प्रायः भादो मास के शुक्ल  पक्ष की एकादशी से प्रारंभ होकर अगली वर्षा ऋतु के आरंभ तक चलता है। यह नृत्य मुख्यतः उरांव, मुण्डा, कंवर, नगेसिया, बिरहोर एवं मंझवार जनजाति द्वारा किया जाता है। पारिवारिक एवं सामाजिक सुख-समृद्धि के लिए युवाओं द्वारा करम वृक्ष की पूजा कर करमा देव को प्रसन्न करने के लिए नृत्य किया जाता है तथा इस अवसर पर 30-40 युवक-युवतियां टोलियों में नृत्य करते हैं।
सैला नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति
सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले से सैला नृत्य की प्रस्तुति दी गई। सैला छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध और पारम्परिक लोकनृत्य है। यह नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। कहीं इसे डंडा नृत्य तो कहीं इसे शैला नृत्य कहा जाता है। यह नृत्य आश्विन माह से शुरू होकर फागुन पूर्णिमा तक किया जाता है। इस नृत्य का आयोजन अपने आदि देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह नृत्य मूलतः पुरूषों द्वारा सम संख्या में 10, 20 या 30 सदस्यों द्वारा किया जाता है।

दुर्ग संभाग के कबीरधाम जिले से दशहरा करमा नृत्य
बैगा जनजाति द्वारा भादो पुन्नी से मांघी पुन्नी (अगस्त से जनवरी माह) तक किए जाने वाले करमा नृत्य का मंचन किया गया। करमा नृत्य रात्रि के समय ग्राम में एक निर्धारित खुला स्थान जिसे ’खरना’ कहा जाता है, आग जलाकर सभी आयु के महिला, पुरूष एवं बच्चे नृत्य करते हुए अपने सुख-दुख को एक दूसरे का प्रश्न एवं उत्तर के रूप में प्रस्तुत कर गीत संगीता एवं नृत्य करते हैं। यह नृत्य सामान्यतः 15-20 महिला एवं 15-20 पुरूष सदस्यों के समूह में किया जाता है।
बस्तर संभाग के सुकमा जिले से मड़ई नृत्य (धुरवा)
बस्तर के प्रसिद्ध आदिवासी भूमकाल विद्रोह के नायक शहीद वीर गुण्डाधूर की सेना द्वारा मंड़ई नृत्य के माध्यम से अपनी भावनाओं को जनसामान्य तक पहंुचाने का कार्य किया जाता है। इसी क्रम में धुरवा जनजाति के युवक-युवतियां वीर रस से परिपूर्ण होकर मड़ई नृत्य करते हैं। इसमें पुरूष हाथ में कुल्हाड़ी और मोरपंख का गुच्छा लेकर योद्धा की तरह दुश्मनों को ललकारते हुए नृत्य करते हैं। युवतियां युवको के पीछे-पीछे लय मिलाते हुए सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। वर्तमान में ग्राम देवी देवता की पूजा के दौरान मड़ई नृत्य किया जाता है।
बस्तर संभाग के कोण्डागांव जिले से ककसाड़ नृत्य
दण्डामी माड़िया जनजाति में ककसाड़ नृत्य का मंचन किया गया। यह दण्डामी माड़िया जनजाति का प्रमुख त्यौहार भी है। दण्डामी माड़िया जनजाति के सदस्यों द्वारा नृत्य के दौरान पहने जाने वाले गौर सिंग मुकुट के आधार पर इन्हें ’बायसन हार्न माड़िया’ के नाम से भी जाना जाता है तथा प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के अंतिम दिनों में चलने वाला विशालकाय काष्ठरथ को खींचने का विशेषाधिकार तथा अपने स्वभाव के लिए भी प्रसिद्ध है। यह नृत्य 18-20 महिला-पुरूषों द्वारा किया जाता है। नृत्य में धार्मिक संस्कार के रूप में सभी आमंत्रित देवी देवताओं की पूजा की जाती है। इस प्रकार संध्याकालीन में कुल 5 नर्तक दल एवं नाटक क्रांतिवीर गुण्डाधूर पर आधारित प्रस्तुति दी।

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