आयुर्वेद में है रामबाण इलाज, हाथ-पैरों ने काम करना कर दिया था बंद, चार माह में लकड़ी के सहारे चलना शुरू कर दिया
HIGHLIGHTS
- असाध्य बीमारियों का आयुर्वेद में है रामबाण इलाज
- शासकीय आयुर्वेद अस्पताल में भटक रहे मरीजों की बीमारी हुई दूर
- चिकित्सालय में इलाज के लिए भटक रहे मरीजों की बीमारी हुई दूर
रायपुर। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से असाध्य रोगों का इलाज बड़ी आसानी से हो जाता है। बदलती जीवन शैली में बीमारी से तुरंत राहत पाने के लिए दूसरी पद्धति की तरफ चले जाते हैं, लेकिन असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति रामबाण है। इससे कोई भी बीमारी धीरे-धीरे जड़ से समाप्त हो जाती है और कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है। शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय में ऐसे ही दो मरीजों की असाध्य बीमारी को ठीक किया गया है, जिसे बड़े-बड़े शासकीय व निजी स्वास्थ्य संस्थान नही कर पाए थे। इन दिनों ओपीडी में रोजाना औसतन 450 से 500 मरीज पहुंच रहे हैं। इसमें दूसरे राज्यों के मरीज भी शामिल हैं।
हाथ-पैर काम करना दिया था बंद, मुंह टेढ़ा
डोगरगढ़ के ग्राम आरी के दर्शन सिंह का दोनाें हाथ और पैर काम करना बंद कर दिया था और मुंह टेढ़ा हो गया था। साथ यूरिन और मल होने का पता नही चल पा रहा था। राजधानी के एक बड़े स्वास्थ्य संस्थान में गिल्लन-बर्रे सिंड्रोम की पहचान कर डाक्टरों ने इलाज किया लेकिन कोई फायदा नही हुआ।
जून के प्रथम सप्ताह में दर्शन सिंह शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय के पंचकर्म विभाग में इलाज कराने के लिए पहुंचे। यहां पर सर्वांगवात रोग की पहचान कर 15 दिन कोलकुलथ्यादि चूर्ण से सर्वांग उद्वर्तन, महानारायण तैल से सर्वांग अभ्यंग, पत्रपिंड स्वेदन, नाड़ी स्वेदन और मात्रावस्ति दिया गया। फिर सहचरादी तैल से कटिवस्ति, ग्रीवावस्ति और विभिन्न औषधि क्वाथ से शिरोधारा चिकित्सा शुरू हुआ। 15 दिनों में ही दर्शन सिंह के दोनों हाथ और पैरों में झुनझुनी के साथ दर्द शुरू हो गया। फिर यूरिन और मल का एहसास होना प्रारंभ हो गया।
डाक्टरों ने इसके बाद षष्टिकशाली पिंड स्वेदन तथा शिरोवस्ति चिकित्सा शुरू किया, जिससे हाथ और पैर में ताकत आनी शुरू हो गई। बोलना, बिना नली लगाए यूरिन और मल जाना आरंभ हो गया। डाक्टरों ने विभिन्न औषधि काढ़े, शहद, तिल तैल, दूध, घृत और मांसरस आदि से निरुह वस्ति और विभिन्न औषधि तैल आदि से सर्वांगधारा और फिजियोथेरेपी शुरु कर दिया। डाक्टरों ने बताया कि दर्शन सिंह स्ट्रेचर पर आए थे और उठ नहीं पा रहे थे लेकिन दो माह में ही वाकर की सहायत से चलने लगे। चार माह समाप्त होते-होते लकड़ी के सहारे चलने लगे हैं। अगले एक-दो माह में लकड़ी का भी सहारा नहीं लेना पड़ेगा।
हिप रिप्लेसमेंट की नहीं पड़ी जरूरत
ओडिशा के कांटाबांजी के रहने वाला 18 वर्षीय धीरज प्रधान एवैस्क्युलर नेक्रोसिस की वजह से लकड़ा कर चलने के लिए मजबूर था। धीरज के दोनों कूल्हे की हड्डियों में रक्त संचारण कम होने की वजह से अस्थिक्षय हो कर श्रोणीसंधि में चिपक गया था। धीरज ने कई निजी स्वास्थ्य संस्थानों में इलाज कराया लेकिन डाक्टरों ने एकमात्र विकल्प हिप रिप्लेसमेंट बताया। आर्थिक रूप से कमजोर धीरज हिप रिप्लेसमेंट कराने में असमर्थ था। आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय में निश्शुल्क इलाज लेने की आशा में पहुंचा।
यहां पर डाक्टरों ने भर्ती कर इलाज शुरू किया। धीरज का सर्वप्रथम आयुर्वेदिक औषधि और पंचकर्म चिकित्सा क्रम में महानारायण तैल से अभ्यंग, पत्रपिंड स्वेदन, नाड़ी स्वेदन और मुरिवेणा तैल से मात्रावस्ति चिकित्सा शुरू हुआ। इसके बाद विभिन्न औषधि काढ़े, शहद, घी, दुध तथा औषधि चूर्ण से निरुहवस्ति दिया गया जिससे उसके श्रोणी संधि में रक्त का संचार होना प्रारंभ हो गया। धीरे-धीरे उसके कमर और कुल्हे में दर्द होना कम हो गया। साथ लंगड़ा के चलने में धीरे-धीरे सुधार होने पर सीढ़ियों में खुद चढ़ना और उतरने लगा।
मरीज की स्थिति को देखकर डाक्टरों ने पंचकर्म चिकित्सा की नई नई पद्धति जैसे षष्टिकशाली पिंड स्वेदन, औषधि काढ़े और तैल से सर्वांगधारा तथा बकरी के पैर की मांस रस से वस्ति देना शुरू कर दिया। धीरज अगस्त में आया था। दो माह में ही वह 90 प्रतिशत ठीक हो चुका है। उसके लंगड़ा के चलने में भी 90 प्रतिशत से अधिक सुधार हो चुका है। धीरज के स्वजन ने कहा कि बेटे को नई जिंदगी मिली है।
आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय के पंचकर्म विभाग विभागाध्यक्ष डा. रंजीप कुमार दास ने कहा, प्राचीन आयुर्वेदिय तथा पंचकर्म चिकित्सा पद्धति से असाध्य बीमारियां भी साध्य हो गई हैं। रोगी सही समय पर आकर और पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में विश्वास के साथ चिकित्सक के सभी निर्देशों का पालन कर एक असंभव रोग से मुक्त हो पाए हैं। एवैस्क्युलर नेक्रोसिस का अंतिम विकल्प हिप रिप्लेसमेंट हैं, लेकिन आयुर्वेदीय और पंचकर्म चिकित्सा से इसके बिना भी यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है।