Thalassemia: शादी के पहले थेलेसीमिया की जांच करवाएं कपल, नहीं तो हो सकते हैं गंभीर परिणाम"/>

Thalassemia: शादी के पहले थेलेसीमिया की जांच करवाएं कपल, नहीं तो हो सकते हैं गंभीर परिणाम

Thalassemia: थेलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है और बच्चों को ही होती है। यदि किसी बच्चे को जन्म से ही थेलेसीमिया है तो वह उसे ताउम्र रहेगा। इस बीमारी में चार से पांच माह की उम्र के बाद बच्चे के शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बनने से रक्त की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में हर तीन से चार सप्ताह में बच्चों को रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। अगर माता व पिता के अंदर थेलेसीमिया का ट्रेट होता है, तब उसे यह बीमारी होने का खतरा रहता है।

एमजीएम मेडिकल कालेज की एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्राची चौधरी ने बताया कि ऐसे में विवाह के पूर्व युवाओं को अपने रक्त की जांच करवाकर थेलेसीमिया के ट्रेट का पता जरूर करवाना चाहिए। यदि युवक व युवती दोनों को थेलेसीमिया ट्रेट है तो उनके बच्चे को थेलेसीमिया होने की आशंका रहती है। यदि किसी युगल में दोनों को थेलेसीमिया ट्रेट है और शादी हो चुकी है तो गर्भावस्था के दौरान एंब्रियो की जांच कर यह पता किया जा सकता है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को थेलेसीमिया की समस्या है या नहीं। इस बीमारी का इलाज ताउम्र चलता है।

रक्त चढ़ाने के अलावा बोनमैरो ट्रांसप्लांट भी एक उपचार

इंदौर में करीब एक हजार बच्चे इस बीमारी से जूझ रहे हैं। ऐसे में यदि लोगों को शादी के पहले ही जागरूकता के साथ रक्त की जांच करवाकर थेलेसीमिया ट्रेट का पता कर ले तो उनका जन्म लेने वाला बच्चा सुरक्षित हो सकता है। इस बीमारी में रक्त चढ़ाने के अलावा बोनमैरो ट्रांसप्लांट भी एक उपचार है। यह उपचार इंदौर के सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल सहित शहर के कुछ निजी अस्पतालों में भी उपलब्ध है।
इस इलाज के दौरान मरीज के शरीर में मौजूद बोनमैरो को पूरी तरह खत्म किया जाता है और डोनर का बोनमैरो मरीज को चढ़ाया है। इससे मरीज की यह बीमारी जड़ से खत्म होती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है। जिसमें दो माह अस्पताल में उपचार चलता है और बोनमैरो चढ़ाने के बाद मरीज का सालभर तक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। थेलेसीमिया के मरीजों को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है।

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