क्यों मनाया जाता है होलिका दहन का पर्व, जानिए इसकी ये पौराणिक कथा

नई दिल्ली. होली रंगों, आपसी मेल-मिलाप और उल्लास का त्योहार है। लेकिन हर साल धुलन्डी यानि रंग वाली होली से एक दिन पहले फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन का पर्व भी मनाने की परंपरा रही है। इस साल यह पर्व 17 मार्च को मनाया जाएगा। धर्म में होलिका दहन का भी अपना एक विशेष महत्व होता है और इसके पीछे एक कथा भी प्रचलित है। होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा करना और कथा को पढ़ना काफी शुभ माना जाता है। कहते हैं कि इससे ग्रह दोषों का निवारण होने के साथ ही घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। तो आइए जानते हैं होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में…

भगवान श्री विष्णु के कई भक्त हुए जिनमें से एक भक्त का नाम प्रहलाद था। प्रहलाद का जन्म असुर कुल में होने के कारण प्रहलाद के पिता राजा हिरण्यकश्यप को विष्णु भगवान के प्रति अपने पुत्र की आस्था बहुत खटकती थी। लेकिन प्रहलाद को ये गुण अपनी मां कयाधु से मिले होने की वजह से वह अन्य चीजों की परवाह किये बिना केवल भगवान की भक्ति में लगा रहता था।

लाख समझने के बाद जब प्रहलाद ने भक्ति नहीं छोड़ी तो पिता हिरण्यकश्यप ने उसे बहुत सी यातनाएं दीं। लेकिन हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच जाता था। सभी तरकीबें अपनाने के बाद अंत में हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए अपनी असुरी बहन होलिका का सहारा लिया। होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। इसलिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की गोद में पुत्र प्रहलाद को बैठा दिया तथा उनके चारों तरग अग्नि जला दी।

लेकिन होलिका को आग में न जलने का वरदान होने के बाद भी वह उस आग में भस्म हो गई। वहीं भगवान विष्णु के लिए सच्ची भक्ति होने के कारण उस अग्नि में से प्रहलाद सुरक्षित निकल आया। उसी समय से धुलन्डी से एक दिन पहले होलिका का दहन करने की इस प्रथा की शुरुवात हुई। इसलिए बुराई पर अच्छाई की विजय की इस कथा को होलिका दहन से पूर्व पढ़ने से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

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