गायत्री जयंती: वेदों की जननी गायत्री, ज्ञान और विवेक की देवी हैं, माता गायत्री
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘गायत्री’ जयंती के रूप में मनाई जाती है। यद्यपि भारत के दक्षिणी हिस्से में श्रावण मास की पूर्णिमा गायत्री जयंती के रूप में मनाई जाती है। वहां गायत्री जयंती को ‘संस्कृत’ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इन्हें ज्ञान और विवेक की देवी माना जाता है। देवी गायत्री से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। एक बार ब्रह्मा जी ने लोगों के कल्याण के लिए पृथ्वी लोक पर यज्ञ करने का विचार किया। और, कुछ सोच कर उन्होंने अपना कमल का फूल पृथ्वी लोक की ओर फेंका। कमल का यह फूल पुष्कर में जाकर गिरा। फूल के वहां गिरने से एक तालाब बन गया। ब्रह्मा जी ने उस स्थान पर यज्ञ करने का निश्चय किया। ब्रह्मा जी सहित सभी देवी-देवता यज्ञ में हिस्सा लेने के लिए वहां पहुंच गए। लेकिन उनकी पत्नी सावित्री नहीं पहुंची। यज्ञ के मुहूर्त का समय निकट आता जा रहा था। ऐसे में ब्रह्मा जी ने ‘नंदिनी’ गाय के मुख से देवी गायत्री को प्रकट किया। उन्होंने वहीं उनसे विवाह कर यज्ञ को शुभ मुहूर्त में संपन्न किया। एक अन्य कथा में यहां ब्रह्मा जी के एक ग्रामीण कन्या गायत्री से भी विवाह का वर्णन है। कुछ समय पश्चात जब देवी सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंची और उन्होंने ब्रह्मा जी के समीप किसी अन्य स्त्री को देखा तो अत्यंत क्रोधित हुईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप देते हुए कहा कि संपूर्ण पृथ्वी लोक पर उनकी कहीं पूजा नहीं होगी। सभी देवताओं ने उनका क्रोध शांत करते हुए श्राप वापिस लेने का आग्रह किया। इस पर देवी गायत्री ने कहा कि पृथ्वी लोक में सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी। तब से सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होती है और उनका एकमात्र मंदिर भी वहीं है।
अन्य पौराणिक कथा के अनुसार गायत्री मंत्र की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मुख से सृष्टि की रचना करते समय हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपने चार मुखों से गायत्री मंत्र की व्याख्या वेदों के रूप में की। महर्षि वेदव्यास ने वेदों के संपूर्ण ज्ञान को चार वेदों ‘ऋग्वेद’, ‘यजुर्वेद’, ‘सामवेद’ और ‘अथर्ववेद’ के रूप में विभाजित किया। आगे चलकर महर्षि विश्वामित्र ने माता गायत्री को अपनी कठोर तपस्या से प्रसन्न किया और गायत्री मंत्र से उनकी स्तुति की। इस प्रकार वे गायत्री मंत्र के द्रष्टा बने और देवताओं के इस मंत्र को महर्षि विश्वामित्र ने सर्वजन को सुलभ कराया।
सूर्य मंडल में निवास करने वाली देवी गायत्री आद्याशक्ति प्रकृति के पांच स्वरूपों में से एक मानी गई हैं। गायत्री, सावित्री और सरस्वती एक ही ब्रह्मशक्ति का स्वरूप हैं। वेदों की जननी होने के कारण इन्हें ‘वेद’ माता भी कहा जाता है। इसी प्रकार सभी वेदों का सार माने जाने वाले चौबीस अक्षरों के गायत्री मंत्र को मंत्रों का राजा कहा गया है।