ऐसी कुंडली दिलाती है साझेदारी में बड़ा आर्थिक लाभ
नई दिल्ली. ज्योतिष शास्त्र में किसी भी व्यक्ति की कुंडली में यह देखना चाहिए कि व्यापार के योग हैं या नहीं? इसके लिए कुंडली के लग्न, द्वितीय, तृतीय, दशम, एकादश भाव तथा उसके स्वामी ग्रहों की स्थिति और उनका सप्तम भाव या उसके स्वामी ग्रह से संबंध देखना। व्यापार में सफलता के लिए कुंडली में बुध का मजबूत होना आवश्यक होता है। सातवें भाव के स्वामी का संबंध द्वितीय भाव, दशम भाव और ग्यारहवें भाव के स्वामी के साथ होता है, तब व्यवसाय में साझेदारी बड़ा आर्थिक लाभ दिलाती है। इस योग में लग्न, पंचम या नवम भाव का स्वामी ग्रह जुड़ जाए तो सोने पर सुहागा माना जाता है क्योंकि ऐसी स्थिति में उत्तम राजयोग, धन योग एवं केंद्र-त्रिकोण राजयोग की स्थिति बन जाती है।
कुंडली में तृतीय तथा सप्तम भाव का स्वामी अस्त या नीच राशि का नहीं होना चाहिए। ऐसी स्थिति में सहयोगी एवं साझेदार से नुकसान मिलता है। तृतीय, सप्तम और दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित नहीं होना चाहिए अन्यथा इससे साझेदारी में हानि होती है। तृतीय, सप्तम और दशम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो तो साझेदारी में बड़ी सफलता मिलती है।
लग्न, द्वितीय, तृतीय, पंचम, सप्तम, नवम, दशम एवं एकादश भाव से संबंधित शुभ एवं बलवान ग्रह की महादशा के दौरान व्यापार प्रारंभ करना या व्यापार में साझेदारी करना आर्थिक दृष्टि से अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होता है। कुंडली में सूर्य-राहु, चंद्र-राहु, गुरु-राहु, शनि-राहु की युति व्यापार एवं साझेदारी में विभिन्न प्रकार की समस्या उत्पन्न करती है। छठे, आठवें तथा बारहवें भाव से संबंधित ग्रह की महादशा के दौरान व्यापार या साझेदारी में बड़ा नुकसान होता है, अत इनमें व्यवसाय या साझेदारी प्रारंभ न करें।