कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार और कोर्ट में बनी सहमति, लेकिन कई मुद्दों पर रार बरकरार
नई दिल्ली। उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों को मंजूर करने पर सरकार और कोर्ट के बीच समझ बनी है, लेकिन कई मुद्दों जैसे सिफारिशों के दोहराने पर उन्हें स्वीकार करना, जजों के अंतर हाईकोर्ट तबादलों और जजों की वरिष्ठता पर सहमति नहीं बन रही है। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा जजों की वरिष्ठता का है, जिस पर सरकार ने कोई स्पष्ट रुख नहीं लिया है।
वरिष्ठता का विवाद यह है कि कॉलेजियम जब किसी वकील को जज बनाने की सिफारिश करता है। लेकिन, सरकार उस सिफारिश को रोक लेती है और उसके साथ के अन्य जजों की सिफारिश मंजूर कर लेती है। इसके बाद कॉलेजियम की तरफ से सिफारिश फिर दोहराने पर मंजूर किया जाता है तो ऐसी स्थिति में वह जज जूनियर हो जाता है। कई दफा इस कनिष्ठता को देखते हुए उम्मीदवार जज बनने से ही इनकार कर देते हैं। कॉलेजियम और बार का कहना है कि जज को उसकी सिफारिश होने के दिन से ही वरिष्ठता मिलनी चाहिए।
तबादले का मामला
दूसरा मुद्दा जजों के तबादले होने की स्थिति का है। हाईकोर्ट में जजों की भर्ती एक तिहाई प्रमोशन से और दो तिहाई बार से सीधे की जाती है। बार से भर्ती जज को जब दूसरे हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया जाता है तो सरकार उस हाईकोर्ट में उस जज को विचारित करती है। यदि वह बार से है तो उसे बार के कोटे में मानती है और उसकी एक रिक्तियां उसकी हिसाब से तय करती है। कॉलेजियम ने कहा है कि सरकार स्थानांतरित जज को स्थानांतरित जज के रूप में माने और उसे हाईकोर्ट के कोटे में शामिल न करे। लेकिन, सरकार ने इस पर भी कोई आश्वासन नहीं दिया है।
वरिष्ठता का मामला
तीसरा मुद्दा वरिष्ठता का है, जिसमें सरकार का विरोध है। कॉलेजियम कई बार हाईकोर्ट के जूनियर जज को सुप्रीम कोर्ट में लाने की सिफारिश करती है, लेकिन सरकार इस सिफारिश को रोक लेती है और दोहराने पर भी सहमति नहीं देती। जस्टिस केएम जोसेफ का मामला इस बात का उदाहरण है। जस्टिस जोसेफ उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। सरकार ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट लाने की सिफारिश को नहीं माना, जबकि कॉलेजियम ने उसे दोहराया था। सरकार का कहना था कि जस्टिस जोसेफ ऑल इंडिया रैंकिंग में 41 वें नंबर पर थे, उनसे सीनियर कई जज हैं। हालांकि, बाद में छह माह के बाद सरकार ने उनकी फाइल मंजूर कर ली।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 1993 के फैसले में स्पष्ट है कि यदि कॉलेजियम किसी सिफारिश को दोबारा भेजती है तो सरकार उसे मंजूर करने के लिए बाध्य है, लेकिन सरकार इस मुद्दे पर भी तैयार नहीं है। सरकार के पास कई सिफारिशें पड़ी हैं, जिन्हें दोहराने के बाद भी मंजूर नहीं किया गया है।
छह न्यायिक अधिकारियों को राजस्थान उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया
उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों को लेकर सरकार और कॉलेजियम के बीच गतिरोध के बीच, छह न्यायिक अधिकारियों और तीन अधिवक्ताओं को शुक्रवार को राजस्थान उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। कानून मंत्रालय ने शुक्रवार देर शाम जानकारी दी। अधिवक्ता गणेशराम मग्ना, अनिल कुमार उपमन और नूपुर भाटी तथा न्यायिक अधिकारी राजेंद्र प्रकाश सोनी, अशोक कुमार जैन, योगेंद्र कुमार पुरोहित, भुवन गोयल, प्रवीर भटनागर और आशुतोष कुमार को न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया से अवगत सूत्रों ने कहा कि गणेश राम मग्ना को नियुक्त करने की सिफारिश कम से कम चार साल पुरानी थी, अन्य नामों की सिफारिश कॉलेजियम ने हाल के दिनों में की थी। कानून मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, राजस्थान उच्च न्यायालय में 2 जनवरी को 24 रिक्तियां थीं। आने वाले दिनों में नवनियुक्त न्यायाधीशों के शपथ लेने के बाद रिक्त पदों की स्थिति में सुधार होगा। कानून मंत्रालय ने शुक्रवार को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश अभय आहूजा को 4 मार्च से एक साल का नया कार्यकाल देने की भी अधिसूचना जारी की। अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल तीन मार्च को समाप्त हो रहा है। स्थायी न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नत होने से पहले अतिरिक्त न्यायाधीशों को आमतौर पर दो साल की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है।