प्राइवेट अस्पताल में हुआ कैडेवर ट्रांसप्लांट
राजधानी के एक निजी अस्पताल ने इसी महीने प्रदेश का पहला कैडेवर ट्रांसप्लांट किया। इससे 12 जरूरतमंदों को नई जिंदगी मिली। भास्कर ने इस घटनाक्रम के बाद राज्य में सरकारी हेल्थ सिस्टम का विश्लेषण किया और पाया कि यहां 10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों और 1 एक सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में कैडेवर ट्रांसप्लांट तो दूर, अब तक ढंग से आर्गन ट्रांसप्लांट भी शुरू नहीं हो पाया है। भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि यहां 2016 में कैडेवर ट्रांसप्लांट का बिल विधानसभा में पारित हुआ था, तब से लेकर आज तक स्वास्थ्य विभाग में 4 सचिव, 3 स्वास्थ्य संचालक और 3 चिकित्सा शिक्षा संचालक बदल गए।
किसी भी अफसर ने इसकी पहल नहीं की, जबकि इस दौरान रायपुर के 5 निजी अस्पतालों ने किडनी ट्रांसप्लांट और 2 अस्पतालों ने लिवर ट्रांसप्लांट भी शुरू कर दिए। स्थिति यह है कि यहां हर महीने 10 से 12 किडनी और 2 लिवर ट्रांसप्लांट हो रहे हैं। कैडेवर ट्रांसप्लांट भी शुरू हो गया, लेकिन स्वास्थ्य विभाग में बैठकें और मंथन ही चल रहा है। बीते दिनों स्वास्थ्य सचिव का पद संभालने के बाद आईएएस आर. प्रसन्ना ने डीकेएस स्वशासी समिति की बैठक लेकर ट्रांसप्लांट शुरू करने के लिए निर्देश दिए, क्योंकि यह राज्य का एकमात्र सरकारी अस्पताल है जहां सुपरस्पेशलिस्ट पदस्थ हैं।
हॉस्पिटल प्रबंधन के सामने समस्या यह है कि ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी उपकरणों की खरीदी सीजीएमएससी से होनी है। इसलिए प्रबंधन ने डीएमई से कहा- आप हमें 3 लाख तक के उपकरणों की खरीदी की अनुमति दें और बड़े उपकरणों की खरीदी के लिए वन टाइम रिलेक्सेशन। गौरतलब है कि ब्रेन डेड घोषित हो चुके मरीजों के परिजन अपनों के ऑर्गन डोनेट करना चाहते हैं, मगर सरकारी अस्पताल में सुविधा ही नहीं है। आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात जैसे राज्य सालों से कैडेवर ट्रांसप्लांट कर रहे हैं। जरुरतमंद लोगों की जान बचा रहे हैं।
मरीजों का क्या होगा फायदा-
राज्य के ऐसे जरुरतमंद मरीज जो किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 8-10 लाख, लिवर के लिए 15-20 लाख और हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए 25-30 लाख रुपए खर्च नहीं कर सकते। यही कारण है कि राज्य सरकार ने आयुष्मान भारत डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना में ट्रांसप्लांट के लिए पैकेज तय किए हैं। अगर,सरकारी अस्पताल में सुविधाएं विकसित हो जाती हैं तो योजना का पैसा सरकारी अस्पतालों के खाते में जाएगा।
प्राइवेट में कैडेवर ट्रांसप्लांट…प्रदेश के सरकारी अस्पताल आर्गन ट्रांसप्लांट शुरू नहीं कर पाए भास्कर एनलिसिस – हेल्थ में 5 साल में 4 सचिव, 3 डायरेक्टर, 3 डीएमई बदले, फिर भी 10 मेडिकल कालेज और एक सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में ऐसी सर्जरी नहीं
डीकेएस में सुविधा विकसित करने मिलती है पूरी राशि- डीकेएस हॉस्पिटल में शत-प्रतिशत मरीजों का इलाज आयुष्मान भारत डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना से होता है। नियमानुसार सभी सरकारी अस्पतालों को इलाज के पैकेज रेट से 34 प्रतिशत राशि काटकर जारी होती है। मगर, डीकेएस हॉस्पिटल को 100 प्रतिशत राशि जारी होती है, ताकि प्रबंधन को ट्रांसप्लांट जैसी बड़ी सुविधाओं को विकसित कर सके।
डीकेएस- रिनोवेटेड ओटी, ट्रेंड स्टाफ नहीं, इसलिए ट्रांसप्लांट नहीं
डीकेएस हॉस्पिटल में किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट के लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की टीम मौजूद है। भास्कर ने कुछ डॉक्टरों से बात की तो उनका कहना था कि आधुनिक उपकरण, रिनोवेटेड ऑपरेशन थिएटर और ट्रेंड स्टाफ मिलें तो कल से ट्रांसप्लांट शुरू कर सकते हैं। हॉस्पिटल के उप अधीक्षक डॉ. हेमंत शर्मा का कहना है कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए 6 करोड़ का बजट चाहिए।
प्रबंधन द्वारा डीएमई के समक्ष प्रस्ताव रखे गए हैं। डीकेएस में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. वरूण अग्रवाल, यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुरेश सिंह और डॉ. राजेश अग्रवाल तथा लिवर ट्रांसप्लांट के लिए डॉ. अजीत मिश्रा पदस्थ हैं।
सुविधा विकसित करेंगे
सरकारी अस्पताल में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा विकसित करने के लिए प्रयास जारी है। इस संबंध में बैठकें हुई हैं, सभी स्तर पर निर्देश जारी हुए हैं।
-आर. प्रसन्ना, सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग
अंतर
कैडेवर ट्रांसप्लांट- ब्रेन डेड घोषित मरीज के ऑर्गन परिवार की सहमति से निकालकर दूसरे मरीजों में ट्रांसप्लांट किए जाते हैं।
ऑर्गन ट्रांसप्लांट- मरीज के परिजन कानूनी शासकीय प्रक्रिया को पूरा करते हुए किडनी, लिवर और अन्य अंग डोनेट कर सकते हैं।
10 साल में यही हो पाया 2013 में रायपुर के एक बुजुर्ग को निजी अस्पताल ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया था। परिजन कैडेवर डोनेशन के लिए तैयार थे, मगर नियम-कानून के अभाव में नहीं कर पाए।
- 2016 में कैडेवर ट्रांसप्लांट बिल विधानसभा में पारित हुआ। लेकिन इसके नियम 2021 यानी पिछले साल ही बने।
- 2022 में ‘सोटो’ (स्टेट ऑर्गन टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन) का गठन हुआ, जो कैडेवर ट्रांसप्लांट की मंजूरी देता है।
- आयुष्मान योजना में 2022 में किडनी, लिवर, हार्ट व बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए सरकार द्वारा पैकेज तय कर दिए गए।