छत्तीसगढ़ की हीरा खदान पर तस्करों का कब्जा
देश के सबसे बड़े हीरा खदानों में से एक पायलीखंड में तस्कर बेखौफ होकर हीरे की अवैध खुदाई कर रहे हैं। खदान शुरू करने के लिए सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। 32 साल पहले पायलीखंड में हीरा होने की पुष्टि हुई थी। साल 2000 में छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनते ही खदान की सुरक्षा का जिम्मा CRPF को सौंप दिया गया।
यहां CRPF के जवानों का पहरा था, लेकिन 2009 में इस घने जंगली इलाके को नक्सलियों ने अपना ठिकाना बना लिया। इसके बाद शासन ने सुरक्षा के लिहाज से तैनात बल को यहां से हटा लिया। सुरक्षा जवानों के हटते ही नक्सलियों ने यहां अपनी पैठ मजबूत कर ली। 2016 तक नक्सलियों के साए में यहां बड़े पैमाने पर हीरे की अवैध तस्करी जारी रही। हैरानी की बात ये है कि वर्ल्ड क्लास बेशकीमती हीरे का ये गढ़ सरकारी उपेक्षा का बुरी तरह से शिकार है।
जंगलों में तस्करों का कब्जा।
नदी-नालों से होकर कच्ची सड़क गुजरती है, जिसके जरिए यहां तक आया जा सकता है। सुरक्षा की बिल्कुल व्यवस्था नहीं है। तार टूटे हुए हैं और सुरक्षाकर्मियों के बैरक उजड़े हुए। यही नहीं खदान के लगभग 10 किमी इलाके में ताजा खनन के गहरे गड्ढे और नदी किनारे पानी में धोकर मिट्टी से हीरा अलग करने की तस्वीरें साफ बताती है कि यहां कितने बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन हो रहा है। ग्रामीणों की मानें तो पुलिस की आवाजाही बरसात में नदी उफान पर होने के कारण जब बंद हो जाती है, तो यहां तस्करों का जमावड़ा लग जाता है।
सैकड़ों गड्ढे खुद कह रहे अवैध खनन की कहानी।
2016 में जब पायलीखंड के नाम पर जुगाड़ में थाना खोला गया, तो तस्करी पर अंकुश जरूर लगा, लेकिन ये पूरी तरह से बंद नहीं हुई। आंकड़े बताते हैं कि 5 साल में पुलिस ने 12 मामले में 19 तस्करों को दबोचा, उनसे 2210 नग हीरे भी जब्त किए गए, जिनकी कीमत 2 करोड़ रुपए से ज्यादा बताई गई है। खदान से अवैध उत्खन्न और हीरा तस्करों पर लगाम लगाने के लिए पुलिस लगातार कोशिश कर रही है।
कुएं जैसे 8-10 फीट गहरे गड्ढे।
पायलीखंड खदान 4600 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान खदान से हीरा निकालने की अनुमति वी विजय कुमार के डिबियर्स कम्पनी को दी गई थी। कंपनी ने यहां पंडरी पानी गांव में अपनी लैब और माइनिंग की बड़ी मशीन भी स्थापित की। कंपनी काम शुरू करती, इससे पहले ही छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से अलग राज्य बन गया। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने डिबियर्स कंपनी के साथ हुए अनुबंध में गड़बड़ी मिलने पर इसे निरस्त कर दिया। कंपनी सरकार के फैसले के खिलाफ न्यायालय में चली गई। 2008 से मामला हाईकोर्ट में लंबित है। भूपेश सरकार ने अब इस मामले में फिर पहल की है।