मुस्लिम वोटों पर कब्जे की रार, पर नहीं चाहते उम्मीदवार

नई दिल्ली. गुजरात को भले ही हिंदुत्व पॉलिटिक्स की प्रयोगशाला कहा जाता है, लेकिन मुस्लिम वोटर्स की अहमियत कम नहीं है। राज्य में 117 सीटों पर 10 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखने वाले मुस्लिम मतदाता किसी भी पार्टी की तकदीर तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यह वजह है कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम से लेकर भाजपा तक सभी अधिक से अधिक मुस्लिम वोट की चाह रखते हैं। हालांकि, उम्मीदवार देने के मामले अधिकतर बड़े दल कतराते दिख रहे हैं।   

मौजूदा विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’ ने कुल मिलाकर करीब 500 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। भाजपा लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार तय कर दिया है और 2017 की तरह भगवा दल ने एक भी सीट पर अल्पसंख्यक उम्मीदवार नहीं उतारा है। अब तक सर्वाधिक मुस्लिम वोट हासिल करती रही कांग्रस ने 140 प्रत्याशियों की घोषणा की है और अब तक महज 6 सीटों पर मुसलमानों को टिकट दिया है। 

पहली बार गुजरात की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही ‘आप’ भी यहां हिंदुत्व के मुद्दे पर फोकस करती नजर आ रही है। नोट पर लक्ष्मी गणेश की फोटो की मांग से लेकर यूनिफॉर्मल सिविल कोड का समर्थन कर चुके अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने अब तक 157 उम्मीदवारों की घोषणा की है। दिल्ली में मुस्लिम वोटर्स की फेवरिट रही ‘आप’ ने गुजरात में महज 2 सीटों पर अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को मौका दिया है। यानी इन तीन दलों ने अब तक महज 8 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। यह हाल तब है जब राज्य की जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 9 फीसदी है। 

ऐसा नहीं है कि पहली बार गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवारों को कम तरजीह दी जा रही है। कांग्रेस ने भी पिछले कुछ चुनावों में 10 से कम मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। 27 साल पहले 1995 में कांग्रेस ने 10 से अधिक अल्पसंख्यक उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। पार्टी ने 1980 में सर्वाधिक 17 मुसलमानों को टिकट दिया था। पार्टी को इसका फायदा भी हुआ था और 17 में से 12 कैंडिडेट ने जीत हासिल की थी। हालांकि, 1985 में पार्टी ने 11 मुसलमानों को ही टिकट दिया, जिनमें से 8 ने जीत दर्ज की थी। 

1990 के विधानसभा चुनाव में राम जन्मभूमि आंदोलन ने गुजरात में हिंदुत्व की राजनीति को हवा दी। जनता दल ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा तो कांग्रेस ने 11 सीटों पर उन्हें मौका दिया। हालांकि, इनममें से महज 2 ही सीट पर जीत पाए। 2002 सांप्रदायिक दंगों के बाद पार्टी ने महज 5 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे और तब से अभी तक पार्टी ने कभी 6 से अधिक मुसलमान उम्मीदवारों को मौका नहीं दिया है।  

किस बात का डर?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदनशील रहे गुजरात में ध्रुवीकरण से बचने के लिए कांग्रेस ने पिछले कई चुनावों में अधिक मुस्लिम उम्मीदवार देने से कन्नी काटी है। माना जा रहा है कि इसी आशंका में ‘आप’ ने भी अब तक महज 2 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि, इस बार एआईएमआईएम भी चुनावी दंगल में ताल ठोक रही है और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी करीब तीन दर्जन मुस्लिम बहुल सीटों पर दांव खेलने की तैयारी में है।

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