राजीवलोचन मन्दिर, कुम्भ मेला, त्रिवेणी संगम राजिम – छत्तीसगढ़ पर्यटन स्थल
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद ज़िले में स्थित एक नगरपंचायत है। राजिम महानदी के तट पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” भी कहते हैं।
प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वो और प्राचीन सभ्यताओ के लिए प्रसिद्द है राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्द है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है।
नामकरण
एक स्थानीय दंतकथा के अनुसार इस स्थान का नाम ‘राजिव’ या ‘राजिम’ नामक एक तैलिक स्त्री के नाम से हुआ था। मन्दिर के भीतर ‘सतीचैरा’ है, जिसका संबंध इसी स्त्री से हो सकता है।
विवरण
यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है। संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा।
राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग मानते हैं, यहाँ पैरी नदी, सोंढुर नदी और महानदी का संगम है। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा।
त्रिवेदी संगम
राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग मानते हैं, यहाँ पैरी नदी, सोंढुर नदी और महानदी का संगम है। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है।
कहा जाता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है।
राजीवलोचन मन्दिर
राजिम के प्रसिद्ध राजीवलोचन का मन्दिर चतुर्थाकार में बनाया गया था। उत्तर में तथा दक्षिण में प्रवेश द्वार बने हुए हैं। महामंडप के बीच में गरुड़ हाथ जोड़े खड़े हैं। गर्भगृह के द्वार पर बांये-दांये तथा ऊपर चित्रण है, जिस पर सर्पाकार मानव आकृति अंकित है एवं मिथुन की मूर्तियां हैं। पश्चात् गर्भगृह में राजिवलोचन अर्थात् विष्णु का विग्रह सिंहासन पर स्थित है। यह प्रतिमा काले पत्थर की बनी विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है। जिसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पदम है जिसकी लोचन के नाम से पूजा होती है। मंदिर के दोनों दिशाओं में परिक्रमा पथ और भण्डार गृह बना हुआ है।
महामण्डप बारह प्रस्तर खम्भों के सहारे बनाया गया है। उत्तर दिशा में जो द्वार है वहां से बाहर निकलने से साक्षी गोपाल को देख सकते हैं। पश्चात् चारों ओर नृसिंह अवतार, बद्री अवतार, वामनावतार, वराह अवतार के मन्दिर हैं। दूसरे परिसर में राजराजेश्वर, दान-दानेश्वर और राजिम भक्तिन तेलिन के मंदिर और सती माता का मंदिर है। इसके बाद नदियों की ओर जाने का रास्ता है। यहां जो द्वार है वह पश्चिम दिशा का मुख्य एवं प्राचीन द्वार है। जिसके ऊपर राजिम का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र पदमावती पुरि लिखा है। नदी के किनारे भूतेश्वर व पंचेश्वर नाथ महादेव के मंदिर हैं और त्रिवेणी के बीच में कुलेश्वर नाथ महादेव का शिवलिंग स्थित है।
राजीवलोचन मंदिर यहां सभी मंदिरों से प्राचीन है। नल वंशी विलासतुंग के राजीवलोचन मंदिर अभिलेख के आधार पर इस मंदिर को 8 वीं शताब्दी का कहा गया है। इस अभिलेख में महाराजा विलासतुंग द्वारा विष्णु के मंदिर के निर्माण करने का वर्णन है। राजीवलोचन की विग्रह मूर्ति के एक कोने में गजराज को अपनी सूंड में कमल नाल को पकड़े उत्कीर्ण दिखाया गया है। विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति में गजराज के द्वारा कमल की भेंट और कहीं नहीं मिलती।
राजीवलोचन मन्दिर का निर्माण
राजिम का प्रमुख मन्दिर ‘राजीवलोचन’ है। इस मन्दिर में बारह स्तम्भ हैं। स्तम्भों पर अष्ट भुजा वाली दुर्गा, गंगा-यमुना और विष्णु के विभिन्न अवतारों, जैसे- राम, वराह और नरसिंह आदि के चित्र बने हुए हैं। यहाँ से प्राप्त दो अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर के निर्माता राजा जगतपाल थे। इनमें से एक अभिलेख राजा वसंतराज से सम्बंधित है, किंतु लक्ष्मणदेवालय के एक दूसरे अभिलेख से विदित होता है कि इस मन्दिर को मगध नरेश सूर्यवर्मा (8वीं शती ई.) की पुत्री तथा शिवगुप्त की माता ‘वासटा’ ने बनवाया था। राजीवलोचन मन्दिर के पास ‘बोधि वृक्ष’ के नीचे तपस्या करते बुद्ध की प्रतिमा भी है।
मन्दिर के स्तंभ पर चालुक्य नरेशों के समय में निर्मित नरवराह की चतुर्भुज मूर्ति उल्लेखनीय है। वराह के वामहस्त पर भू-देवी अवस्थित हैं। शायद यह मध्य प्रदेश से प्राप्त प्राचीनतम मूर्ति है। राजिम से पांडुवंशीय कोसल नरेश तीवरदेव का ताम्रदानपट्ट प्राप्त हुआ था, जिसमें तीरदेव द्वारा ‘पैठामभुक्ति’ में स्थित पिंपरिपद्रक नामक ग्राम के निवासी किसी ब्राह्मण को दिए गए दान का वर्णन है। यह दानपट्ट तीवरदेव के 7वें वर्ष श्रीपुर (सिरपुर) से प्रचलित किया गया था। फ़्लीट के अनुसार तीवरदेव का समय 8वीं शती ई. के पश्चात् माना जाना चाहिए।
कुलेश्वर महादेव मन्दिर – राजिम में ‘कुलेश्वर महादेव मन्दिर’ भी प्रमुख है, जो की नौवीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। यह मन्दिर महानदी के बीच में द्वीप पर बना हुआ है। इसका निर्माण बड़ी सादगी से किया गया है। मन्दिर के पास ‘सोमा’, ‘नाला’ और कलचुरी वंश के स्तम्भ भी पाए गए हैं।
कुलेश्वर महादेव मन्दिर ( राजिम )
राजिम कुंभ ( मेला )
राजिम कुम्भ को प्रति वर्ष होने वाले कुम्भ के नाम से भी जाना जाता है, किंतु अब वर्ष 2019 से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की शासन आते ही, सरकार ने पुनः राजिम पुन्नी मेला महोत्सव मनाने का निर्णय लिया है। कुछ वर्ष पहले यह एक मेले का स्वरुप था यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है| राजिम तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यह मुख्य रूप से तीन नदिया बहती है, जिनके नाम क्रमश महानदी, पैरी नदी तथा सोढुर नदी है, राजिम तीन नदियों का संगम स्थल है, संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है, वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, 2004 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम पुन्नी मेला महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा।
यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग, एवम स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से होता है,मेला की शुरुआत कल्पवाश से होती है पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते है पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है, 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से कुम्भ का आगाज होता है, राजिम कुम्भ में विभिन्न जगहों से हजारो साधू संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो के संख्या में नागा साधू, संत आदि आते है, तथा शाही स्नान तथा संत समागम में भाग लेते है, प्रतिवर्ष होने वाले इस महाकुम्भ में विभिन्न राज्यों से लाखो की संख्या में लोग आते है,और भगवान श्री राजीव लोचन, तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते है, और अपना जीवन धन्य मानते है, लोगो में मान्यता है की भनवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम कुम्भ का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है।