छलनी होकर भी जिंदा था जज्बा, दुश्मन को नेस्तनाबूद कर खुद को दिया बर्थडे गिफ्ट, फिर… सबको रुला गया यह शूरवीर
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14 फरवरी 2019 को पुलवामा के अवंतीपोरा के करीब हुए आतंकी हमले से पूरा देश स्तब्ध था. यह आतंकी हमला लेथापोरा इलाके से गुजर रहे सीआरपीएफ के कॉन्वॉय पर हुआ था. जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों द्वारा अंजाम दिए गए इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जाबांजों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी. इस हमले के बाद, पुलवामा में तैनात भारतीय सेना की 55 आरआर यूनिट के कंधों पर यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी कि वह इस कायराना वारदात को अंजाम देने वाले आतंकियों को उनकी सही जगह पर पहुंचाए.
उन दिनों, मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल भी पुलवामा में राष्ट्रीय राइफल्स की 55वीं यूनिट में तैनात थे. पूरी यूनिट पुलवामा अटैक को अंजाम देने वाले आतंकियों की तलाश में जुटी हुई थी. तीन दिन की लंबी कवायद के बाद 17 फरवरी 2019 की देर शाम एक बड़ी खबर आरआर के हाथ लगी. खबर मिली कि पुलवामा अटैक को अंजाम देने वाले आतंकियों ने पिंगलान गांव के एक घर में पनाह ले रखी है. इन आतंकियों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए ब्रिगेडियर हरबीर सिंह के नेतृत्व में एक असॉल्ट टीम का गठन किया गया, जिसमें मेजर विभूति भी शामिल थे.
विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अंजाम दिया गया ऑपरेशन
खबर मिलने के साथ ही आरआर की यह असॉल्ट टीम ऑपरेशन की तैयारियों में जुट गई. इस ऑपरेशन में सीआरपीएफ के अलावा जम्मू और कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप को भी शामिल किया गया. आरआर, सीआरपीएफ और जेएनके पुलिस की टीमें ऑपरेशन के लिए तैयार थी, लेकिन बढ़ती रात के साथ मुश्किलें भी बढ़ती जा रही थीं. पूरा इलाका कोहरे की चादर से ढ़क चुका था, जिसकी वजह से विजबिलटी ना के बराबर रह गई थी. इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद ऑपरेशन को रात में ही अंजाम देने का फैसला किया गया.
रात करीब 1 बजे शुरू हुआ आतंकियों के खिलाफ आपरेशन
रात करीब एक बजे मेजर विभूति अपनी क्लिक रिस्पांस टीम (क्यूआरटी) के साथ उस घर तक पहुंचने में कामयाब हो गए थे, जहां आतंकियों ने पनाह ले रखी थी. घर की घेराबंदी पूरी करने के बाद ऑपरेशन को आगे बढ़ाया गया. वहीं, अब तक आतंकियों को भी सेना के पहुंचने की खबर लग चुकी थी. खुद की जान बचाने के लिए आतंकी मवेशियों के बाड़े में जाकर छिप गए. वहीं, मेजर विभूति भी अपने साथियों के साथ आतंकियों के पैरों के निशान का पीछा करते हुए मवेशियों के बाड़े तक पहुंच गए. आतंकियों के लिए अब भागने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे.
मेजर विभूति को देख कांप गया पुलवामा अटैक का आतंकी
लिहाजा, उन्होंने मेजर विभूति और उनकी टीम पर गोलियों की बरसात करना शुरू कर दी. चूंकि मेजर विभूति टीम का नेतृत्व कर रहे थे, लिहाजा आतंकियों की एके-56 से निकली गोलियां सीधे उनके शरीर में आकर धंस गईं. पूरा शरीर गोलियों से छलनी होने के बावजूद मेजर विभूति की हिम्मत नहीं टूटी थी. गंभीर रूप से जख्मी होने के बावजूद वह आगे बढ़े और एक आतंकी को मार गिराने में सफल रहे. वहीं, मेजर विभूति के इस रूप को देखकर दूसरा आतंकी डर से धर-धर कांपने लगा. खुद की जान बचाने के लिए उसने ग्रेनेड से हमला कर दिया.
मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित हुए मेजर विभूति शंकर
ग्रेनेड सीधे आकर मेजर विभूति के ऊपर फटा. इस ग्रेनेड हमले में मेजर विभूति, हवलदार शियो राम, सिपाही अजय कुमार और सिपाही हरि सिंह गंभीर रूप से जख्मी हो गए. चारों को बेहद गंभीर हालत में सेना अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली और देश के लिए प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया. मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल को उनके असाधारण साहस, कर्तव्य के प्रति समर्पण और सर्वोच्च बलिदान के लिए वीरता पुरस्कार शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था.