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Water Crisis In Raipur: अभी नहीं चेते तो दो दशक के बाद बेंगलुरु शहर की तरह हो जाएंगे रायपुर के हालात

 रायपुर। Water Crisis in Raipur: गर्मी की शुरुआत हो या ठंड का मौसम, राजधानी में पानी के टैंकर दौड़ते रहते हैं। शहर में पेयजल की स्थिति लगातार चिंतनीय होती जा रही है। भूजल विशेषज्ञों ने भी कहना शुरू कर दिया है अगर अभी नहीं चेते तो आने वाले दो दशक के बाद स्थिति बेंगलुरु शहर की तरह हो जाएगी। राजधानीवासियों का गला कैसे तर होगा? वहां 2,000 फीट से अधिक गहराई पर पानी मिलना मुश्किल हो गया है।

इधर रायपुर शहर के कई रिहायशी इलाकों में पांच से सात साल पहले 400 से 500 फीट गहराई तक बोर करवाने में पानी मिल जाता था। आज की स्थिति 1,000 फीट तक खोदाई करवाने के बाद भी पानी मिलने की गारंटी भी नहीं है। नईदुनिया की पड़ताल में सामने आया है कि सड्डू, मोवा, उरला, कचना, दलदलसिवनी, देवपुरी, सेजबहार, अमलीडीह आदि इलाकों में पिछले पांच सालों में भूजल स्तर 50 प्रतिशत तक नीचे चला गया है।

विशेषज्ञों के अनुसार 40 से अधिक इलाकों में भूजल स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। इसका कारण तेजी से आकार ले रहीं कालोनियां और सीमेंट, डामर रोड भी हैं। तालाबों की संख्या कम हो गई है। नई कालोनियों में पेयजल के लिए बोर ही सहारा बन पा रहा है।naidunia_image

नई कालोनियों में निगम द्वारा पेयजल पहुंचाने के लिए कई प्रोसेस से गुजरना पड़ता है। ऐसे उन क्षेत्रों में पेयजल पहुंचाने के लिए निगम को पांच साल से अधिक समय लग जाता है, जबकि नई कालोनियों में पानी रिचार्ज करने का कोई सिस्टम नहीं है। तालाब भूजल रिचार्ज के बड़े स्रोत हैं।

जानिए क्‍या है एक्‍सपर्ट व्‍यू

 
 

छत्तीसगढ़ जल प्रबंधन एवं अनुसंधान समिति के अध्यक्ष और जल संरक्षण विशेषज्ञ डा. विपिन दुबे ने कहा, हर क्षेत्र में बोरवेल की बढ़ती गहराई और गिरता भूजल स्तर गंभीर चिंता का विषय है। एक समय था, जब रायपुर शहर का क्षेत्र कालोनी व मोहल्ले में भूजल स्तर का बहुत ही अच्छा था। प्राय: सभी क्षेत्र में 150,200 या 300 फीट बोरवेल की गहराई में पानी मिल जाता था, लेकिन आज कई क्षेत्रों में बोरवेल की गहराई 900 से 1000 फिट से अधिक हो गई है। इसका मुख्य कारण है अत्यधिक बोरवेल और फिर भूजल का दोहन व उसके अनुरूप नीचे जमीन की रिचार्ज नहीं होना। दूसरा मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता शहरीकरण या कहे कंक्रीटीकरण, उचित जल प्रबंधन का नाहोना, बढ़ता औद्योगिकीकरण। शहरों में मिट्टी वाली जमीन का बहुत ही कम होना।

 

शहर के ये इलाके हैं थोड़े सुरक्षित जोन में

शहर के पुराने रहवासी इलाके भूजल स्तर के मामले में थोड़ा सुरक्षित जोन में हैं। वर्तमान में वहां 200 से 500 फीट की गहराई में बोर से पानी मिल जाता है। इनमें अश्वनी नगर, लाखे नगर, डंगनिया, रायपुरा, सुंदर नगर, गीता नगर, चंगोराभाठा, चौबे कालोनी, सत्यम विहार, लक्ष्मी नगर, प्रोफेसर कालोनी, पुरानी बस्ती, तात्यापारा, कंकाली पारा, टिकरापारा, सदर बाजार, छोटापारा, बुढ़ापारा आदि शामिल हैं।naidunia_image

 

जानें अपने शहर का भूजल स्तर

सिलतरा-उरला क्षेत्र: साल 2010 में 500 फीट गहराई पर पानी मिल जाता था। 2015 में 800 फीट की गहराई पर पहुंच गया। 2022-24 में 1200 से 1500 फीट गहराई में पानी मुश्किल से मिल पा रहा है।

शंकर नगर क्षेत्र: साल 2010 में 300 फीट पर गहराई में पानी मिल जाता था। 2015 में लगभग 400 फीट गहराई में चला गया। आज की स्थिति में 500 से 800 फीट तक बोर की गहराई करनी पड़ रही है।

 

सिविल लाइन क्षेत्र: शहर के पाश इलाके में साल 2010 में 500 फीट नीचे पानी मिलता था। साल 2015 में 600 से 700 और वर्तमान में 800 फीट गहराई में पानी जा चुका है।

देवपुरी-अमलीडीह क्षेत्र: 2010 में 300 फीट पर पानी मिल जाता था। 2015 में 500 और 2024 में 700 से 800 फीट गहराई पर चला गया है।

कचना क्षेत्र: साल 2010 में 400 फीट गहराई में पानी मिल जाता था। 2015 में यह 500 से 600 फीट गहराई में वर्तमान में 800 से 900 फीट गहराई में पानी मिल रहा है।

 

सड्डू क्षेत्र: साल 2010 में 400 फीट गहराई पर पानी मिलता था। 2015 में पानी का स्तर 800 फीट नीचे चला गया। 2024 में 900 फीट गहराई में चला गया है।

भनपुरी क्षेत्र: साल 2010 में 400 फीट गहराई पर पानी मिल जाता था। 2015 में 600 और 2024 में 800 से 1000 फीट गहराई में पानी चला गया है।

राजेंद्र नगर क्षेत्र: साल 2010 में करीब 400 फीट गहराई में पानी था। 2015 तक 500 से 600 फिट पहुंच गया। 2024 में 600 से 800 फीट नीचे जलस्तर पहुंच गया है।

 

इन इलाकों को टैंकर का सहारा

सड्डू, मोवा, दलदलसिवनी, उरला, सिविल लाइन, डूंडा समेत कई इलाकों में टैंकर से पानी मंगवाना पड़ रहा है। अभी इन इलाकों के बोर सूख गए हैं। यहां 700 फीट से नीचे ही पानी मिल रहा है।

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