’मशरूम से मुनाफा’ : ओयस्टर मशरूम से हो रही हितग्राहियों को अतिरिक्त आमदनी
दंतेवाड़ा, यूं तो मशरूम के स्वास्थ्यवर्धक गुणों से अब सभी परिचित है। और तो और उसकी बढ़ती मांग तथा राज्य के कई जिलों में खेती के रूप में इसका उत्पादन कारोबार का स्वरूप अख्तियार कर चुका है। बीते कुछ वर्षों में मशरूम उत्पादन एवं उसकी खेती रोजगार के नये विकल्प रूप में उभरी है। बेरोजगार युवाओं, घरेलू महिलाओं के साथ ही कृषक भी अपनी परम्परागत खेती के इतर अनुषंगिक फसल के रूप में इसकी खेती आसानी से कर सकते है। बहुत कम लागत, कम प्रयास के साथ-साथ अच्छा मुनाफा मशरूम खेती को एक आदर्श विकल्प बनाते है। यह एक ऐसी फसल है जो पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। इसके अलावा ओयस्टर मशरूम की एक साल में 5 फसल ली जा सकती है।
दक्षिण बस्तर में है ओयस्टर मशरूम के अनुरूप आबो-हवा- स्तर अंचल में मशरूम यूं तो सदैव ही स्थानीय जनजातियों के लिए लोकप्रिय आहार रहा है। इसे स्थानीय बोली में ’छाती’ ’फुटु’ के नाम से जाना जाता है। यहां मशरूप के अलग-अलग जातियां जुलाई से लेकर सितम्बर माह तक मिलती है। इसका उपयोग सब्जी एवं स्थानीय बाजारों में विक्रय के लिए होता है चूंकि ओयस्टर मशरूम के लिए अनुकूल तापक्रम 20-30 सेंटीग्रेड एवं आर्द्रता 70-90 प्रतिशत आवश्यक होती है। अतः उत्पादन की दृष्टि से दक्षिण बस्तर की जलवायु के अनुकूल मानी गई है। इस क्रम में जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा स्थानीय कृषकों स्व-सहायता समूहों की महिलाओं-युवाओं के मध्य ओयस्टर मशरूम की खेती लोकप्रिय बनाने सघन प्रयास किये जा रहे है। केन्द्र द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार इच्छुक कृषकों, घरेलू महिलाओं एवं युवाओं को इसकी खेती से संबंधित प्रशिक्षण सत्र मार्गदर्शन तथा बीज उत्पादन की प्रारंभिक विधियों के अलावा मार्केटिंग बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी जा रही है और स्थानीय ग्रामीणों में इसके खेती के प्रति अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है और कई स्थानीय कृषक इसकी खेती करके अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे है और जहां तक इसके विक्रय प्रबंधन का प्रश्न है तो खुले बाजार में 1 किलो बैग ओयस्टर मशरूम 200 रुपए किलोग्राम बिकता है अगर आर्थिक उत्पादन के लिहाज से देखा जाए तो प्रति 100 बैग मशरूम 18 हजार 200 रुपए लागत पर वास्तविक लाभ 36 हजार 800 लगभग प्राप्त होता है। उल्लेखनीय है कि केन्द्र द्वारा शुरुआत में ओयस्टर मशरूम से संबंधित मात्र 3 यूनिट प्रारंभ किये गये थे जो वर्तमान में 60 यूनिट तक पहुंच गया है और केन्द्र अंतर्गत आर्य परियोजना के तहत 30 गांवों में मशरूम उत्पादन किया जा रहा है जिसमें 900 हितग्राही जुड़े हुए है। उल्लेखनीय है कि ताजे मशरूम के सब्जी के अलावा इससे संरक्षित करके आचार, पापड़, बड़ी, बिस्कुट, सॉस, सूप भी बनाया जा सकता है जो इन उत्पादन केन्द्रों में भी बखूबी किया जा रहा है।