डेयरी पालन बना अतिरिक्त आय का जरिया, प्रतिमाह कमाई 50 हजार रूपए

सुकमा। छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी सुराजी ग्राम योजना नरवा, गरुवा, घुरुवा एवं बाड़ी योजना अन्तर्गत महिला स्व-सहायता समूह गौठानों मे ही रोजगार मूलक गतिविधियों से जुड़कर आत्म निर्भर और आर्थिक रुप से सशक्त बन रहीं हैं। स्व-सहायता समूह से जुड़कर महिलाएं न सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही है बल्कि, समाज के लिए महिला सशक्तीकरण का जीवंत उदाहरण भी पेश कर रहीं हैं। गौठानों में साग सब्जी उत्पादन, वर्मी खाद निर्माण, मुर्गी पालन जैसी रोजगार मूलक गतिविधियों के साथ अब महिला समूह डेयरी पालन में भी जुड़ रही हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य डेयरी उद्यमिता विकास योजना के तहत पशुधन विकास विभाग सुकमा द्वारा जिले के 9 हितग्राहियों को दो नग दुधारु गाय प्रदाय किया गया है। जिसमें ग्राम गौठान कांजीपानी की रिद्धी महिला स्व सहायता समूह, मुंडी माता महिला स्व-सहायता समूह, धन बाई महिला स्व-सहायता समूह, चिपुरपाल की इंदिरा महिला स्व सहायता समूह और व्यक्तिगत तौर पर छिन्दगढ़ के कमली मरकाम, गांगलू कश्यप, चांद बाशा, दुब्बाटोटा के चंदूलाल ठाकुर ने डेयरीपालन को अतिरिक्त आय के साधन के तौर पर अपनाया है। दूग्ध वितरण करके अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं।

प्रतिमाह लगभग 50 हजार की हो रही आय

उपसंचालक, पशु चिकित्सा विभाग डॉ.एस जहीरुद्दीन ने बताया कि साहीवाल नस्ल की गाय प्रतिदिन लगभग 12 लीटर दूध देती हैं, इस प्रकार हितग्राही लगभग 50 हजार प्रति माह की आय प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि समूह की महिलाओं को पशुपालन तथा डेयरी पालन के संबंध में सात दिवसीय प्रशिक्षण प्रदाय किया गया है ताकि महिलाएं बेहतर तरीके से डेयरी पालन कर सकें। डॉक्टरों की क्रय समिति के माध्यम से दुधारू गायों का चयन किया गया, चयनित पशुओं का गठित डॉक्टरों की टीम द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण कर हितग्राहियों को प्रदाय कर योजना का लाभ दिया गया है।

डेयरी पालन से हो रही आर्थिक स्थिति मजबूत

उन्होंने बताया कि उनके द्वारा नियमित रूप से डेयरी फार्म का अवलोकन कर महिला स्व-सहायता समूहों के सदस्यों से पशुओं के स्वास्थ्य एवं चारे दाने भंडारण की व्यवस्था के बारे में जानकारी लेकर आवश्यक दिशा निर्देश दिया जा रहा है। दुग्ध उत्पादन के संबंध में चर्चा के दौरान हितग्राहियों ने बताया कि डेयरी फार्म के प्रति गाय से प्रतिदिन 12 लीटर दुग्ध उत्पादन हो रहा है जिसे स्थानीय ग्राम मे ही 60 रुपये की दर से विक्रय कर लाभ ले रहे है। डेयरी पशु पालन से आत्मनिर्भर होकर अपनी आर्थिक परेशानियों को दूर करने में यह व्यवसाय कारगर साबित हो रही है। हितग्राहियों ने भविष्य में दुग्ध विक्रय से प्राप्त राशि से और दुधारू पशु क्रय कर निरंतर डेयरी पालन करने हेतु सहमति जताई।

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