अपराध को अब वैश्विक नेटवर्क के सहारे दिया जा रहा अंजाम : OPINION
जाने ऑनलाइन स्वीकार्य व्यवहार क्या है और क्या नहीं है
श्री आर के शुक्ला,
पूर्व निदेशक सीबीआई
निरंतर वैश्विक तकनीकी-मंथन से अमृत और विष दोनों निकले हैं। हमने खुशी के साथ अमृत का स्वागत
किया है, लेकिन हाइड्रा जैसे विभिन्न सिर वाला विष, गंभीर और तत्काल चिंता का विषय है। अपराध को,
आम तौर पर, अब वैश्विक नेटवर्क के सहारे अंजाम दिया जा रहा है- नशीली दवाओं की तस्करी, मानव
तस्करी, आतंकवाद, बाल शोषण आदि की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है।
लेकिन, सबसे भयावह, घृणास्पद, क्रूर और घिनौना अपराध है- ऑनलाइन बाल यौन शोषण। दुःख की बात है कि यह तेजी से बढ़ रहा है– गुप्त रूप में तथा कपटपूर्ण और गुमनाम तरीके से।
एक अपमानजनक सच्चाई यह है कि तस्वीरें और वीडियो अनगिनत हैं– जो अक्सर क्षति न पहुंचानेवाले
कवर के तहत होते हैं– तथा ये इंटरनेट से जुड़े सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर सोशल नेटवर्किंग और संबद्ध
वेबसाइटों के जरिये उपलब्ध हैं। कूट भाषा नेटवर्क, इन विकृत अपराधियों का व्यावहारिक रूप से पता
लगाना मुश्किल बनाते हैं। इस अत्यधिक हानिकारक खतरे को दर्शाने के लिए ‘चाइल्ड पोर्न’, ‘किड पोर्न’ या
‘पोर्नोग्राफी’ आदि शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।
प्रत्येक तस्वीर या वीडियो के पीछे, एक वास्तविक
बाल पीड़ित है, वास्तविक शोषण है और एक अपराध है। इस तरह की सामग्री का निरंतर निर्माण व
वितरण नए और अधिक खुले तस्वीरों की मांग को बढ़ावा देता है, जिससे नए बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का
चक्र चलता रहता है।
ऑनलाइन बाल यौन शोषण के खिलाफ हमारे बच्चों को बचाने की लड़ाई बहुआयामी है, जिनमें उल्लंघन
का अपराधीकरण, रोकथाम, सक्रिय पहचान, आपराधिक जांच, प्रसार पर अंकुश लगाना, पीड़ित की
पहचान/पुनर्स्थापन और अपराधी पर मुकदमा चलाना शामिल हैं।
ऑनलाइन स्वीकार्य व्यवहार क्या है और क्या नहीं है- इंटरनेट तक पहुंच रखने वाले किसी भी बच्चे को,
इसके बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। हमें अपने बच्चों को कई उन विकृत व्यवहारों और खतरनाक
स्थितियों के बारे में शिक्षित करना होगा, जो उनके सामने ऑनलाइन आ सकते हैं।
सोशल मीडिया
प्लेटफॉर्म, ऐसी सामग्री का सक्रिय रूप से पता लगाने और उसे प्रतिबंधित करने के लिए नियम व तौर-
तरीके विकसित कर रहे हैं। ये निश्चित रूप से समाधान का हिस्सा हैं, लेकिन अपराध की जांच और
अभियोजन का महत्व हमेशा की तरह महत्वपूर्ण है।
भारत, दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में एक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत
में अठारह वर्ष से कम उम्र के 472 मिलियन बच्चे हैं, जिनमें से 225 मिलियन लड़कियां हैं। भारत में
डिजिटल पहुंच भी तेजी से बढ़ रही है। इससे अपराध होने की संभावना बढ़ जाती है।
भारत में, आईटी अधिनियम और पॉक्सो के माध्यम से ऑनलाइन बाल यौन शोषण को अपराध की श्रेणी में
रखा गया है। पॉक्सो बच्चों को सर्वाधिक महत्व देता है
और इसके लिए बच्चों के सम्बन्ध में अनुकूल रिपोर्टिंग,
साक्ष्य को रिकॉर्ड करना, जांच करना और विशेष न्यायालयों के माध्यम से अपराधों के त्वरित परीक्षण के
लिए एक मजबूत कानूनी फ्रेमवर्क प्रदान करता है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर)
पोस्को कार्यान्वयन की स्थिति की निगरानी करता है।