छत्तीसगढ़ के धार्मिक एवं पर्यटन स्थल
छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कौशल था | महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में उत्तर कोशल व दक्षिण कोसल आ उल्लेख किया गया है| राजा दशरत की भार्या कौशल्या इसी दक्षिण कोसल की राजकुमारी थी |
रायपुर छत्तीसगढ़ की नव गठित राजधानी है| रायपुर ऐतिहासिक महत्व का स्थान है | यहां पर पांचवी सदी में पांडुवंश ने अपनी प्रभुत्व स्थापित किया था | यहाँ पर अनेक धार्मिक एवं पौराणिक स्थल है जिसमे महत्वपूर्ण दुधाधारी मठ ,शीतला माता मंदिर ,महामाया मंदिर ,बुढ़ेश्वर महादेव मंदिर तालाब किनारे भगवान राम का प्राचीन राम मंदिर स्थित है साथ ही बंजारी धाम ,महादेव घाट आदि प्रमुख है |
सिरपुर – लक्ष्मण मन्दिर एवम पुरावशेष
पुरातात्विक धार्मिक ऐतिहासिक स्थल है| सिरपुर कें पाण्डुवष की राजधानी थी प्राचीन नाम चित्रागदपुर था|
महानदी के तट पर स्थित यह छत्तीसगढ़ की प्राचीनतम नगरी व राजधानी थी लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाशिवगुप्त बालार्जुन के काल में उनकी माता वासाटा देवी द्वारा 7 वी सदी मे लाल ईटो द्वारा प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया औरयह मंदिर नागर शैली प्रयुक्त हुई है जिसमे देवी देवता पशु का कलात्मक चित्रण हुआ है| इसके गर्भगृह में भगवान विष्णु कि प्रतिमा है।
बुद्ध पुर्णिमा को सिरपुर महोत्सव और माघ पुर्णिमा मे मेला लगता है| अवदान शतक के अनुसार महात्मा बुद्ध यहा आये थे 639 ई चीनी यात्री हवेनसांग ने सिरपुर की यात्रा की थी।
आनंदप्रभु कुटीर विहार- सिरपुर
650 ईसवी महाशिवगुप्त बालार्जुन के काल में बौद्ध भिक्षु आंनन्द प्रभु द्वारा निर्मित
गंधेश्वर महादेव मंदिर
Gandeshwar Mahadev Sirpur |
खल्लारी – नारायण मंदिर व खल्लारी माता मंदिर
खल्लारी का प्राचीन नाम खल्लवाटिका थी | रायपुर के कलचुरी शासन ब्रमदेव के कार्य काल में देवपाल नामक एक मोची ने अपनी जीवन भर की कमाई से नायब नारायण मंदिर का निर्माण करवाया था |
पहाड़ी के निचे बड़ी खल्लारी माता व पहाड़ के ऊपर छोटी खल्लारी माता विराजमान है | यहाँ पर भीम के पद चिन्न व भीम चूल डोंगा पत्थर व किद्वंती के अनुसार महाभारत कालीन लक्षागृह की घटना यही पर घटित हुई थी
तुरतुरिया महर्षि वाल्मिकी आश्रम- व लव कुश जन्म स्थली
माता सीता का दुसरी वनवास स्थल व लव कुश की जन्म स्थली ,माना गया है | यहाँ पर निरन्तर चट्टानों की दरार से तुरतुर की आवाज के साथ जल की धारा निकलती रहती है जिस कारन इस स्थान को तुरतुरिया कहा जाता है | यहाँ पर अग्रेजो ने इस स्थान की खुदाई करवाई थी जिसमे बौद्ध कालिन भारी मात्रा में मूर्ति प्राप्त हुई थी | यहाँ पर माता गढ़ नामक पवित्र स्थान है |साथ ही विशाल पर्वत के ऊपर सेर गुफा है | यहाँ नवरात्रि में भक्तो द्वारा मनोकामन ज्योति जलाये जाती है | यहाँ पर प्रति वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है |
राजीव लोचन मंदिर – छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम
इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है | राजिम नगरी महानदी ,पैरी ,सोंढुर नदी के संगम पर स्थित है | राजिम को प्राचीन काल में कमल क्षेत्र के नाम से जाना जाता था | यहाँ पर कुलेश्वर महादेव मंदिर ,राजेश्वर मंदिर ,दान दानेश्वर मंदिर श्री राजीव लोचन मंदिर ,प्राचीन जगन्नाथ मंदिर ,तेलिन ,माता मंदिर नदी के संगम पर मामा – भांजा मंदिर ,तथा लोमश ऋषि का आश्रम देखने लायक है | यहाँ सबसे प्राचीन मंदिर राजीव लोचन है |इस मंदिर का निर्माण ५ वी सदी में हुवा था | नलवंशीय शासक विलासतुंग एवं कलचुरी शासक जाजल्ल देव प्रथम के समय इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था कुलेश्वर महदेव मंदिर का निर्माण १४ वी १५ वी सदी में हुवा था भगवान राम वनवास के समय इस स्थान पर माता सीता के साथ कुलेश्वर महादेव की पूजा की थी |
मंदिरो की नगरी आरंग (भाण्ड देवल मंदिर )
आरंग एक अति प्रचीन नगरी है आरंग महाभारत कालीन राजा मोरजध्वज की नगरी थी | यहाँ पर अनेक प्राचीन मंदिर विद्यमान है | जिसमे अति प्राचीन भांड देवज (जैन मंदिर )बागेश्वर मंदिर ,पंचमुखी महादेव मंदिर ,हरदेव बाबा मंदिर ,महामाया मंदिर यहाँ अनेक प्राचीन मंदिर भग्न अवस्थ में है जो संरक्षण के आभाव से विलुप होती जा रही है |
चम्पारण – महाप्रभु वल्लभाचार्य जी जन्म स्थली
रायपुर के दक्षिण भाग में चम्पारण स्थित है इसी स्थान पर वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्म स्थली है यह एक पावन तीर्थ के रूप में पूजा जाता है तथा दूर दूर भक्त इस स्थान पर आते है | इस स्थान पर चम्पेश्वर नाथ महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है |
माता सबरी मंदिर शिवरीनारायण
यह एक धार्मिक एवं पौराणिक महत्व का स्थान है| यही पर भगवान राम ने वनवास के समय भीलनी के जुटे बेर को प्रेम सहित ग्रहण किये थे यह पर अनेक प्राचीन मंदिर है शबरी नारायण मंदिर ,केशवा नारायण मंदिर ,चंद्रचुड़ मंदिर प्रमुख है| यहाँ पर प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा में वृहद् १५ दिनों का मेला लगता है |
रामगढ़ की गुफाये
रामगढ कि गुफा |
यह मनोरम स्थान अंबिकापुर के पास सुन्दर सुरम्य वन में स्थित है | चारो तरफ पहाड़ो से घिरा हुवा है रामगढ़ की गुफाये एवं भित्ति चित्र ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक को दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है ऐसी किद्वंती व मान्यता है की भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास काल में कुछ समय यहाँ पर व्यतीत किये थे | राम के इस स्थान पर निवास के कारन इसे रामगढ कहा जाता है | पहाड़ी के शिखर पर मौर्य कालीन गुफाये है जिसमे सीता बेगरा ,जोगी मारा गुफा लक्ष्मण बेगरा गुफा प्रसिद्ध है
पुजारीपाली
सरिया के निकट पुजारी पाली ग्राम स्थित है | यहाँ पर जैन धर्म और हिन्दू धर्म सम्बंधित देवी देवताओ की मूर्ति प्राप्त हुई है पुजारी पाली में एक ग्राम में एक प्राचीन मंदिर के अवशेष है जिसे लोग केवटिन मंदिर के नाम से पुकारते है इस मंदिर पर एक शिला लेख है वि सदी का है इसकी लिपि नागरी है |
कबरा पहाड़ – रायगढ़
कबरा में स्थित पगड़ पर शैलाश्रय विद्यमान है | यह स्थल रायगढ़ नगर से ८ की। मी.की दुरी पर स्थित है इस शैलचित्र सिंघणपूर अपेक्षा अधिक रोचक व महत्वपूर्ण है इनमे से एक सूर्यबिम्ब एक वृहद् काय सूअर ,छिपकिली ,नुमा कुछ जीव जंतु की आकृतिया स्पष्ट दिखाई देती है |
गिरौधपूरी- संत गुरु घासीदास बाबा की जन्म स्थलि
यह स्थल महानदी के तट के उत्तर पश्चिम में २० कि. मी. दूर पर स्थित है या वह तीर्थ है स्थल है जहा सतनामी समाज के की करोडो भावनाये जुडी हुई है | यहाँ पर देश विदेश के सभी सतनामी समाज की पुण्य स्थली गिरौध धाम संत गुरु घासी दास का सिद्ध स्थल है | यही उसे छाता पहाड़ पर सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी | प्रति वर्ष गुरु बाबा के सम्मान में १८ दिसंबर को वृहद् मेले का आयोजन किया जाता है |
giraudpuri chhattisgarh |
दामाखेड़ा कबीर पंथियो का प्रमुख तीर्थ स्थल
यह स्थान कबीर पंथियो का प्रमुख तीर्थ स्थल है यहाँ प्रति वर्ष माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी से पूर्णिमा तक ‘संत समागम मेला ‘का आयोजन किया जाता है | जिसमे श्रद्धालु और भक्त आते है | और गुरु के चरणो में श्रद्धा अर्पित करते है |
भोरमदेव मंदिर – कवर्धा छत्तीसगढ़ खजुराहो
यह वर्तमान कवर्धा जिले में जिला मुख्यालय से १८ कि.मी. उत्तर -पश्चिम में स्थित है यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है| प्राचीन काल में यहाँ पर नागवंश का साशन था | यहाँ का भोरम देव मंदिर अपनी उत्कृष्ट
शिल्प व् मान्यता की दृस्टि से छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक प्रसिद्द प्राचीन मंदिरो में से एक है जिसकी तुलना खजुराहो मंदिर से की जाती है इस मंदिर का निर्माण १०८९ )सम्मत ८४० )में राजा गोपाल देव ने कराया था इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मुर्तिया। हथी ,घोड़े ,नृत्य करती स्त्री -पुरुष ,गणेश ,नटराज आदि की मुर्तिया स्थित है |
रतनपुर – तालाबो की नगरी
कण्ठी देवल मंदिर – रतनपुर |
रतनपुर छत्तीसग़ढ का धार्मिक ऐतिहासिक महत्व का स्थान है इसे तालाबों की नगरी भी कहा जाता है| रतनपुर की स्थापना कलचुरी शासक रत्नदेव प्रथम ने दी थी उसने तुस्मान के स्थान पर इसे राजधानी बनाया था यहाँ पर प्रसिद्द मंदिर महामाया मंदिर ,कंठी देवल मंदिर ,बुद्धेश्वर महादेव ,भैरव बाबा मंदिर ,हनुमान मंदिर सभी कलचुरी कालीन है प्रथम मराठा साशक बिम्बा जी भोसले ने राम टेकरी पहाड़ी पर भगवान राम चंद्र का मंदिर का निर्माण करवाया था
मल्हार एक प्राचीन नगरी
बिलासपुर जिले में मल्हार स्थित है | यह एक बड़ा सा ग्राम है | इस स्थान से प्राप्त प्राचीन मुर्तिया ,मंदिर भग्नअवशेषो तालाबों से इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है इस ग्राम पर मिट्टी से निर्मित एक किला है जो चारो तरफ से खाई से घिरा हुवा है | यहाँ पर खुदाई में आकर्सक मुर्तिया प्राप्त हुई है इस मूर्तियों में जैन ,बौद्ध धर्म से संबद्धित मुर्तिया है | सबसे प्राचीन मूर्ति चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा है यहाँ पर कई मंदिर के अवशेष मिले है जिसमे सा सर्वाधिक प्रसिद्ध पातालेश्वर केदार मंदिर है | और दूसरा डिंडेश्वरी देवी का है जो काले ग्रेनाईट पत्थर से बनी है |
छत्तीसगढ़ का काशी – खरौद
यह एक अति प्राचीन स्थली है | आम्र वृक्षो से घिरा हुवा एक सुन्दर नगरी है खरौद अपनी ऐतिहासिकता के कारण प्रसिद्ध है | यहाँ पर अनेक मंदिर व तालाब है | खरौद में प्रसिद्ध मंदिर में ईटो से निर्मित शबरी मंदिर ,इंदल देवल मंदिर शिव जी का लक्ष्मणेश्वर मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है
अड़भार – अष्ट भुजी देवी महिसासुर मर्दनी का मंदिर
जांजगीर – चांपा जिले का महत्वपूर्ण प्राचीन स्थल है यहाँ पर कई पुराणी तालाब तथा चारो तरफ से खाई से घिरा हुवा किले के अवशेष है | अड़भार में बौद्ध धर्म ,जैन से सम्बंधित अनेको मूर्तिया प्राप्त हुई है | इसका प्राचीन नाम “अष्टद्वार” था यहाँ पर अष्ट भुजी देवी महिसासुर मर्दनी का मंदिर है | मंदिर के सम्मुख देगन गुरु के नाम से तीन तीर्थकार पार्शवनाथ की प्रतिमा है | साथ ही चंद्रहासिनी मंदिर नाथल दाई मंदिर भी देखने लायक स्थल है |
पाली , जिला – कोरबा ,छत्तीसगढ़
वर्तमान कोरबा जिले में पाली स्थित है | इस ग्राम में उत्तरपूर्व में लम्बा चौड़ा तालाब है जिसके किनारे अनेक मंदिर के भग्न अवशेष है| एक मंदिर को छोड़कर शेष सभी मंदिर खण्डहर में बदल चुके है | पाली में प्रसिद्ध भगवान शिव मंदिर है इसका निर्माण वानवंश के किसी साशक काल में हुवा होगा जिसका जीर्णोद्वार ११ वी सदी में जाजल्ल देव ने करवाया था| मंदिर की दीवारों पर ना ना प्रकार की मुर्तिया अंकित है |
शिव मंदिर पाली |
नगपुरा -प्रसिद्ध जैन मंदिर
यह स्थान जैन समुदाय के प्रमुख तीर्थ स्थल | यहाँ पर २४ तीर्थकार की मंदिर बनी हुई है |मंदिर काफी भव्य है जिसे देखने के लिए दूर दूर से भक्त आते है साथ ही यहाँ अनेक प्राचीन मंदिर भी है|
लाफ़ागढ
लाफ़ागढ एक प्राचीन ऐतिहासिक महत्व का स्थान है| प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल है इस स्थल की पाहडी पर चतुरगढ़ का किला है इस किले के द्वार ,मंदिर ,मुर्तिया ,डिंडाद्वार ,मनका दृष्टि द्वार ,महिशासुर का वध करती हुई दुर्गा की मुर्तिया प्राकृतिक गुफा ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल है |
माँ दन्तेश्वरी मंदिर- दंतेवाड़ा
बस्तर में लम्बे समय अवधि तक नागवंश का शासन रहा है | दंतेवाड़ा में नागवंशीय शासको ने अपनी इष्ट देवी मणि केशरी देवी का मंदिर स्थापित किया था ,यह मंदिर आज भी स्थित है | यह छत्तीसगढ़ का प्रमुख पर्यटन स्थल माना जाता है | दंतेश्वरी मंदिर ,भुनेश्वरी मंदिर ,चित्रकूट जलप्रपात ,तीरथ गढ़ जल प्रपात ,अभुज मार क्षेत्र आस पास के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है बस्तर अपनी शिल्प कला अपने रीती रिवाजो के कारन पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है |